ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 16/ मन्त्र 40
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
आ यं हस्ते॒ न खा॒दिनं॒ शिशुं॑ जा॒तं न बिभ्र॑ति। वि॒शाम॒ग्निं स्व॑ध्व॒रम् ॥४०॥
स्वर सहित पद पाठआ । यम् । हस्ते॑ । न । खा॒दिन॑म् । शिशु॑म् । जा॒तम् । न । बिभ्र॑ति । वि॒शाम् । अ॒ग्निम् । सु॒ऽअ॒ध्व॒रम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ यं हस्ते न खादिनं शिशुं जातं न बिभ्रति। विशामग्निं स्वध्वरम् ॥४०॥
स्वर रहित पद पाठआ। यम्। हस्ते। न। खादिनम्। शिशुम्। जातम्। न। बिभ्रति। विशाम्। अग्निम्। सुऽअध्वरम् ॥४०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 16; मन्त्र » 40
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 28; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 28; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
ये यं हस्ते खादिनं न जातं शिशुं न विशां स्वध्वरमग्निमाऽऽबिभ्रति ते तेन कृतकृत्या जायन्ते ॥४०॥
पदार्थः
(आ) समन्तात् (यम्) (हस्ते) (न) इव (खादिनम्) खादितुं भक्षयितुं शीलम् (शिशुम्) बालम् (जातम्) उत्पन्नम् (न) इव (बिभ्रति) भरन्ति (विशाम्) मनुष्यादिप्रजानाम् (अग्निम्) प्रकाशमानम् (स्वध्वरम्) शोभना अध्वरा यस्मात्तम् ॥४०॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! ये हस्तामलकवत् क्रोडे शिशुमिवाग्निविद्यां जानन्ति ते प्रजापतयो भवन्ति ॥४०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
जो (यम्) जिसको (हस्ते) हाथ में (खादिनम्) भक्षण करनेवाले के (न) समान और (जातम्) उत्पन्न हुए (शिशुम्) बालक के (न) समान (विशाम्) मनुष्यादि प्रजाओं के (स्वध्वरम्) सुन्दर यज्ञ जिससे हों उस (अग्निम्) प्रकाशमान अग्नि को (आ, बिभ्रति) सब ओर से धारण करते हैं, वे उससे कृतकृत्य होते हैं ॥४०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो हाथ में आँवले को जैसे वैसे, गोदी में लड़के को जैसे वैसे अग्निविद्या को जानते हैं, वे प्रजा के स्वामी होते हैं ॥४०॥
विषय
प्रजा का राजा के प्रति मातृतुल्य स्नेह ।
भावार्थ
( खादिनं ) खाने में संलग्न ( जातं शिशुं न ) उत्पन्न बालक को जिस प्रकार ( हस्ते बिभ्रति ) हाथों में लेते हैं उसी प्रकार ( यं ) जिस ( स्वध्वरं ) उत्तम हिंसारहित, प्रजापालनादि कर्म करने वाले ( विशाम् ) प्रजाओं के बीच में (यं ) जिस (अग्निम् ) अग्नि के समान तेजस्वी, अग्रणी नायक को प्रजा जन ( हस्ते ) शत्रु को नाश करने और दुष्टों को हनन या दण्ड करने वाले बल के ऊपर ( खादिनं ) वज्रधर, आयुधसम्पन्न और (शिशुं जातं) उत्तम प्रशंसनीय आचार वाले, प्रसिद्ध पुरुष को (बिभ्रति) परिपुष्ट करते हैं वही उत्तम राजा है । इत्यष्टाविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
४८ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ६, ७ आर्ची उष्णिक् । २, ३, ४, ५, ८, ९, ११, १३, १४, १५, १७, १८, २१, २४, २५, २८, ३२, ४० निचृद्गायत्री । १०, १९, २०, २२, २३, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८, ३९, ४१ गायत्री । २६, ३० विराड्-गायत्री । १२, १६, ३३, ४२, ४४ साम्नीत्रिष्टुप् । ४३, ४५ निचृत्- त्रिष्टुप् । २७ आर्चीपंक्तिः । ४६ भुरिक् पंक्तिः । ४७, ४८ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टाचत्वारिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
खादिनं-अग्निं-स्वध्वरम्
पदार्थ
[१] [न=संप्रति] (यम्) = जिस प्रभु को (न) = अब (जातं शिशुं न) = उत्पन्न हुए - हुए बालक की तरह (हस्ते) = हाथ में (बिभ्रति) = धारण करते हैं। अर्थात् जिस प्रकार बालक को प्रेम से धारण करते हैं, इसी प्रकार प्रभु को भी आदरयुक्त प्रीति से धारण करने का प्रयत्न करते हैं । [२] उस प्रभु को धारण करते हैं जो कि (खादिनम्) = [भक्षकं] सब शत्रुओं को खा जानेवाले हैं। (विशां अग्निम्) = सब प्रजाओं को, शत्रु विनाश द्वारा, आगे ले चलनेवाले हैं। (स्वध्वरम्) = और हमारे जीवनों में उत्तम हिंसारहित कर्मों को सिद्ध करनेवाले हैं। प्रभु कृपा से ही जीवन में सब यज्ञ चलते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु को हृदयों में आदरपूर्वक इस प्रकार धारण करें, जैसे कि उत्पन्न बालक को प्रीतिपूर्वक हाथ में उठाते हैं। वे प्रभु शत्रुओं का हिंसन करनेवाले हैं। शत्रुओं के हिंसन के द्वारा हमें आगे ले चलनेवाले हैं और उत्तम हिंसा रहित यज्ञों को सिद्ध करते हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे हस्तमलकावत (हातातील आवळ्याप्रमाणे) व कुशीतील बाळाप्रमाणे अग्निविद्या जाणतात ते प्रजेचे स्वामी बनतात. ॥ ४० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Like the darling new bom baby held in the hand, like a beautiful bracelet worn on the wrist, the yajakas place the fire in the vedi, light and raise it, since it is the blessed source giver of wealth and joy for the people.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What same subject is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Those who bear Agni (fire) protector of men, in which good non-violent sacrifices are performed, as they bear some eatable in their hands or a new born infant is borne in the arms, become blessed by them, as their noble desires are fulfilled by its proper and methodical use.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons who know the science of fire, thoroughly, like the infant in the lap, become the protectors and nourishers of the people.
Foot Notes
(खादिनम् ) खादितुं भक्षयितुं शीलम् खाद-भक्षणे (भ्वा०) = Eatable.
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