ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 74/ मन्त्र 6
अस्ति॒ हि वा॑मि॒ह स्तो॒ता स्मसि॑ वां सं॒दृशि॑ श्रि॒ये। नू श्रु॒तं म॒ आ ग॑त॒मवो॑भिर्वाजिनीवसू ॥६॥
स्वर सहित पद पाठअस्ति॑ । हि । वा॒म् । इ॒ह । स्तो॒ता । स्मसि॑ । वा॒म् । स॒म्ऽदृशि॑ । श्रि॒ये । नु । श्रु॒तम् । मे॒ । आ । ग॒त॒म् । अवः॑ऽभिः । वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्ति हि वामिह स्तोता स्मसि वां संदृशि श्रिये। नू श्रुतं म आ गतमवोभिर्वाजिनीवसू ॥६॥
स्वर रहित पद पाठअस्ति। हि। वाम्। इह। स्तोता। स्मसि। वाम्। सम्ऽदृशि। श्रिये। नु। श्रुतम्। मे। आ। गतम्। अवःऽभिः। वाजिनीवसू इति वाजिनीऽवसू ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 74; मन्त्र » 6
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे वाजिनीवसू अध्यापकोपदेशकाविह यो वां स्तोतास्ति तं हि वयं प्राप्ताः स्मसि। वां संदृशि श्रिये नु श्रुतमवोभिर्मां प्राप्नुतं मे मम श्रुतमागतम् ॥६॥
पदार्थः
(अस्ति) (हि) यतः (वाम्) युवयोः (इह) (स्तोता) प्रशंसकः (स्मसि) (वाम्) युवाम् (संदृशि) सादृश्ये (श्रिये) धनाय (नु) सद्यः (श्रुतम्) (मे) मम (आ) (गतम्) आगच्छतम् (अवोभिः) रक्षणादिभिः (वाजिनीवसू) यौ वाजिनीं बह्वन्नादिक्रियां वासयतस्तौ ॥६॥
भावार्थः
ये विदुषां गुणान्त्स्तुवन्ति ते गुणाढ्या भूत्वा विद्वत्सादृश्यं प्राप्य श्रीमन्तो भवन्ति ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वाजिनीवसु) बहुत अन्नादि क्रिया को वसानेवाले अध्यापक और उपदेशक जनो ! (इह) इस संसार में जो (वाम्) आप दोनों का (स्तोता) प्रशंसा करनेवाला (अस्ति) है उसको (हि) जिससे हम लोग प्राप्त (स्मसि) होवें और (वाम्) आप दोनों को (संदृशि) सादृश्य में (श्रिये) धन के लिये (नु) शीघ्र (श्रुतम्) सुनिये और (अवोभिः) रक्षणादिकों से मुझ को प्राप्त हूजिये (मे) मेरे कथन को सुनने को (आ, गतम्) आइये ॥६॥
भावार्थ
जो विद्वानों के गुणों की स्तुति करते हैं, वे गुणों से युक्त हो और विद्वानों की समता को प्राप्त होकर श्रीमान् होते हैं ॥६॥
विषय
जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
भा०-हे सभा वा सेना के अध्यक्ष जनो ( वाम् ) आप दोनों को (स्तोता ) उत्तम उपदेश करने और आज्ञा करने वाला भी ( इह ) इस राष्ट्र में ( अस्ति हि ) हो । और हम ( वां ) आप दोनों के ( श्रिये ) लक्ष्मी, शोभा वा सम्पत्ति की वृद्धि या आश्रय प्राप्ति के लिये, आप के ( संदृशि ) उत्तम दर्शन या अध्यक्षता वा निष्पक्षपात शासन में ( स्मसि ) रहें । आप दोनों ( मे नु श्रुतम् ) हमारे वचन सुनिये । हे ( वाजिनी-वसू ) संग्रामकारिणी सेना और अन्नादि ऐश्वर्य से युक्त वा ज्ञानवान् पुरुषों से युक्त राजसभा के बीच स्वयं विराजने वा उसको बसाने वा उसको धनवत् पालने वाले अध्यक्ष जनो ! आप लोग ( अवोभिः) उत्तम रक्षा साधनों सहित ( आ गतम् ) हमारे समीप आइये ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
आत्रेय ऋषिः ।। अश्विनौ देवते ॥ छन्दः — १, २, १० विराडनुष्टुप् अनुष्टुप, । ४, ५, ६, ९ निचृदनुष्टुप् । ७ विराडुष्णिक् । ८ निचृदुष्णिक् ॥ एकादशर्चं सुक्तम् ।।
विषय
'शक्ति व श्री' की प्राप्ति
पदार्थ
[१] हे अश्विनौ ! (हि) = निश्चय से (इह) = इस जीवन में (वाम्) = आपका ही सब कोई स्तोता (अस्ति) = स्तवन करनेवाला है। आपके स्तवन से ही सब उत्तमताएँ प्राप्त होती हैं। हम (वाम्) = आपके (सन्दॄशि) = सन्दर्शन में (स्मसि) = हों। आपके सन्दर्शन में (श्रिये) = हम श्री की प्राप्ति के लिये हों । [२] (नु) = अब मे (श्रुतम्) = मेरे आह्वान को आप (श्रुतम्) = सुनिये और (अवोभिः) = रक्षणों के साथ (आगतम्) = मुझे प्राप्त होइये । (वाजिनीवसू) = आप ही हमारे लिये शक्तिरूप धनवाले हैं [वाजिनम् - strength]। आप ने ही हमें शक्ति प्राप्त करानी है।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना से शक्ति प्राप्त होती है, हमारा जीवन भी सम्पन्न बनता है।
मराठी (1)
भावार्थ
जे विद्वानांच्या गुणांची स्तुती करतात ते गुणांनी युक्त होऊन विद्वानांप्रमाणे श्रीमंत होतात. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Here for sure is your dedicated devotee and celebrant. We abide within your eye sight for the sake of the beauty and grace of life. Listen to us and come with your modes of protection, Ashvins, who command treasures of food, energy and the forces of renewal, rejuvenation and advancement.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should men do is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O teachers and preachers, establish the process of growing food grains in abundance. We approach the person who is your admirer. Please come to me, listen to me for the acquirement of wealth like you, with your protective powers.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who admire the virtues of the enlightened persons, become virtuous and (while. Ed.) following the highly learned persons, they also become wealthy and prosperous.
Foot Notes
(वाजिनीवसू ) यो वाजिनीं बह्वत्रादिक्रिया वासयतस्तौ । वाज इत्यन्ननाम (NG 2, 7) वस निवासे। = Who establish the process of the obtainment of food grains in abundance. (संदृशि) सादृश्ये। = In likeness.
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