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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 33 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 33/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठपुत्राः देवता - त एव छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ए॒वेन्नु कं॒ सिन्धु॑मेभिस्ततारे॒वेन्नु कं॑ भे॒दमे॑भिर्जघान। ए॒वेन्नु कं॑ दाशरा॒ज्ञे सु॒दासं॒ प्राव॒दिन्द्रो॒ ब्रह्म॑णा वो वसिष्ठाः ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व । इत् । नु । क॒म् । सिन्धु॑म् ए॒भिः॒ । त॒ता॒र॒ । ए॒व । इत् । नु । क॒म् । भे॒दम् । ए॒भिः॒ । ज॒घा॒न॒ । ए॒व । इत् । नु । क॒म् । दा॒श॒ऽरा॒ज्ञे । सु॒ऽदास॑म् । प्र । आ॒व॒त् । इन्द्रः॑ । ब्रह्म॑णा । वः॒ । व॒सि॒ष्ठाः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवेन्नु कं सिन्धुमेभिस्ततारेवेन्नु कं भेदमेभिर्जघान। एवेन्नु कं दाशराज्ञे सुदासं प्रावदिन्द्रो ब्रह्मणा वो वसिष्ठाः ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एव। इत्। नु। कम्। सिन्धुम् एभिः। ततार। एव। इत्। नु। कम्। भेदम्। एभिः। जघान। एव। इत्। नु। कम्। दाशऽराज्ञे। सुऽदासम्। प्र। आवत्। इन्द्रः। ब्रह्मणा। वः। वसिष्ठाः ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 33; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः किं किं कुर्य्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे वसिष्ठा ! इन्द्रोऽयमेभिः कमेवेत्सिन्धुं नु ततार एभिः कमेवेन्नु जघान दाशराज्ञे कमेवेद् भेदं ब्रह्मणा नु प्रावत् सुदासं वो युष्माँश्च नु प्रावत् ॥३॥

    पदार्थः

    (एव) (इत्) अपि (नु) क्षिप्रम् (कम्) (सिन्धुम्) नदीम् (एभिः) उत्तमैर्विद्वद्भिः (ततार) तरेत् (एव) (इत्) (नु) (कम्) (भेदम्) भेदनीयं विदारणीयम् (एभिः) (जघान) हन्यात् (एव) (इत्) (नु) (कम्) (दाशराज्ञे) यो दाशति सुखं ददाति राजा तस्मै (सुदासम्) सुष्ठु दातारं सेवकं वा (प्र) (आवत्) प्रकर्षेण रक्षेत् (इन्द्रः) परमैश्वर्यो जनः (ब्रह्मणा) धनेन (वः) युष्मान् (वसिष्ठाः) अतिशयेन ब्रह्मचर्ये कृतवासाः ॥३॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या नौकाभिः समुद्रादिकं सद्यस्तरेयुर्वीरैः शत्रून् क्षिप्रं विनाशयेयू राज्ञो राष्ट्रस्य च रक्षाः सर्वदा कुर्य्युस्ते माननीया भवेयुः ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्या क्या-क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (वसिष्ठाः) अत्यन्त ब्रह्मचर्य के बीच जिन्होंने वास किया, वह हे विद्वानो ! (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् यह जन (एभिः) उत्तम विद्वानों के साथ (कम्, एव, इत्) किसी (सिन्धुम्) नदी को भी (नु) शीघ्र (ततार) तरे (एभिः) इन उत्तम विद्वानों के साथ (कम्, एव, इत्) किसी को भी (नु) शीघ्र (जघान) मारे (दाशराज्ञे) जो सुख देता है उस के लिये (कम्, एव, इत्) किसी (भेदम्) विदीर्ण करने योग्य को भी (ब्रह्मणा) धन से (नु) शीघ्र (प्र, आवत्) अच्छे प्रकार रक्खे और (सुदासम्) अच्छे देनेवाले वा सेवक को तथा (वः) तुम लोगों को भी (नु) शीघ्र रक्खे ॥३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य नौकादिकों से समुद्रादिकों को अच्छे प्रकार शीघ्र तरें, वीरों से शत्रुओं को शीघ्र विनाशें, राजा और राज्य की रक्षा करें, वे मान करने योग्य हों ॥३॥

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    विषय

    उनके कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( वसिष्ठाः ) राष्ट्र में बसे उत्तम प्रजाजनो ! वा अपने बाहुबल से प्रजा को सुखपूर्वक उत्तम रीति से बसाने वाले वीर पुरुषो ! वा आचार्य के अधीन खूब ब्रह्मचर्य पूर्वक वास कर विद्याभ्यास करने हारे जनो ! ( वः एभिः ) आप लोगों में से ही इन कुछ जनों की सहायता से (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् पुरुष ( सिन्धुं नु कं ततार इत् ) बड़े भारी समुद्र को भी पार करे, ( एभिः ) इन विशेष जनों सहित ( भेदं नु कं ततार एव इत्) फूट डालने वाले वा मेधवत् शत्रु को भी पार करे । (वः ब्रह्मणा ) आप लोगों के बल, धन और ज्ञान से ही वह ( दाशराज्ञे ) सुख देने वाले राजा के लिये ( एव नु कं ) भी ( सुदासं ) उत्तमदानशील प्रजा की ( प्रावत् ) रक्षा करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    संस्तवो वसिष्ठस्य सपुत्रस्येन्द्रेण वा संवादः ॥ १ – ९ वसिष्ठपुत्राः । १०-१४ वसिष्ठ ऋषिः ।। त एव देवताः ।। छन्दः–१, २, ६, १२, १३ त्रिष्टुप् । ३, ४, ५, ७, ९, १४ निचृत् त्रिष्टुप् । १० भुरिक् पंक्तिः ॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    राष्ट्र में फूट न पड़े

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (वसिष्ठा:) = राष्ट्र में बसे प्रजाजनो ! (वः एभिः) = आप में से ही इन जनों की सहायता से (इन्द्रः) = ऐश्वर्यवान् पुरुष (सिन्धुं नु कं ततार इत्) = बड़े समुद्र को भी पार करे (एभिः) = इन विशेष जनों सहित (भेदं नु कं ततार एव इत्) = फूट डालनेवाले शत्रु को भी पार करे। (वः ब्रह्मणा) = आप लोगों के बल, ज्ञान से ही वह (दाशराज्ञे) = सुखदाता राजा के लिये (एव नु कं) = भी (सुदासं) = उत्तम दानशील प्रजा की (प्रावत्) = रक्षा करे।

    भावार्थ

    भावार्थ- समस्त प्रजा, गुरुकुलों के ब्रह्मचारी, समस्त सेना व सेनापति मिलकर विदेशों से ऐश्वर्य लाकर राष्ट्र व राजा को ऐश्वर्य सम्पन्न बनानेवाले उत्तम विद्वानों का सहयोग करें। राष्ट्र के अन्दर देश-द्रोही दुष्प्रचार के द्वारा राष्ट्र में फूट पैदा न कर सकें इसके प्रति भी राजा, सेना व प्रजा सावधान रहें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे नौका इत्यादींनी समुद्रातून चांगल्या प्रकारे शीघ्र तरून जातात, वीरांकडून शत्रूंचा शीघ्र नाश करतात, राजा व राज्याचेही रक्षण करतात ती मान देण्यायोग्य असतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This way, for sure, Indra, leader of knowledge and power, crosses with ease any river of difficulty by virtue of these scholars. This way too he easily overcomes difference, division and disunity. This way, again, O scholars and leaders settled at peace, by your vision, wisdom and mantric formulae, he defends and promotes generous rules for the advancement of good government and administration.

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