यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 22
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - सोमादयो देवताः
छन्दः - विराड बृहती
स्वरः - मध्यमः
2
सोमा॑य ह॒ꣳसानाल॑भते वा॒यवे॑ ब॒लाका॑ऽइन्द्रा॒ग्निभ्यां॒ क्रुञ्चा॑न् मि॒त्राय॑ म॒द्गून् वरु॑णाय चक्रवा॒कान्॥२२॥
स्वर सहित पद पाठसोमा॑य। ह॒ꣳसान्। आ। ल॒भ॒ते॒। वा॒यवे॑। ब॒लाकाः॑। इ॒न्द्रा॒ग्निभ्या॒मिती॑न्द्रा॒ग्निऽभ्या॑म्। क्रुञ्चा॑न्। मि॒त्राय॑। म॒द्गून्। वरु॑णाय। च॒क्र॒वा॒कानिति॑ चक्रऽवा॒कान् ॥२२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमाय हँसानालभते वायवे बलाका इन्द्राग्निभ्याङ्क्रुञ्चान्मित्राय मद्गून्वरुणाय चक्रवाकान् ॥
स्वर रहित पद पाठ
सोमाय। हꣳसान्। आ। लभते। वायवे। बलाकाः। इन्द्राग्निभ्यामितीन्द्राग्निऽभ्याम्। क्रुञ्चान्। मित्राय। मद्गून्। वरुणाय। चक्रवाकानिति चक्रऽवाकान्॥२२॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यथा पक्षिगुणविज्ञानी जनः सोमाय हंसान् वायवे बलाका इन्द्राग्निभ्यां क्रुञ्चान् मित्राय मद्गून् वरुणाय चक्रवाकानालभते तथा यूयमप्यालभध्वम्॥२२॥
पदार्थः
(सोमाय) चन्द्रायौषधिराजाय वा (हंसान्) पक्षिविशेषान् (आ, लभते) (वायवे) (बलाकाः) बलाकानां स्त्रियः (इन्द्राग्निभ्याम्) (क्रुञ्चान्) सारसान् (मित्राय) (मद्गून्) जलकाकान् (वरुणाय) (चक्रवाकान्)॥२२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्य उत्तमाः पक्षिणः सन्ति, ते प्रयत्नेन संपाल्य वर्द्धनीयाः॥२२॥
हिन्दी (2)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! जैसे पक्षियों के गुण का विशेष ज्ञान रखने वाला पुरुष (सोमाय) चन्द्रमा वा औषधियों में उत्तम सोम के लिये (हंसान्) हंसों (वायवे) पवन के लिये (बलाकाः) बगुलियों (इन्द्राग्निभ्याम्) इन्द्र और अग्नि के लिये (क्रुञ्चान्) सारसों (मित्राय) मित्र के लिये (मद्गून्) जल के कौओं वा सुतरमुर्गों और (वरुणाय) वरुण के लिये (चक्रवाकान्) चकई-चकवों को (आ, लभते) अच्छे प्रकार प्राप्त होता है, वैसे तुम भी प्राप्त होओ॥२२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को जो उत्तम पक्षी हैं, वे अच्छे यत्न के साथ पालन कर बढ़ाने चाहियें॥२२॥
विषय
भिन्न-भिन्न गुणों और विशेष हुनरों के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना पक्षियों और जानवरों के चरित्रों का अध्ययन और संग्रह ।
भावार्थ
( सोमाय हंसान् ) राजा के विनोद या चांदनी में या जल की शोभा के लिये, हंस को प्राप्त करे । ( वायवे बलाकान् ) वायु में बलाका या बकपंक्तियां देखे | (इन्द्राग्निभ्यां क्रञ्चान् ) इन्द्र, सूर्य और अग्नि के अवसरों पर क्रञ्च नाम पक्षी देखे । (मित्राय मद्गून् ) सूर्य या सुखद जलाशय के निमित्त या मित्रता के लिये मद्गु नामक छोटे हंस को देखे । और ( वरुणाय चक्रवाकान् ) परस्पर प्रेमपूर्वक वरण के निमित्त चकवों को देखे । हंस, बलाका, क्रञ्च आदि पक्षी उन स्थानों पर जिस- जिस विशेषता को रखते हैं उन-उन विशेषताओं का ज्ञान और अध्ययन करे ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सामादयः । विराड् बृहती । मध्यमः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी प्रयत्नपूर्वक उत्तम पक्ष्यांचे पालन केले पाहिजे व त्यांची वाढ केली पाहिजे.
विषय
पुनश्च, त्याच विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, ज्याप्रकारे पक्ष्यांच्या गुणांचे (त्यांच्या स्वभावाचे, प्रवृत्तीचे) ज्ञान असणारा मनुष्य (सोमाय) चंद्रमा अथवा औषधींमधे उत्तम अशा सोम-औषधीसाठी (हंसान्) हंस पक्ष्यांचे (पालन करतो) (वायवे) पवनासाठी (बलाकाः) बगळा बलाक पक्ष्याची स्त्री (पाळतो) (इन्द्राग्निभ्याम्) इन्द्र और अग्नीसाठी (क्रुञ्चान्) (सारस) पक्ष्यांचे पालन करतो (मित्राय) मित्रासाठी (सूर्यासाठी (मद्गून्) जलकाकसा शहामृग पक्ष्याचे पालन करतो आणि (वरूणाय) वरूणासाठी (चक्रवाकान्) (चकवा-चकवी) पक्षी पाळतो, तद्वत हे मनुष्यांनो, तुम्हीही करीत जा. ॥22॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. जे जे उत्तम म्हणजे मनुष्यासाठी उपकारक पक्षी आहेत, लोकांनी ते पक्षी पाळावेत. ॥22॥
इंग्लिश (3)
Meaning
An expert in the knowledge of birds finds geese revelling in moonshine ; female cranes near fire ; water-crows in the sun ; ruddy geese loving each other.
Meaning
The bird-expert takes up the hansa, geese, in relation to Soma, beauty and joy, the she-crane in relation to Vayu, breeze and pleasure, the krauncha in relation to Indragni, the warmth of fire and vibrations of energy, the madgu in relation to Mitra, sun and water, and the chakravaka in relation to Varuna, the love and vastness of space.
Translation
Не secures swans for Soma, she-cranes for Vayu, curlews for Indra-Agni, divers for Mitra and the cakravaka (Anas Casarca) for Varuna. (1)
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ– হে মনুষ্যগণ! যেমন পক্ষিদের গুণের বিশেষ জ্ঞান রক্ষাকারী পুরুষ (সোমায়) চন্দ্র বা ওষধিসকলের মধ্যে উত্তম সোমের জন্য (হংসান্) হংসগুলি (বায়বে) পবনের জন্য (বলাকাঃ) বলাকাগুলি (ইন্দ্রাগ্নিভ্যাম্) ইন্দ্র ও অগ্নির জন্য (ক্রুঞ্চান্) সারসগুলি (মিত্রায়) মিত্রের জন্য (মদ্গূন্) জলের কাক বা ঊটপক্ষী এবং (বরুণায়) বরুণের জন্য (চক্রবাকান্) চক্রবাকী চক্রবাককে (আ, লভতে) উত্তম প্রকার প্রাপ্ত হয় সেইরূপ তুমিও প্রাপ্ত হও ॥ ২২ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । মনুষ্যদের যে উত্তম পক্ষী আছে তাহাদের উত্তম প্রযত্ন সহ পালন করিয়া বৃদ্ধি করা দরকার ॥ ২২ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
সোমা॑য় হ॒ꣳসানা ল॑ভতে বা॒য়বে॑ ব॒লাকা॑ऽইন্দ্রা॒গ্নিভ্যাং॒ ক্রুঞ্চা॑ন্ মি॒ত্রায়॑ ম॒দ্গূন্ বর॑ুণায় চক্রবা॒কান্ ॥ ২২ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
সোমায়েত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । সোমাদয়ো দেবতাঃ । বিরাড্বৃহতী ছন্দঃ ।
মধ্যমঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal