यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 23
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - अग्न्यादयो देवताः
छन्दः - पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
3
अ॒ग्नये॑ कु॒टरू॒नाल॑भते॒ वन॒स्पति॑भ्य॒ऽउलू॑कान॒ग्नीषोमा॑भ्यां॒ चाषा॑न॒श्विभ्यां॑ म॒यूरा॑न् मि॒त्रावरु॑णाभ्यां क॒पोता॑न्॥२३॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्नये॑। कु॒टरू॑न्। आ। ल॒भ॒ते॒। वन॒स्पति॑भ्य॒ इति॑ वन॒स्पति॑ऽभ्यः। उलू॑कान्। अ॒ग्नीषोमा॑भ्याम्। चाषा॑न्। अ॒श्विभ्या॒मित्य॒श्विऽभ्या॑म्। म॒यूरा॑न्। मि॒त्रावरु॑णाभ्याम्। क॒पोता॑न् ॥२३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्नये कुटरूनालभते वनस्पतिभ्यऽउलूकानग्नीषोमाभ्याञ्चाषानश्विभ्याम्मयूराभ्याङ्कपोतान् ॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्नये। कुटरून्। आ। लभते। वनस्पतिभ्य इति वनस्पतिऽभ्यः। उलूकान्। अग्नीषोमाभ्याम्। चाषान्। अश्विभ्यामित्यश्विऽभ्याम्। मयूरान्। मित्रावरुणाभ्याम्। कपोतान्॥२३॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्या यथा पक्षिगुणविज्जनोऽग्नये कुटरून् वनस्पतिभ्य उलूकानग्नीषोमाभ्यां चाषानश्विभ्यां मयूरान् मित्रावरुणाभ्यां कपोतानालभते, तथैतान् यूयमप्यालभध्वम्॥२३॥
पदार्थः
(अग्नये) पावकाय (कुटरून्) कुक्कुटान् (आ) (लभते) (वनस्पतिभ्यः) (उलूकान्) (अग्नीषोमाभ्याम्) (चाषान्) (अश्विभ्याम्) (मयूरान्) (मित्रावरुणाभ्याम्) (कपोतान्)॥२३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये कुक्कुटादीनां पक्षिणां गुणान् जानन्ति, ते सदैतान् वर्धयन्ति॥२३॥
हिन्दी (2)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! जैसे पक्षियों के गुण जानने वाला जन (अग्नये) अग्नि के लिये (कुटरून्) मुर्गों (वनस्पतिभ्यः) वनस्पति अर्थात् विना पुष्प-फल देने वाले वृक्षों के लिये (उलूकान्) उल्लू पक्षियों (अग्नीषोमाभ्याम्) अग्नि और सोम के लिये (चाषान्) नीलकण्ठ पक्षियों (अश्विभ्याम्) सूर्य-चन्द्रमा के लिये (मयूरान्) मयूरों तथा (मित्रावरुणाभ्याम्) मित्र और वरुण के लिये (कपोतान्) कबूतरों को (आ, लभते) अच्छे प्रकार प्राप्त होता है, वैसे इनको तुम भी प्राप्त होओ॥२३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मुर्गा आदि पक्षियों के गुणों को जानते हैं, वे सदा इनको बढ़ाते हैं॥२३॥
विषय
भिन्न-भिन्न गुणों और विशेष हुनरों के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना पक्षियों और जानवरों के चरित्रों का अध्ययन और संग्रह ।
भावार्थ
(अग्नये ) अग्नि के प्रयोग के लिये ( कुटरून् ) कुटरू नामक मुर्गा, पक्षियों को (आलभते ) प्राप्त करे ।(वनस्पतिभ्यः उलूकान् ) वनस्पतियों के ज्ञान के लिये उल्लू जाति के पक्षियों को प्राप्त करे, उनके जीवन का अनुशीलन करे । (अग्नीषोमाभ्याम् ) अग्नि और जल की परीक्षा के लिये ( चाषान् ) चाष नामक पक्षियों को देखे । ( अश्विभ्यां मयूरान् ) स्त्री पुरुषों के संयमी और प्रेमी और सुन्दर सुखप्रद आलाप के लिये ( मयूरान् ) मयूरों को देखे । ( मित्रावरुणाभ्यां - कपोतान् ) मित्र और वरुण अर्थात् मित्रता, स्नेह और परस्पर वरण के लिये ( कपोतान् ) कपोत नाम पक्षियों को देखे ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पंक्तिः । पंचमः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक कोंबडे इत्यादी पक्षांचे गुण जाणतात ते सदैव त्यांची वाढ करतात.
विषय
पुनश्च, तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ -हे मनुष्यांनो, जसे पक्ष्यांची गुण आणि स्वभाव जाणणारा पक्षीपालक मनुष्य, (अग्नेय) अग्नीसाठी (कुटरून्) कोंबडी (बाळतो, म्हणजे त्यांच्यातील लाभ घेऊन त्यांची हत्या न करता त्यांच्या पासून लाभ घेतो) तसेच जसे (वनस्पतिभ्यः) वनस्पतीसाठी फुले-फळें नसणार्या वा ज्यावर फळे-फुले येत नाहीत, अशा वृक्षादीसाठी (उलूकान्) उलूकादीची (व्यवस्त्रा करतो) (अग्नीषोमाभ्यां) अग्नी आणि सोम यांसाठी (चाषान्) नीळकंठ पक्ष्यांना (सांभाळतो) तसेच (अश्विभ्याम्) सूर्यचंद्रासाठी (मयूरान्) मोर (पाळतो) आणि (मित्रावरुणाभ्याम्) मित्र व वरूण यांच्यासाठी (कपोतान्) कबूतरें चांगल्याप्रकारे प्राप्त करतो (व या सर्व पक्ष्यांचे सांभाळ आणि संवर्धन करतो) तसे, हे मनुष्यांनो, तुम्हीही करा ॥23॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. कोंबडा आदी पक्ष्यांचे गुण ज्या लोकांना माहीत आहेत, ते अशा पक्ष्यांचे पालन आणि वंशवर्धन करतात. ॥23॥
इंग्लिश (3)
Meaning
An expert in the knowledge of birds finds cocks enjoying the warmth of fire ; owls sitting on fruitless trees ; blue jays enjoying the sun and Soma ; peacocks sun and moon ; pigeons fond of affection and mutual liking.
Meaning
The specialist in birds and bird behaviour takes up the cocks for Agni, the owls for the Vanaspati, trees, the blue jays for Agni and Soma, the peacocks for the Ashvinis, and the pigeons for Mitra and Varuna.
Translation
He procures cocks for Agni, owls for Vanaspatis (Lords of forests), blue jays for Agni-Soma, peacocks for Asvins and pigeons for Mitra Varuna. (1)
बंगाली (1)
विषय
পুস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ– হে মনুষ্যগণ! যেমন পক্ষীদের গুণ জ্ঞাতা ব্যক্তি (অগ্নয়ে) অগ্নির জন্য (কুটরূন্) কুক্কুটগুলি (বনস্পতিভ্যঃ) বনস্পতি অর্থাৎ পুষ্প ব্যতীত ফলদাতা বৃক্ষের জন্য (উলূকান্) পেচক পক্ষীদের (অগ্নিষোমাভ্যাম্) অগ্নি ও সোমের জন্য (চাষান্) নীলকণ্ঠ পক্ষীদের (অশ্বিভ্যাম্) সূর্য্য চন্দ্রের জন্য (ময়ূরান্) ময়ূর তথা (মিত্রাবরুণাভ্যাম্) মিত্র ও বরুণের জন্য (কপোতান্) কপোতগুলিকে (আ, লভতে) উত্তম প্রকার প্রাপ্ত হয়, সেইরূপ ইহাদেরকে তুমিও প্রাপ্ত হও ॥ ২৩ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যাহারা কুক্কুটাদি পশুপক্ষীর গুণকে জানে তাহারা সর্বদা ইহাদেরকে বৃদ্ধি করে ॥ ২৩ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
অ॒গ্নয়ে॑ কু॒টরূ॒না ল॑ভতে॒ বন॒স্পতি॑ভ্য॒ऽউলূ॑কান॒গ্নীষোমা॑ভ্যাং॒ চাষা॑ন॒শ্বিভ্যাং॑ ম॒য়ূরা॑ন্ মি॒ত্রাবর॑ুণাভ্যাং ক॒পোতা॑ন্ ॥ ২৩ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
অগ্নয় ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । অগ্ন্যাদয়ো দেবতাঃ । পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
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