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वेद सौरभ - स्वामी जगदीश्वरानन्द - हिन्दी - हिन्दी
प्रस्तावना
वेद वैदिक सभ्यता और संस्कृति के प्राण हैं । वेद प्रभुप्रदत्त दिव्य ज्ञान है । वेद वह दिव्य ज्ञान है जिसपर न केवल भारतीय विद्वान् अपितु पाश्चात्य विद्वान् भी मोहित हैं । वेद वह दिव्य ज्ञान - भण्डार है जिसे पढ़कर विदेशी भी उनके समक्ष नतमस्तक हो जाते हैं । २६वीं प्राच्य विद्या कांग्रेस में व्याख्यान देते हुए पाल थीमा ने वेद के सम्बन्ध में सुन्दर उद्गार प्रकट किये थे। उन्होंने कहा था ~
"The Vedas are noble documents-documents not only of value and pride to India, but to the entire humanity because in them we see man attempting to lift himself above the earthly existence."
"Vedas are in fact the link between prehistory and the history of India."
(Prof. Paul Thiema of Ubingen University 26th Intrernational Congress of Orientalists Hindustan Times, 6 January 1964. )
"वेद वे पवित्र ग्रन्थ हैं जो न केवल भारतवर्ष के लिए अपितु समस्त संसार के लिए मूल्यवान् हैं क्योंकि हम उनमें मनुष्य को सांसारिकता से ऊपर उठने (मोक्ष प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए पाते हैं ।
वस्तुतः वेद प्रागैतिहासिक काल और भारतीय इतिहास के मध्य एक कड़ी है ।"
*आर्य सिद्धान्त प्रागैतिहास काल नहीं मानता ।
श्री पावणी महोदय ने वेद के सम्बन्ध में लिखा है~
"The Veda is the fountainhead of knowledge, the prime source of inspiration, and the grand repository of pithy passages of divine wisdom and eternal truth."
(Vedic India-Mother of Parliaments, P. 136.)
" वेद सम्पूर्ण ज्ञान का आदिस्त्रोत है। ईश्वरीय ज्ञान का प्रधान आधार है। इतना ही नहीं अपितु दिव्य-बुद्धि और सत्यमय सारयुक्त वाक्यों का महान् भण्डार है ।"
वेद की शिक्षाएं बहुत ही उदात्त एवं महान् हैं । प्रत्येक मन्त्र जीवन के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करता है । प्रस्तुत पुस्तक में चारों वेदों का मन्थन करके उनका इत्र, उनकी दिव्य-गन्ध को 'वेद - सौरभ' के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। विभिन्न विषयों पर १५४ मन्त्रों का संकलन यहाँ दिया गया है । प्रत्येक मन्त्र ओजस्वी और तेजस्वी भावनाओं से भरपूर है । पुस्तक का अध्ययन कीजिए । एक-एक मन्त्र पर चिन्तन और मनन कीजिए । मन्त्र की शिक्षाओं को अपने जीवन का अङ्ग बनाने का प्रयत्न कीजिए | वेद के सौरभ हे आपके जीवन में भी सुरभि आएगी । यदि एक भी पाठक, इस पुस्तक के स्वाध्याय से अपने जीवन को सौरभयुक्त कर सका तो मैं अपने परिश्रम को धन्य समझुंगा ।
यदि पाठकों ने अपनी सम्मतियाँ भेजकर मेरा उत्साह बढ़ाया तो इस प्रकार के और भी ग्रन्थ देने का प्रयत्न करूंगा ।
द्वितीय संस्करण के सम्बन्ध में
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि मेरे संन्यासाश्रम - प्रवेश के अवसर पर पुस्तक का द्वितीय संस्करण छप रहा है । आशा है पाठक पूर्व की भाँति इस संस्करण का भी स्वागत करेंगे ।
स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती १६. २.७५