ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 15/ मन्त्र 11
स नो॒ राधां॒स्या भ॒रेशा॑नः सहसो यहो। भग॑श्च दातु॒ वार्य॑म् ॥११॥
स्वर सहित पद पाठसः । नः॒ । राधां॑सि । आ । भ॒र॒ । ईशा॑नः । स॒ह॒सः॒ । य॒हो॒ इति॑ । भगः॑ । च॒ । दा॒तु॒ । वार्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
स नो राधांस्या भरेशानः सहसो यहो। भगश्च दातु वार्यम् ॥११॥
स्वर रहित पद पाठसः। नः। राधांसि। आ। भर। ईशानः। सहसः। यहो इति। भगः। च। दातु। वार्यम् ॥११॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 15; मन्त्र » 11
अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
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अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे सहसो यहो राजन्नग्निरिवेशानो भगो यस्त्वं नो राधांस्याभर। वार्य्यं भगश्च स भवान् दातु ॥११॥
पदार्थः
(सः) (नः) अस्मभ्यम् (राधांसि) समृद्धिकराणि धनानि (आ) (भर) (ईशानः) ईषणशीलः समर्थः (सहसः) बलिष्ठस्य (यहो) अपत्य (भगः) ऐश्वर्यवानैश्वर्यं वा (च) (दातु) ददातु (वार्यम्) वरणीयम् ॥११॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽग्निविद्यया धनधान्यैश्वर्यं मनुष्याः प्राप्नुवन्ति तथैवोत्तमराजप्रबन्धेन जना धनाढ्याः सुखिनश्च जायन्ते ॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (सहसः) अति बलवान् के (यहो) पुत्र राजन् ! अग्नि के तुल्य तेजस्वी (ईशानः) समर्थ (भगः) ऐश्वर्यवान् जो आप (नः) हमारे लिये (राधांसि) सुख बढ़ानेवाले धनों को (आ, भर) अच्छे प्रकार धारण वा पोषण करें तथा (वार्यम्) स्वीकार करने योग्य ऐश्वर्य को (च) भी (सः) सो आप (दातु) दीजिये ॥११॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अग्निविद्या से धनधान्य सम्बन्धी ऐश्वर्य को मनुष्य प्राप्त होते हैं, वैसे ही उत्तम राज्य प्रबन्ध से मनुष्य धनाढ्य और सुखी होते हैं ॥११॥
विषय
प्रभु की उपासना और प्रार्थना ।
भावार्थ
हे ( सहसः यहो ) बलवान् पुरुष के पुत्र ! हे बलशाली सैन्य के सञ्चालक ! ( सः ) वह तू ( ईशानः ) सबका स्वामी है । तू ( नः ) हमें ( राधांसि ) नाना प्रकर के धनैश्वर्य ( आ भर ) प्राप्त करा । ( भगः ) ऐश्वर्यवान् पुरुष ( नः ) हमें ( वार्यम् दातु ) उत्तम धनः प्रदान करे । अथवा ( दातु वार्यं आ भर ) देने योग्य धन प्राप्त करावे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ३, ७, १०, १२, १४ विराड्गायत्री । २, ४, ५, ६, ९, १३ गायत्री । ८ निचृद्गायत्री । ११ ,१५ आर्च्युष्णिक् ।। पञ्चदशर्चं सूकम् ॥
विषय
'वरणीय कार्यसाधक' धन
पदार्थ
[१] (सहसः यहो) = हे बल के पुत्र बल के पुञ्ज प्रभो ! (सः) = वे आप (नः) = हमारे लिये (राधांसि) = कार्यसाधक धनों को (आभर) = समन्तात् प्राप्त कराइये। (ईशानः) = आप ही तो सब धनों के स्वामी हैं। [२] (च) = और (भगः) = सब ऐश्वर्यों के स्वामी प्रभु (वार्यम्) = वरणीय धनों को (दातु) = देनेवाले हों।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमें शक्ति दें जिससे हम चाहने योग्य [वरणीय] कार्यसाधक धनों को प्राप्त कर सकें।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे अग्नीद्वारे धनधान्य इत्यादी ऐश्वर्य माणसांना प्राप्त होते तसेच उत्तम राज्यव्यवस्थेने माणसे धनाढ्य व सुखी होतात. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
And that ruling power, a very image of patience, fortitude and omnipotence, may, we pray, bring us the best of means, materials and modes of success, and may the lord of power, honour and excellence bring us all we cherish and value in life.
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