ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 16/ मन्त्र 2
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
स नो॑ म॒न्द्राभि॑रध्व॒रे जि॒ह्वाभि॑र्यजा म॒हः। आ दे॒वान्व॑क्षि॒ यक्षि॑ च ॥२॥
स्वर सहित पद पाठसः । नः॒ । म॒न्द्राभिः॑ । अ॒ध्व॒रे । जि॒ह्वाभिः॑ । य॒ज॒ । म॒हः । आ । दे॒वान् । व॒क्षि॒ । यक्षि॑ । च॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स नो मन्द्राभिरध्वरे जिह्वाभिर्यजा महः। आ देवान्वक्षि यक्षि च ॥२॥
स्वर रहित पद पाठसः। नः। मन्द्राभिः। अध्वरे। जिह्वाभिः। यज। महः। आ। देवान्। वक्षि। यक्षि। च ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वान् किं कुर्य्यादित्याह ॥
अन्वयः
हे विद्वन्नग्ने ! स त्वमध्वरे मन्द्राभिर्जिह्वाभिर्नोऽस्मान् यजा। महो देवानाऽऽवक्षि सर्वान् यक्षि च ॥२॥
पदार्थः
(सः) (नः) अस्मान् (मन्द्राभिः) आनन्दकारिकाभिः (अध्वरे) सर्वथाऽनुष्ठातव्ये धर्म्ये व्यवहारे (जिह्वाभिः) विद्याविनययुक्ताभिर्वाग्भिः। जिह्वेति वाङ्नाम। (निघं०१.१२) (यजा) सङ्गमय। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (महः) महतः सत्कर्त्तव्यान् वा (आ) (देवान्) दिव्यान् गुणान् विदुषो वा (वक्षि) वह (यक्षि) सङ्गमय (च) ॥२॥
भावार्थः
विद्वांसो विद्याप्राप्तये सर्वान् सदोपदिशेयुर्येन प्राप्तदिव्यगुणा मनुष्या भवेयुः ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वान् क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वन् ! अग्नि के सदृश तेजस्वी (सः) वह आप (अध्वरे) सब प्रकार अनुष्ठान करने योग्य धर्म्मयुक्त व्यवहार में (मन्द्राभिः) आनन्द करनेवाली (जिह्वाभिः) विद्या और विनय से युक्त वाणियों से (नः) हम लोगों को (यजा) प्राप्त कराइये और (महः) बड़े अथवा सत्कार करने योग्यों को और (देवान्) श्रेष्ठ गुणों वा विद्वानों को (आ, वक्षि) प्राप्त कराइये और सब को (यक्षि, च) भी प्राप्त कराइये ॥२॥
भावार्थ
विद्वान् जन विद्या की प्राप्ति के लिये सब को सदा उपदेश देवें, जिससे श्रेष्ठ गुणोंवाले मनुष्य होवें ॥२॥
विषय
विद्वान् के कर्त्तव्य । वेदोपदेष्टा प्रभु ।
भावार्थ
हे विद्वन् ! ( सः ) वह तू ( मन्द्राभिः ) स्तुति योग्य, आह्लादजनक ( जिह्वाभिः ) वाणियों से (अध्वरे ) अविनाशी यज्ञ में ( महः यज ) बड़ों का सदा सत्कार कर और ( देवान् ) विद्वान् पुरुषों के प्रति (आ वक्षि) आदरपूर्वक वचन बोल और ( आ यक्षि च ) आदर से दान दे । ( २ ) हे प्रभो ! आह्लादकारिणी वेदवाणियों से बड़े दिव्य गुणों का हमें उपदेश कर और हमें अपने से सदा संगत कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
४८ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ६, ७ आर्ची उष्णिक् । २, ३, ४, ५, ८, ९, ११, १३, १४, १५, १७, १८, २१, २४, २५, २८, ३२, ४० निचृद्गायत्री । १०, १९, २०, २२, २३, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८, ३९, ४१ गायत्री । २६, ३० विराड्-गायत्री । १२, १६, ३३, ४२, ४४ साम्नीत्रिष्टुप् । ४३, ४५ निचृत्- त्रिष्टुप् । २७ आर्चीपंक्तिः । ४६ भुरिक् पंक्तिः । ४७, ४८ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टाचत्वारिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
'ज्ञान शक्ति दिव्यगुण'
पदार्थ
[१] हे अग्ने ! (सः) = वे आप (नः) = हमें (अध्वरे) = इस हिंसारहित जीवन-यज्ञ में (मन्द्राभिः जिह्वाभिः) = आनन्द को देनेवाली वाणियों से (महः यजा) = तेजस्विता को संगत कीजिये, तेजस्विता प्रदान कीजिये । हम आपकी ज्ञानप्रद वेद-वाणियों को प्राप्त करें तथा तेजस्वी बनें। [२] ज्ञान व तेजस्विता को प्राप्त कराके आप (देवान्) = आबाधित दिव्यगुणों को प्राप्त कराइये, (च) = और (यक्षि) = हमारे साथ संगत करिये।
भावार्थ
भावार्थ– प्रभु हमें 'ज्ञान, शक्ति व दिव्यगुणों' को प्राप्त कराएँ ।
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वान लोकांनी विद्याप्राप्तीसाठी सर्वांना सदैव उपदेश द्यावा. ज्यामुळे माणसे श्रेष्ठ गुणांची व्हावीत. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O lord almighty, with inspiring words of enlightenment and bliss, consecrate our yajna, join us, bring up noble and brilliant divinities and with them make our yajnic programmes fruitful.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should an enlightened person do is told further.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O highly learned leader! unite us with the words or speech endowed with true knowledge and humility which cause bliss in this righteous dealing which must be done. Bring here the great and venerable enlightened persons and unite us with all the divine virtues.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The enlightened persons should always preach to all for acquiring knowledge, so that all may be endowed with divine virtues.
Foot Notes
(मन्द्राभिः) आनन्दकारिकाभिः । मन्द्राभिः मदि-स्तुतिमोदमदस्वप्न कान्ति गतिषु (भ्वा) अत्र मोदार्थः । = Creating bliss. (जिह्वाभि:) विद्या विनययुक्ताभिर्वाग्भिः । जिह्न ेति वाङ्नाम (NG 1, 11) | = Words or speech endowed with true knowledge and humility.
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