Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 13

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 10
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    3

    तव॑ भ्र॒मास॑ऽ आशु॒या प॑त॒न्त्यनु॑ स्पृश धृष॒ता शोशु॑चानः। तपू॑ष्यग्ने जु॒ह्वाड्ट पत॒ङ्गानस॑न्दितो॒ विसृ॑ज॒ विष्व॑गु॒ल्काः॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तव॑। भ्र॒मासः॑। आ॒शु॒येत्या॑शु॒या। प॒त॒न्ति॒। अनु॑। स्पृ॒श॒। धृ॒ष॒ता। शोशु॑चानः। तपू॑षि। अ॒ग्ने॒। जु॒ह्वा᳖। प॒त॒ङ्गान्। अस॑न्दित॒ इत्यस॑म्ऽदितः। वि। सृ॒ज॒। विष्व॑क्। उ॒ल्काः ॥१० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तव भ्रमास आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः । तपूँष्यग्ने जुह्वा पतङ्गानसन्दितो विसृज विष्वगुल्काः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तव। भ्रमासः। आशुयेत्याशुया। पतन्ति। अनु। स्पृश। धृषता। शोशुचानः। तपूषि। अग्ने। जुह्वाड्ट। पतङ्गान्। असन्दित इत्यसम्ऽदितः। वि। सृज। विष्वक्। उल्काः॥१०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स किं कुर्य्यादित्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे सेनापतेऽग्ने! शोशुचानस्त्वं ये तव भ्रमासो यथा विष्वगाशुयोल्कास्तथा शत्रुषु पतन्ति, तान् धृषताऽनुस्पृश। असन्दितोऽखण्डितः सन् जुह्वाग्नेस्तपूंषीव शत्रूणामुपरि सर्वतो विद्युतो विसृज पतङ्गान् सुशिक्षितानश्वान् कुरु॥१०॥

    पदार्थः

    (तव) (भ्रमासः) भ्रमणशीला वीराः (आशुया) शीघ्रगमनाः। अत्र जसः स्थाने यादेशः (पतन्ति) श्येनवच्छत्रुदले संचरन्ति (अनु) (स्पृश) अनुगतो भव (धृषता) दृढेन सैन्येन (शोशुचानः) भृशं पवित्राचरणः (तपूंषि) तापाः (अग्ने) अग्निरिव वर्त्तमान (जुह्वा) आज्यहवनसाधनया (पतङ्गान्) अश्वान्। पतङ्गा इत्यश्वनामसु पठितम्॥ (निघं॰१।१४) (असन्दितः) अखण्डितः (वि) (सृज) निष्पादय (विष्वक्) सर्वतः (उल्काः) विद्युत्पाताः॥१०॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। राजसेनापतिसेनाभृत्यैः परस्परं प्रीत्या बलं संवर्ध्य वीरान् हर्षयित्वा संयोध्याग्न्याद्यस्त्रैः शतघ्न्यादिभिश्च शत्रूणामुपरि विद्युद्वृष्टिः कार्य्या, यतः सद्यो विजयः स्यात्॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह सेनापति क्या करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) अग्नि के समान तेजस्वी सेनापते! (शोशुचानः) अत्यन्त पवित्र आचरण करने हारे आप जो (तव) आप के (भ्रमासः) भ्रमणशील वीर पुरुष जैसे (विष्वक्) सब ओर से (आशुया) शीघ्र चलनेहारी (उल्काः) बिजुली की गतियां वैसे (पतन्ति) श्येनपक्षी के समान शत्रुओं के दल में तथा शत्रुओं में गिरते हैं, उनको (धृषता) दृढ़ सेना से (अनु) अनुकूल (स्पृश) प्राप्त हूजिये और (असन्दितः) अखण्डित हुए (जुह्वा) घी के हवन का साधन लपट अग्नि के (तपूंषि) तेज के समान शत्रुओं के ऊपर सब ओर से बिजुली को (विसृज) छोडि़ये और (पतङ्गान्) घोड़ों को सुन्दर शिक्षायुक्त कीजिये॥१०॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सेनापति और सेना के भृत्यों को चाहिये कि आपस में प्रीति के साथ बल बढ़ा वीर पुरुषों को हर्ष दें और सम्यक् युद्ध करा के अग्नि आदि अस्त्रों और भुशुण्डी आदि शस्त्रों से शत्रुओं के ऊपर बिजुली की वृष्टि करें, जिस से शीघ्र विजय हो॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वीर सैनिकों का तीव्र धावा, तीव्र अश्वारोहियों का धावा, नामक अस्त्रो का प्रयोग ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! जिगीषो ! ( तव ) तेरे ( आशुया ) शीघ्र गमन करने वाले ( भ्रमासः ) भ्रमणशील वीर जन ( पतन्ति ) वेग से जायें और तू ( शोशुचानः ) अति तेजस्वी होकर ( धृषता ) शत्रु के मान नष्ट करने में समर्थ बल से युक्त होकर ( अनु स्पृश ) उनके पीछे लगा रह । हे ( अग्ने ) अग्नि के समान तेजस्विन्! राजन् ! सेनानायक ! तू (असंदितः) शत्रु के जाल में न पड़ कर अखण्डित बल होकर ( जुह्वा ) शस्त्रों को प्रेरण करने वाली सेना से ( तपूंषि ) सन्तापकारी अस्त्रों को ( विसृज ) नाना प्रकार से छोड़ । ( पतङ्गान् ) तीव्र घोड़ों को या घुड़सवारों को या बाणों को ( विसृज ) छोड़ | और ( विश्वग् ) सब ओर ( उल्काः ) टूटते तारों के समान वेग और दीप्ति से आकाश मार्ग से जाने वाले अग्निमय अशनि नामक अस्त्रों को (वि सृज ) चला ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः । रक्षोहा अग्निर्देवता । भुरिक् पंक्तिः । त्रिष्टुप् वा । पञ्चमो धैवतो वा ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    क्रियाशील जीवन

    पदार्थ

    १. प्रभु वामदेव से ही कह रहे हैं कि (तव) = तेरे (आशुया) = शीघ्र गतिवाले (भ्रमास:) = पादविक्षेप, अर्थात् कार्यक्रम तुझे (पतन्ति) = प्राप्त होते जाते हैं। एक के बाद दूसरा कार्य तेरे जीवन में आता चलता है। तू किसी भी समय अकर्मण्य नहीं होता। २. इस प्रकार निरन्तर क्रियाशीलता से (शोशुचानः) = अपने को निरन्तर दीप्त व पवित्र करता हुआ तू (धृषता) = अपनी धर्षण- शक्ति से (अनुस्पृश) = एक-एक शत्रु को [अभिमृश - उ० ] मसल डाल । काम-क्रोधादि सब शत्रुओं को तू कुचल डाल। ३. हे (अग्ने) = प्रगतिशील जीव ! (जुह्वा) = [ हु दान-अदन] दानपूर्वक अदन- देकर खाने की प्रक्रिया से (तपूंषि) = काम-क्रोधादि सन्तापक शत्रुओं को (पतङ्गान्) = [पतन्तः सन्तो गच्छन्ति इति पिशाचा:- म० ] निरन्तर आक्रमण करते हुए चलते हैं- ऐसे इन राक्षसी भावों से (असन्दित:) = बद्ध न होता हुआ (विसृज) = परे फेंक दे। इस प्रकार परे फेंक दे जैसे आकाश में (विष्वक्) = चारों ओर (उल्का:) = उल्काओं को फेंक दिया गया है। ये काम-क्रोधादि की वृत्तियाँ उल्काओं के समान हैं। इन्हें तू अपने से दूर फेंक दे। ये तेरी क्रियाशीलता से क्षीणशक्ति होकर भाग खड़ी हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ - १. हम क्रियाशील हों। २ क्रियाशीलता से हममें वह धर्षण शक्ति उत्पन्न हो जो सब शत्रुओं को कुचल डालती है। ३. हम दानपूर्वक अदन से सन्तापक व बारम्बार आक्रमण करनेवाले राक्षसी भावों को उल्काओं के तुल्य दूर विनष्ट कर दें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सेनापती व सेनेतील लोकांनी आपापसात प्रेमाने राहून बल वाढवावे. वीर पुरुषांना आनंदित करावे. चांगल्या प्रकारे युद्ध करून अग्नी इत्यादी शस्त्र व भुशुंडी अस्त्रांनी शत्रूंवर विद्युत वर्षाव करावा म्हणजे ताबडतोब विजय प्राप्त होईल.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पुन्हा पुढील मंत्रात तोच विषय (सेनापतीने काय करावे?) वर्णित आहे-

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (अग्ने) अग्नीप्रमाणे तेजस्वी असलेले सेनापती, आपण (शोशुचान:) अत्यंत पवित्र आचरण करणारे आहात. (आम्ही प्रजाजन आपणाकडून अपेक्षणा करतो की राज्यरक्षणासाठी) (तव) आपल्या (भ्रमास:) शीघ्र गतीने हालचाल करणाऱ्या वीर सैनिकांनी (विष्वक्‌) सर्वदिशांनी (आशुया) शीघ्रगतिशील (उल्का:) विजेप्रमाणे हालचाल करून (शत्रुसैन्येवर झटपट तूटून पडावे) आणि (पतन्ति) बहिरीससाणा पक्षी ज्याप्रमाणे (पक्ष्यांवर अपाटा मारतो) तद्वत (पठन्ति) शत्रुसैन्येला पकडावे. आपण त्या वीर दृढ सैनिकांना (अनु) (स्पृश) अनुकूल व्हा. (सैनिकांना मार्गदर्शन करो त्यांचे नेतृत्व सैनिकांना (अनु) (स्पृश) अनुकूल व्हा (सैनिकांना मार्गदर्शन करा त्यांचे नेतृत्व करा) अशा प्रकारे (असद्वित:) अखंडित वा अपराजित राहून (जुह्वा) हवन केलेल्या घृताहुतीने प्रज्वलित होणाऱ्या ज्वाळेच्या (तपूंषि) तेजाप्रमाणे शत्रुसैन्यावर सर्वदिशांनी विद्युत-(विसृज) प्रहार करा आणि (पतड्मन्‌) घोड्यांना प्रशिक्षित करून उत्तम घोडदळ तयार करा ॥10॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. सेनापती आणि सैन्यातील सेवक, कर्मचारी आदी यांना पाहिजे की त्यांनी आपसात स्नेह व सहकार्य असू द्यावे. शक्ति वृद्धी करीत वीर सैनिकांना प्रसन्न ठेवावे. युद्धात सम्यकप्रकारे आग्नेय अस्त्रांनी आणि भुसंडी (तोफ बंदूक) आदी अस्त्रांनी शत्रुसैन्यावर विद्युत वर्षा व अग्नीवर्षा करावी की ज्योयोगे विजय शीघ्र प्राप्त होईल ॥10॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O Commander, specimen of morality, keep thy fast moving brave soldiers, well disciplined in the army. Like the swift movements of lightning, let them fall falcon-like on the enemies. With uninterrupted force, let fire arms, brilliant like the flames of fire fed with ghee, rain over the foes ; and train well thy horses.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    Agni (ruler, commander of the forces, lord of justice), the flames of your fire blaze with awe. Pure and purifying with might and daring, fall upon the forces which burn and destroy life and society, and with libations unrestrained, release a rain of lightning terror striking in all directions.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O divine fire, your swift and whirling flames move quickly. Glowing in your fury, may you consume (the foe). O fire-divine, (when oblations are) offered by ladle, may you cast scorching flames and sparks, and fire-brands all around you. (1)

    Notes

    Bhramasah, भ्रमणा वातोद्धूता ज्वालय समूहा:, flames, sent up by the whirlwind. Fast-moving soldiers (Dayā. ). Pataügan, पतंतो संत: गच्छंतीति पतंगा: पिशाचा: तान्, those who go falling downwards; those who lead their lives to downfall. Or, पतंग इति अश्व नाम (Nigh. І. 14), horses; also horse- men (Daya ). Asanditah, अखण्डित:, unscattered: undivided. Ulkah, ज्वाला:, flames; sparks; fire-brands. विद्युत्पाता;, sparks of lightning (Daya. ).

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ স কিং কুর্য়্যাদিত্যুপদিশ্যতে ॥
    পুনঃ সেই সেনাপতি কী করিবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (অগ্নে) অগ্নির সমান তেজস্বী সেনাপতে ! (শোশুচানঃ) অত্যন্ত পবিত্র আচরণকারী আপনি, যে (তব) আপনার (ভ্রমাসঃ) ভ্রমণশীল বীর পুরুষ যেমন (বিষ্বক্) সব দিক দিয়া (আশুয়া) আশুগামী (উল্কাঃ) বিদ্যুৎগতি সেইরূপ (পতন্তি) শ্যেনপক্ষীর সমান শত্রুদিগের দলে তথা শত্রুদিগের মধ্যে পতিত হয় তাহাদিগকে (ধৃষতা) দৃঢ় সেনা দ্বারা (অনু) অনুকূল (স্পৃশ) প্রাপ্ত হউন এবং (অসন্দিতঃ) অখন্ডিত (জুহ্বা) ঘৃতের হবনের সাধন শিখা অগ্নির (তপূংষি) তেজ সম শত্রুদিগের উপর সকল দিক হইতে বিদ্যুৎকে (বিসৃজ) ছাড়ুন এবং (পতঙ্গান্) অশ্বদেরকে সুন্দর শিক্ষাযুক্ত করুন ॥ ১০ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । রাজা, সেনাপতি এবং সেনার ভৃত্যদিগের উচিত যে, পারস্পরিক প্রীতি সহ বল বৃদ্ধি করিয়া, বীর পুরুষদিগকে আনন্দ প্রদান করিয়া এবং সম্যক্ যুদ্ধ করাইয়া অগ্নি আদি অস্ত্র এবং ভুশুন্ডী আদি শস্ত্র দ্বারা শত্রুদিগের উপর বিদ্যুতের বৃষ্টি করিবে, যাহাতে শীঘ্র বিজয় হয় ॥ ১০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    তব॑ ভ্র॒মাস॑ऽ আশু॒য়া প॑ত॒ন্ত্যনু॑ স্পৃশ ধৃষ॒তা শোশু॑চানঃ ।
    তপূ॑ᳬंষ্যগ্নে জু॒হ্বা পত॒ঙ্গানস॑ন্দিতো॒ বিসৃ॑জ॒ বিষ্ব॑গু॒ল্কাঃ ॥ ১০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    তব ভ্রমাস ইত্যস্য বামদেব ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ভুরিক্ পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top