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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 74 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 74/ मन्त्र 7
    ऋषिः - पौर आत्रेयः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    को वा॑म॒द्य पु॑रू॒णामा व॑व्ने॒ मर्त्या॑नाम्। को विप्रो॑ विप्रवाहसा॒ को य॒ज्ञैर्वा॑जिनीवसू ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः । वा॒म् । अ॒द्य । पु॒रू॒णाम् । आ । व॒व्ने॒ । मर्त्या॑नाम् । कः । विप्रः॑ । वि॒प्र॒ऽवा॒ह॒सा॒ । कः । य॒ज्ञैः । वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को वामद्य पुरूणामा वव्ने मर्त्यानाम्। को विप्रो विप्रवाहसा को यज्ञैर्वाजिनीवसू ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कः। वाम्। अद्य। पुरूणाम्। आ। वव्ने। मर्त्यानाम्। कः। विप्रः। विप्रऽवाहसा। कः। यज्ञैः। वाजिनीवसू इति वाजिनीऽवसू ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 74; मन्त्र » 7
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विप्रवाहसा वाजिनीवसू ! पुरूणां मर्त्यानां मध्ये को विप्रोऽद्य वामावव्ने को यज्ञैर्विद्यां कश्च प्रज्ञां वव्ने ॥७॥

    पदार्थः

    (कः) (वाम्) युवयोः (अद्य) (पुरूणाम्) बहूनाम् (आ) (वव्ने) संभजति (मर्त्यानाम्) मनुष्याणाम् (कः) (विप्रः) मेधावी (विप्रवाहसा) यौ विद्वद्भिः प्रापणीयौ (कः) (यज्ञैः) (वाजिनीवसू) धनधान्यप्रापकौ ॥७॥

    भावार्थः

    ये विद्यां याचन्ते ते विदुषः सनीडं प्राप्य प्रश्नोत्तरैरानन्द्य महान्तं लाभं प्राप्नुयुस्तेऽन्यानपि प्रापयितुं शक्नुयुः ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (विप्रवाहसा) विद्वानों से प्राप्त होने योग्य (वाजिनीवसू) धन धान्य प्राप्त करानेवालो ! (पुरूणाम्) बहुत (मर्त्यानाम्) मनुष्यों के मध्य में (कः) कौन (विप्रः) बुद्धिमान् (अद्य) आज (वाम्) आप दोनों का (आ, वव्ने) अच्छे प्रकार आदर करता (कः) कौन (यज्ञैः) यज्ञों से विद्या को और (कः) कौन बुद्धि का आदर करता है ॥७॥

    भावार्थ

    जो विद्या की याचना करते हैं वे विद्वान् के समीप प्राप्त होकर प्रश्न और उत्तरों से आनन्द कर के लाभ को प्राप्त होवें, वे अन्यों को भी प्राप्त करा सकें ॥७॥

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    विषय

    जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०-हे (विप्र-वाहसा) विविध ऐश्वर्यो और विद्याओं से अपने को पूर्ण करने वाले शिष्यों को धारण करने वाले ! एवं ( वाजिनी-वसू ) ऐश्वर्य, संग्राम, बल और ज्ञान से युक्त सेना और वाणी को बसाने, उनको द्रव्यवत् पालने वाले सेनापति राजा और आचार्य जनो ! ( अद्य ) आज ( पुरुणाम् मर्त्यानाम् ) मरणशील वा शत्रुओं को मारने वाले मनुष्यों में से ( कः वाम् वन्वे ) कौन आप दोनों की सेवा करता है, ( कः विप्रः ) कौन विद्वान् और कौन पुरुष ( यज्ञै: ) आदर सत्कारों, दानों प्रार्थना वचनों और सत्संग आदि से ( वां वन्वे ) तुम दोनों से वर्त्ताव, प्रार्थनादि करता है, इसका सदा विचार रक्खो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    आत्रेय ऋषिः ।। अश्विनौ देवते ॥ छन्दः — १, २, १० विराडनुष्टुप् अनुष्टुप, । ४, ५, ६, ९ निचृदनुष्टुप् । ७ विराडुष्णिक् । ८ निचृदुष्णिक् ॥ एकादशर्चं सुक्तम् ।।

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    विषय

    विप्रता व यज्ञशीलता

    पदार्थ

    [१] (पुरूणाम्) = अपना पालन व पूरण करनेवाले (मर्त्यानाम्) = मनुष्यों में (कः) = कोई विरला ही (अद्य) = आज (वाम्) = आपका (आवने) = सर्वतः भजन करता है। प्राणसाधना की ओर विरले पुरुष प्रवृत्त होते हैं। [२] हे (विप्रवाहसा) = ज्ञानियों का धारण करनेवाले प्राणपानो! (कः विप्रः) = कोई विरला ही ज्ञानी पुरुष आपका उपासन करता है । हे (वाजिनीवसू) = शक्तिरूप धनवाले प्राणापानो ! (कः) = कोई विरला व्यक्ति ही (यज्ञैः) = यज्ञों के हेतु से आपका उपासन करता है। आपकी उपासना जीवन को यज्ञमय बनाती है।

    भावार्थ

    भावार्थ-प्राणसाधना [१] हमारा पालन व पूरण करती है [पुरूणाम् ], [२] यह हमें विप्र [ज्ञानी] बनाती है । [३] इससे हम यज्ञशील बनते हैं, 'प्रभु पूजन, परस्पर संगतिकरण व दान' की वृत्तिवाले होते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे विद्येची याचना करतात त्यांनी विद्वानांचा संग करून प्रश्नोत्तराचा आनंद घ्यावा व लाभान्वित व्हावे. इतरांनाही तो आनंद प्राप्त करून द्यावा. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Who of the many many mortals today could win your love and favour, O favourite celebrities of the saints and scholars? Which one of the wisest? Which one at last could win your recognition and favour, O commanders of the treasures of food, energy, wealth, power and the forces of life? By all yajnas at his command, could he? Probably, for sure may be.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men do further is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O enlightened men! you are approachable by the highly learned persons. O conveyor of wealth and food! who adores you well among the mortals? Who is the man who desires to acquire knowledge with the Yajnas, and who desires to attain wisdom?

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those who desire to acquire knowledge may go to the enlightened persons and may be highly benefited by the questions and answers. Let them benefit others also thereby.

    Foot Notes

    (वत्ने) संभजति । वन-संभक्तौ (भ्वा०) | = Adores, reveres ( वाजिनीवसू ) धनधान्यप्रापकी | वाज इति अन्ननाम (NG 2, 7) वस निवासे । = Conveyors of wealth and food materials.

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