Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 38 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 38/ मन्त्र 9
    ऋषिः - श्यावाश्वः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒वा वा॑मह्व ऊ॒तये॒ यथाहु॑वन्त॒ मेधि॑राः । इन्द्रा॑ग्नी॒ सोम॑पीतये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व । वा॒म् । अ॒ह्वे॒ । ऊ॒तये॑ । यथा॑ । अहु॑वन्त । मेधि॑राः । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । सोम॑ऽपीतये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवा वामह्व ऊतये यथाहुवन्त मेधिराः । इन्द्राग्नी सोमपीतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एव । वाम् । अह्वे । ऊतये । यथा । अहुवन्त । मेधिराः । इन्द्राग्नी इति । सोमऽपीतये ॥ ८.३८.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 38; मन्त्र » 9
    अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra and Agni, leaders of the nation’s light and fire energy, just as holy scholars and sages invoke you for protection and promotion, so do I invoke and call upon you to come and join us at the soma session of our yajna.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाने विद्वान व मूर्ख दोघांची विनंती लक्षपूर्वक ऐकावी ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तदेवाह ।

    पदार्थः

    हे इन्द्राग्नी ! यथा । मेधिराः=मेधाविनः । वाम् । अहुवन्त=आह्वयन्ति । एवमहमपि । ऊतये=साहाय्याय । सोमपीतये च । अह्वे=आह्वयामि ॥९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    पुनः उसी विषय को कहते हैं ।

    पदार्थ

    (इन्द्राग्नी) हे राजन् तथा दूत ! (यथा) जैसे जिस नियमानुसार (मेधिराः) मेधाविगण (वाम्+अहुवन्त) आपको निमन्त्रित करते हैं, (एव) वैसे ही मैं भी (ऊतये) साहाय्य और (सोमपीतये) सोमपान के लिये आपको बुलाता हूँ ॥९ ॥

    भावार्थ

    राजा को उचित है कि विद्वानों और मूर्खों, दोनों की विनती ध्यान से सुनें ॥९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उनके तुल्य परस्पर सहायकों और विद्वानों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    ( यथा ) जिस प्रकार ( मेधिरा ) विद्वान् मतिमान्, मेधावी पुरुष ( वाम् ) आप दोनों को अपने पास (सोम-पीतये) ज्ञान ग्रहण और वीर्य पालन के लिये ( आहुवन्त ) बुलाते रहें। हे ( इन्द्राग्नी ) सूर्याग्निवत् तेजस्वी जनो ! ( एवा ) उसी प्रकार मैं भी ( वाम् ) आप दोनों को ( सोम-पीतये ) ऐश्वर्य और पुत्र प्रजादि के उपभोग और पालन के लिये बुलाता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः १, २, ४, ६, ९ गायत्री। ३, ५, ७, १० निचृद्गायत्री। ८ विराड् गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मेधिर की तरह

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्राग्नी) = बल व प्रकाश के दिव्यभावो ! मैं (वाम्) = आप दोनों को (ऊतये) = रक्षण के लिए (एवा) = इस प्रकार (अह्वे) = पुकारता हूँ, (यथा) = जैसे (मेधिराः) = बुद्धिमान् पुरुष (अहुवन्त) = पुकारते हैं । [२] हे इन्द्राग्नी! आप (सोमपीतये) = मेरे जीवन में सोम के रक्षण के लिए होते हो।

    भावार्थ

    भावार्थ:- बल व प्रकाश का आराधन हमारे जीवन में सोमरक्षण करता हुआ हमारा रक्षण करता है। हमें रोगों व वासनाओं से आक्रान्त होने से बचाता है। ऋषिः

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top