यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 40
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - विश्वेदेवादयो देवताः
छन्दः - शक्वरी
स्वरः - धैवतः
4
ख॒ड्गो वै॑श्वदे॒वः श्वा कृ॒ष्णः क॒र्णो ग॑र्द॒भस्त॒रक्षु॒स्ते रक्ष॑सा॒मिन्द्रा॑य सूक॒रः सि॒ꣳहो मा॑रु॒तः कृ॑कला॒सः पिप्प॑का श॒कुनि॒स्ते श॑र॒व्यायै॒ विश्वे॑षां दे॒वानां॑ पृष॒तः॥४०॥
स्वर सहित पद पाठख॒ड्गः। वै॒श्व॒दे॒व इति॑ वैश्वदे॒वः। श्वा। कृ॒ष्णः। क॒र्णः। ग॒र्द॒भः। त॒रक्षुः॑। ते। रक्ष॑साम्। इन्द्रा॑य। सू॒क॒रः। सि॒ꣳहः। मा॒रु॒तः। कृ॒क॒ला॒सः। पिप्प॑का। श॒कुनिः॑। ते। श॒र॒व्या᳖यै। विश्वे॑षाम्। दे॒वाना॑म्। पृ॒ष॒तः ॥४० ॥
स्वर रहित मन्त्र
खङ्गो वैश्वदेवः श्वा कृष्णः कर्णा गर्दभस्तरक्षुस्ते रक्षसामिन्द्राय सूकरः सिँहो मारुताः कृकलासः पिप्पका शकुनिस्ते शरव्यायै विश्वेषान्देवानाम्पृषतः ॥
स्वर रहित पद पाठ
खड्गः। वैश्वदेव इति वैश्वदेवः। श्वा। कृष्णः। कर्णः। गर्दभः। तरक्षुः। ते। रक्षसाम्। इन्द्राय। सूकरः। सिꣳहः। मारुतः। कृकलासः। पिप्पका। शकुनिः। ते। शरव्यायै। विश्वेषाम्। देवानाम्। पृषतः॥४०॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! युष्माभिर्य खड्गः स वैश्वदेवो ये कृष्णः श्वा कर्णो गर्दभस्तरक्षुश्च ते रक्षसां यः सूकरः स इन्द्राय यः सिंहः स मारुतो ये कृकलासः पिप्पका शकुनिश्च ते शरव्यायै ये पृषतस्ते विश्वेषां देवानां विज्ञेयाः॥४०॥
पदार्थः
(खड्गः) तुण्डशृङ्गः पशुविशेषः (वैश्वदेवः) विश्वेषां देवानामयम् (श्वा) कुक्कुरः (कृष्णः) कृष्णगुणविशेषः (कर्णः) दीर्घकर्णः (गर्दभः) पशुविशेषः (तरक्षुः) व्याघ्रः (ते) (रक्षसाम्) (इन्द्राय) विदारकाय (सूकरः) यः सुष्ठु शुद्धिं करोति स बलिष्ठो वराहः (सिंहः) हिंसको व्याघ्रः (मारुतः) मरुद्देवताकः (कृकलासः) सरटः (पिप्पका) पक्षिणी (शकुनिः) (ते) (शरव्यायै) शरवीषु कुशलायै (विश्वेषाम्) अखिलानाम् (देवानाम्) विदुषाम् (पृषतः) मृगविशेषाः॥४०॥
भावार्थः
ये सर्वे पशुपक्षिणः सर्वगुणाः सन्ति, तान् विज्ञाय व्यवहारसिद्धये सर्वे मनुष्या नियोजयन्तामिति॥४०॥
हिन्दी (2)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! तुम को जो (खड्गः) ऊंचे और पैने सींगों वाला गैंडा है, वह (वैश्वदेवः) सब विद्वानों का, जो (कृष्णः) काले रंग वाला (श्वा) कुत्ता (कर्णः) बड़े कानों वाला (गर्दभः) गदहा और (तरक्षुः) व्याघ्र हैं, (ते) वे सब (रक्षसाम्) राक्षस दुष्टहिंसक हवषियों के अर्थ, जो (सूकरः) सुअर है, वह (इन्द्राय) शत्रुओं को विदारने वाले राजा के लिये, जो (सिंहः) सिंह है, वह (मारुतः) मरुत देवता वाला, जो (कृकलासः) गिरगिटान (पिप्पका) पिप्पका नाम की पक्षिणी और (शकुनिः) पक्षिमात्र हैं, (ते) वे सब (शरव्यायै) जो शरवियों में कुशल उत्तम है, उस के लिये और जो (पृषतः) पृषज्जाति के हरिण हैं, वे (विश्वेषाम्) सब (देवानाम्) विद्वानों के अर्थ जानना चाहिये॥४०॥
भावार्थ
जो सब पशु-पक्षी सब गुण भरे हैं, उनको जानकार व्यवहारसिद्धि के लिये सब मनुष्य निरन्तर युक्त करें॥४०॥
भावार्थ
(खड्गः) गैंडा नामक पशु (वैश्वदेवः) समस्त योद्धा पुरुषों के लिये ढाल बनाने के काम का है । अथवा (खडगः) खड्ग, तलवार सब सैनिकों के उपयोग की है। (कृष्ण: श्वा) काला कुत्ता, (कर्ण: गर्दभः) कानों वाला गधा और (तरक्षुः) चीता ये पदार्थ ( रक्षसाम्) दुष्ट पुरुषों से बचने के लिये उनके स्वभाव बतलाते हैं उनके गुणों का अध्ययन करें। (इन्द्राय सूकरः) भूमि विदारण के काम में 'सूकर' सूअर लम्बी थोथन वाला पशु अनुकरणीय है । (सिंहः मारुतः) सिंह, प्रयाण करने वाले योद्धा के लिये वीरता और तीव्रता के लिये अनुकरणीय है । (कृकलासः) कृकलास नाम गिरगिट, (पिप्पका) पिप्पका नाम का छोटा पक्षी और (शकुनिः) शक्तिशाली बड़ा पक्षी, ये तीनों पदार्थ (शरव्यायै) बाण बनाने के उपयोग के और लक्ष्य पर पहुँचने में अनुकरणीय हैं। गिरगिट के समान बाण का मुख पिप्पका के पूंछ के समान बाण की पूंछ और बड़े पक्षियों के पंखों के खण्डों से बाण बनाता है । ( पृषत: विश्वेषां देवानाम् ) पृषत् नामक सामान्य मृग समस्त विद्वानों के लिये मृगछाला आदि के आसन और वस्त्र के कार्य का है, अथवा ये मृगजाति देवतुल्य, उत्तम शान्त स्वभाव के हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वेदेवादयः । शक्करी । धैवतः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
जे पशू पक्षी निरनिराळ्या गुणांनी युक्त असतात. त्यांना जाणून माणसांनी व्यवहार सिद्धीसाठी सदैव त्यांचा उपयोग करावा.
विषय
पुन्हा, तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो (खङ्गः) उंच आणि टोकदार शिंगे असलेला गैंडा (वैश्वदेवः) सर्व विद्वज्जनांसाठी आहे, असे जाणावे. जो (कृष्णः) काळ्या रंगाचा (श्वान) कुत्रा आहे, तसेच जो (कर्णः) लांब व मोठे कान असलेला (गर्दभः) गाढव आणि (तरक्षुः) वाघ (अथवा तरस पशू) आहे (ते) ते सर्व प्राणी (रक्षसाम्) राक्षसाकरिता, दुष्ट आणि हिंसक प्रवृत्तीच्या मनुष्यांकरिता आहेत, असे जाणा. जो (सूकरः) डुक्कर आहे, तो (इन्द्राय) शत्रूंना ठार मारणार्या राजाकरिता तसेच जो (सिंहः) सिंह आहे, तो (मारूतः) मरूत देवतेची गुण असलेला जाणावा. जो (कृकलासः)(गिरगिट) रंग बदलणारा प्राणी म्हणजे सरडा तसेच (पिप्पका) जी पिप्पका नावाची लहानशी चिमणी आणि (शकुनिः) पक्षी (सर्व सामान्य पक्षी) अथवा पक्षीमात्र आहेत, (ते) ते सर्व (शरव्यायै) शरवतया कुशल उत्तम मनुष्यासाठी आहेत आणि जी (पृषतः) पृषग् जातीची हरणें आहेत, ते सर्व प्राणी (विश्वेषाम्) सर्व (देवानाम्) विद्वज्जनांकरिता आहेत, असे जाणावे ॥40॥
भावार्थ
भावार्थ - सर्व पशू-पक्ष्यांमधे जे जे गुण आहेत, ते ओळखून माणसांनी आवश्यक कार्यसिद्धीकरिता त्या गुणांचा उपयोग घेतला पाहिजे. ॥40॥
टिप्पणी
या चोवीसाव्या अध्यायात पशू-पक्षी, सरपटणारे प्राणी साप आदी, वन्य मृग, जलचर प्राणी आणि किडे-मुंग्या मुंगळे आदी कीटकांच्या गुणांचे वर्णन केले आहे. या अध्यायाच्या अर्थाची संगती मागील तेवीसाव्या अध्यायात सांगितलेल्या विषयांशी व अर्थाशी सुसंबद्ध आहे, असे जाणावे. ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Rhinoceros serves all warriors in preparing their shield; the black dog, the long-eared ass, the hyena are used for protection, against the demons ; the boar is for the king who wants to tear asunder the foes, the lion is swift like air ; the chameleon, the Pippaka the vultures are used for making arrows ; the spotted antelope is used for preparing mrigshalas (seats of the deers skin) for all the learned people.
Meaning
The rhino is for Vishvedevas; black dog, long¬ eared ass, the tiger, these are for the demons; the boar is for the king; the lion is for the winds; the chameleon, pippaka and the vulture are for the marksman; the spotted deer is favourite of the noblest persons.
Translation
The rhinoceros (khadga) belongs to Visvedevas; the black dog, the long-eared ass, the hyena, these belong to Raksas (the gaurds); the boar belongs to Indra; the lion belongs to Maruts; the chameleon, the pippaka, the vulture (Sakuni), these belong to Saravya (a woman expert in arrow shooting); and the spotted deer belongs to Visvedevas. (1)
Notes
Pippakā not identified. According to Mahidhata, of these 609 domestic and wild animals assembled for the ceremony, all the wild animals are set free and are not to be harmed.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ– হে মনুষ্যগণ! যে (খড্গঃ) উচ্চ ও তীক্ষ্ন শৃঙ্গ যুক্ত গন্ডার উহা (বৈশ্বদেবঃ) সকল বিদ্বান্দিগের, যে (কৃষ্ণঃ) কৃষ্ণ বর্ণযুক্ত (শ্বা) কুকুর (কর্ণঃ) দীর্ঘকর্ণ (গর্দভঃ) গর্দভ এবং (তরক্ষুঃ) ব্যাঘ্র (তে) উহারা সব (রক্ষসাম্) রাক্ষস দুষ্ট হিংসকদের অর্থ, যে (সূকরঃ) বরাহ উহা (ইন্দ্রায়) শত্রুবিদারক রাজার জন্য, যে (সিংহঃ) সিংহ উহা (মারুতঃ) মরুৎ দেবতাযুক্ত, যে (কৃকলাসঃ) গিরগিটি (পিপ্পকা) পিপ্পকা নামক পক্ষিণী এবং (শকুনিঃ) শকুনি পক্ষীমাত্র (তে) উহারা সব (শরব্যায়ৈ) যে শরবিদের মধ্যে কুশল উত্তম উহার জন্য এবং যে (পৃষতঃ) পৃষজাতির হরিণ উহারা (বিশ্বেষাম্) সব (দেবানাম্) বিদ্বান্দিগের অর্থ তোমাকে জানা উচিত ॥ ৪০ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ– যে সব পশু পক্ষী সব গুণযুক্ত উহাদের জানিয়া ব্যবহারসিদ্ধি হেতু সকল মনুষ্য নিরন্তর যুক্ত করিবে ॥ ৪০ ॥
এই অধ্যায়ে পশুপক্ষী, সরীসৃপ জাতীয় সর্পাদি, বনমৃগ, জলজন্তু এবং কৃমি আদির গুণের বর্ণনা হওয়ায় এই অধ্যায়ের অর্থের গত অধ্যায়ে কথিত অর্থ সহ সংগতি আছে ইহা জানা উচিত ॥
ইতি শ্রীমৎপরমহংসপরিব্রাজকাচার্য়াণাং পরমবিদুষাং শ্রীয়ুতবিরজানন্দসরস্বতীস্বামিনাং শিষ্যেণ পরমহংসপরিব্রাজকাচার্য়েণ শ্রীমদ্দয়ানন্দসরস্বতীস্বামিনা নির্মিতে সুপ্রমাণয়ুক্তে সংস্কৃতার্য়্যভাষাভ্যাং বিভূষিতে
য়জুর্বেদভাষ্যে চতুর্বিংশোऽধ্যায়ঃ পূর্তিমগমৎ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
খ॒ড্গো বৈ॑শ্বদে॒বঃ শ্বা কৃ॒ষ্ণঃ ক॒র্ণো গ॑র্দ॒ভস্ত॒রক্ষু॒স্তে রক্ষ॑সা॒মিন্দ্রা॑য় সূক॒রঃ সি॒ꣳহো মা॑রু॒তঃ কৃ॑কলা॒সঃ পিপ্প॑কা শ॒কুনি॒স্তে শ॑র॒ব্যা᳖য়ৈ॒ বিশ্বে॑ষাং দে॒বানাং॑ পৃষ॒তঃ ॥ ৪০ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
খডগ ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । বিশ্বেদেবাদয়ো দেবতাঃ । শক্বরী ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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