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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 16/ मन्त्र 16
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अग्निः छन्दः - साम्नीत्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    एह्यू॒ षु ब्रवा॑णि॒ तेऽग्न॑ इ॒त्थेत॑रा॒ गिरः॑। ए॒भिर्व॑र्धास॒ इन्दु॑भिः ॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । इ॒हि॒ । ऊँ॒ इति॑ । सु । ब्रवा॑णि । ते॒ । अग्ने॑ । इ॒त्था । इत॑राः । गिरः॑ । ए॒भिः । व॒र्धा॒से॒ । इन्दु॑ऽभिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एह्यू षु ब्रवाणि तेऽग्न इत्थेतरा गिरः। एभिर्वर्धास इन्दुभिः ॥१६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। इहि। ऊँ इति। सु। ब्रवाणि। ते। अग्ने। इत्था। इतराः। गिरः। एभिः। वर्धासे। इन्दुऽभिः ॥१६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 16; मन्त्र » 16
    अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे अग्ने ! यैरेभिरिन्दुभिस्त्वं वर्धासे तैरेहीत्थेतरास्ते गिरस्सु ब्रवाणि त्वमु शृणु ॥१६॥

    पदार्थः

    (आ) (इहि) आगच्छ (उ) (सु) (ब्रवाणि) उपदिशानि (ते) तव (अग्ने) विद्वन् (इत्था) अनेन प्रकारेण (इतराः) अर्वाचीनाः (गिरः) वाचः (एभिः) (वर्धासे) वर्द्धसे (इन्दुभिः) सोमलताभिश्चन्द्रकिरणैर्वा ॥१६॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या वयं विद्या अधीत्य सर्वानुपदिशेमेतीच्छन्ति तेऽस्मान् प्राप्नुवन्तु ॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन् जन ! (एभिः) इन (इन्दुभिः) सोमलताओं वा चन्द्रकिरणों से आप (वर्धासे) वृद्धि को प्राप्त होते हो उनसे (आ, इहि) प्राप्त हूजिये (इत्था) इस प्रकार से (इतराः) पीछे की (ते) आपकी (गिरः) वाणियों को (सु, ब्रवाणि) उत्तम प्रकार उपदेश करूँ और आप (उ) तर्क वितर्क से सुनें ॥१६॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य, हम लोग विद्याओं को पढ़कर सब को उपदेश देवें, इस प्रकार इच्छा करते हैं, वे हम लोगों को प्राप्त होवें ॥१६॥

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    विषय

    उपदेष्टा की चन्द्रवत् वृद्धि ।

    भावार्थ

    हे (अग्ने ) अग्नि के समान तेजस्विन् ! तू ( आ इहि उ ) आ, ( ते ) तुझे मैं ( इत्था ) इस २ प्रकार की सत्य वेदवाणियों और ( इतराः गिरः ) अन्यान्य लौकिक वाणियों का भी ( ब्रवाणि ) उपदेश करूं । तू ( एभिः ) इन ( इन्दुभिः ) ओषधियों से देह के समान और चन्द्रकलाओं से पूर्णचन्द्र के समान ऐश्वर्यों से ( वर्धासे ) वृद्धि को प्राप्त हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ४८ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ६, ७ आर्ची उष्णिक् । २, ३, ४, ५, ८, ९, ११, १३, १४, १५, १७, १८, २१, २४, २५, २८, ३२, ४० निचृद्गायत्री । १०, १९, २०, २२, २३, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८, ३९, ४१ गायत्री । २६, ३० विराड्-गायत्री । १२, १६, ३३, ४२, ४४ साम्नीत्रिष्टुप् । ४३, ४५ निचृत्- त्रिष्टुप् । २७ आर्चीपंक्तिः । ४६ भुरिक् पंक्तिः । ४७, ४८ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टाचत्वारिंशदृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    सत्य+संयम

    पदार्थ

    [१] (अग्ने) = हे परमात्मन् ! (एहि) = आप मुझे प्राप्त होइये । (उ) = और मैं (ते) = आपकी प्राप्ति के लिये (इतराः गिरः) = सामान्य व्यवहार की वाणियों को भी (सु) = अच्छी प्रकार (इत्या ब्रवाणि) = सत्य ही बोलूँ सत्य को अपनाने से ही तो सत्य स्वरूप आपको प्राप्त कर सकूँगा । [२] हे प्रभो ! आप (एभि) = इन (इन्दुभिः) = सोमकणों से (वर्धासे) = मेरे में वृद्धि को प्राप्त होइये । इन सोमकणों का रक्षण करता हुआ मैं आपको ज्ञानाग्नि की दीप्ति के द्वारा प्राप्त करनेवाला बनूँ ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सत्य व संयम के द्वारा हम प्रभु प्राप्ति के पात्र बन पाते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे विद्या शिकून सर्वांना उपदेश द्यावा ही इच्छा बाळगतात त्या माणसांची आमची भेट व्हावी. ॥ १६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, leading light and pioneer, come, listen, thus do I speak in honour of you, and listen further to higher words, and rise higher with these words sweet and soothing like rays of the moon and exciting as draughts of soma.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men do is told further.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O enlightened person! shining like the fire, come with the knowledge for proper use of the Soma creeper and other plants or the rays of the moon which increase your power. And in this way, I will tell you about the new words (of advice). Listen to them.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Let us have those good scholars who having acquired the knowledge of all sciences desire that they should impart this knowledge to others.

    Foot Notes

    (इन्द्रुभि:) सोमलताभिश्चन्द्रकिरणैर्वा । याचमानो वै सोमो राजा इन्दुः (Jaiminyopanishad 1, 90) = By the use of the moon cree ser and other nourishing creepers and herbs or the rays of the moon. (इतरा:) अर्वाचीना: । = New.

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