यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 42
ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः
देवता - वीरा देवताः
छन्दः - निचृत् त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
2
ब॒ह्वी॒नां पि॒ता ब॒हुर॑स्य पु॒त्रश्चि॒श्चा कृ॑णेति॒ सम॑नाव॒गत्य॑। इ॒षु॒धिः संङ्काः॒ पृत॑नाश्च॒ सर्वाः॑ पृ॒ष्ठे निन॑द्धो जयति॒ प्रसू॑तः॥४२॥
स्वर सहित पद पाठब॒ह्वी॒नाम्। पि॒ता। ब॒हुः। अ॒स्य॒। पु॒त्रः। चि॒श्चा। कृ॒णो॒ति॒। सम॑ना। अ॒व॒गत्येत्य॑व॒ऽगत्य॑। इ॒षु॒धिरिती॑षु॒ऽधिः। सङ्काः॑। पृत॑नाः। च॒। सर्वाः॑। पृ॒ष्ठे। निन॑द्ध॒ इति॒ निऽन॑द्धः। ज॒य॒ति॒। प्रसू॑त इति॒ प्रऽसू॑तः ॥४२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
बह्वीनाम्पिता बहुरस्य पुत्रश्चिश्चाकृणोति समनावगत्य । इषुधिः सङ्काः पृतनाश्च सर्वाः पृष्ठे निनद्धो जयति प्रसूतः ॥
स्वर रहित पद पाठ
बह्वीनाम्। पिता। बहुः। अस्य। पुत्रः। चिश्चा। कृणोति। समना। अवगत्येत्यवऽगत्य। इषुधिरितीषुऽधिः। सङ्काः। पृतनाः। च। सर्वाः। पृष्ठे। निनद्ध इति निऽनद्धः। जयति। प्रसूत इति प्रऽसूतः॥४२॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे वीराः! यो बह्वीनां पितेवास्य बहुः पुत्र इव पृष्ठे निनद्ध इषुधिः प्रसूतः सन् समनावगत्य चिश्चा कृणोति, येन वीरः सर्वा सङ्काः पृतानश्च जयति, तं यथावद् रक्षत॥४२॥
पदार्थः
(बह्वीनाम्) ज्यानाम् (पिता) पितृवद्रक्षकः (बहुः) बहुगुणः (अस्य) (पुत्रः) सन्तान इव सम्बन्धी (चिश्चा) चिश्चेश्चेति शब्दं (कृणोति) करोति (समना) संग्रामान्। अत्राकारादेशः (अवगत्य) (इषुधिः) इषवो धीयन्ते यस्मिन् सः (सङ्काः) समवेता विकीर्णा वा (पृतनाः) सेनाः (च) (सर्वाः) (पृष्ठे) पश्चाद्भागे (निनद्धः) निश्चयेन नद्धो बद्धः (जयति) (प्रसूतः) उत्पन्नः॥४२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽनेकासां कन्यानां बहूनां पुत्राणां च पिताऽपत्यशब्दैः संकीर्णो भवति, तथैव धनुर्ज्येषुधयः संमिलिता अनेकविधशब्दान् जनयन्ति, यस्य वामहस्ते धनुः पृष्ठे इषुधिर्यो दक्षिणेन हस्तेनेषुं निःसार्य्य धनुर्ज्यया संयोज्य विमुच्याऽभ्यासेन शीघ्रकारित्वं करोति, स एव विजयी भवति॥४२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे वीर पुरुषो! जो (बह्वीनाम्) बहुत प्रत्यञ्चाओं का (पिता) पिता के तुल्य रखने वाला (अस्य) इस पिता का (बहुः) बहुत गुण वाले (पुत्रः) पुत्र के समान सम्बन्धी (पृष्ठे) पिछले भाग में (निनद्धः) निश्चित बंधा हुआ (इषुधिः) बाण जिस में धारण किये जाते वह धनुष् (प्रसूतः) उत्पन्न हुआ (समना) संग्रामों को (अवगत्य) प्राप्त होके (चिश्चा) चिं चिं, चिं ऐसा शब्द (कृणोति) करता है (च) और जिससे वीर पुरुष (सर्वाः) सब (सङ्काः) इकट्ठी वा फैली हुई (पृतनाः) सेनाओं को (जयति) जीतता है, उसकी यथावत् रक्षा करो॥४२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अनेक कन्याओं और बहुत पुत्रों का पिता अपत्य शब्द से संयुक्त होता है, वैसे ही धनुष्, प्रत्यंचा और बाण मिलकर अनेक प्रकार के शब्दों को उत्पन्न करते हैं। जिसके वाम हाथ में धनुष्, पीठ पर बाण, दाहिने हाथ से बाण को निकाल के धनुष् की प्रत्यञ्चा से संयुक्त कर छोड़ के अभ्यास से शीघ्रता करने की शक्ति को करता है, वही विजयी होता है॥४२॥
विषय
पुत्र पिता की तूणीर से तुलना ।
भावार्थ
( बह्नीनां पिता ) बहुत सी कन्याओं का पिता और जिसके ( बहुः पुत्रः ) बहुत से पुत्र भी हों वे सब बच्चे मिल कर जिस प्रकार (समना अवगत्य ) एकत्र होकर ( चिश्चाकृणोति ) चीं चां करते हैं । उसी प्रकार (इषुधिः) बाणों को धारण करने वाला तूणीर या तरकस ( बह्वीनां पिता) बहुत से तीरों का 'पिता' पालक हैं । (अस्य पुत्रः ) इसके गर्भ से निकलने वाले पुत्र भी बाणरूप ( बहुः ) संख्या में बहुत से हैं । वे सब(समना अवगत्य) युद्ध स्थान में आकर (चिश्वा कृणोति) चीं, चां इत्यादि ध्वनि करते हैं । वह (इषुधिः) तरकस ( सर्वाः ) समस्त (सङ्काः) संघ बना कर खड़ी हुई ( पृतनाः) समस्त शत्रुसेनाओं को ( पृष्ठे निनद्धः ) पीठ पीछे बंधा रह कर भी ( प्रसूतः सन् ) जब अपने गर्भ से बाणों को पैदा करता है तब (जयति) विजय करता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वीराः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
इषुधिः [तूणीर ]
पदार्थ
१. प्रस्तुत मन्त्र में तरकस का उल्लेख करते हैं। इस तरकस में तीर रखे जाते हैं और यह धानुष्क की पीठ पर बँधा होता है। इसमें तीर सुरक्षित होते हैं, सो कहते हैं कि (बह्वीनाम् पिता) = बहुत-से तीरों का यह पिता-रक्षक होता है। (बहुः) = बहुत-से इषुओं का यह समूह (अस्य) = इसका (पुत्रः) = पुत्र स्थानीय है। 'पुरून् बहून्ह त्रायते' यह वाणसमूह शत्रुओं पर आक्रमण करके हमारी रक्षा करता है। २. यह तूणीर (समना अवगत्य) = संग्राम में पहुँचकर (चिश्चा कृणोति) = 'चिश्चा' इस अव्यक्त शब्द को करता है-" 'चि' = एक-एक शत्रु का चयन करके, एक-एक को चुनकर उसका उच्चाटन कर दो”, ऐसा कहता प्रतीत होता है। ३. यह (इषुधिः) = तूणीर (पृष्ठे निनद्धः) = पीठ पर दृढ़ता से बँधा हुआ (प्रसूतः) = धानुष्क से कार्य में प्रेरित किया हुआ (सर्वा:) = सब (सङ्का:) = [सन्नते:, संपूर्वात् किरतेर्वा] सम्बद्ध व विकीर्ण (पृतना:) = सेनाओं को (जयति) = जीत लेता है। ४. हृदय तूणीर है, इसमें निहित प्रभु के नाम ही शर हैं- अध्यात्मभवनारूप इन तीरों से वासनाओं की सेनाएँ पराजित कर दी जाती हैं।
भावार्थ
भावार्थ-तरकस का युद्ध में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। वही स्थान शरीर में हृदय का है। यह शत्रुओं के संहारक आत्मसङ्कल्परूप शरों से भरपूर होना चाहिए ।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे अनेक पुत्र व कन्या यांना (पित्याचे) अपत्य म्हटले जाते तसे धनुष्य, प्रत्यञ्चा व बाण मिळून अनेक प्रकारचे शब्द उत्पन्न करतात. जो डाव्या हातात धनुष्य, पाठीवर बाण व उजव्या हातात धनुष्य घेऊन प्रत्यंचेला जोडून बाण मारण्याचा अभ्यास करतो त्यालाच विजय प्राप्त होतो.
विषय
पुन्हा त्याच विषयी -
शब्दार्थ
हे वीर पुरुषहो, (पिता) पिता जसा (पुत्रः) पुत्राला, तसा (बह्णीनाम्) अनेक प्रत्यंयाचा पिता म्हणजे धारणकर्ता सैनिक ज्या धनुष्यास धारण करतो (अस्य) या पित्याच्या म्हणजे धनुर्धर सैनिकाच्या (पृष्ठे) मागील भागात म्हणजे पाठीवर (निनद्धः) बांधलेला (इषुधिः) बाणांचा भाता असतो. या दोन्हीने सन्नध युद्ध (प्रसूतः) तत्पर झालेला (समनाः) युद्धक्षेत्रात (अवगत्य) जाऊन त्या सैनिकाचे धनुष्य (चिंश्चा) चिं चिं चिं असा शब्द, (कृणोति) करते. (नवीन पादत्राण, धनुष्य, दोरी सर्व पदार्थ काहीतरी शब्द करतात, तसे धनुष्याची दोरी चिं चिं वा करकर ध्वनि करते) या अशा धनुष्याने वीर सैनिक सर्व (संकाः) एकत्रित वा विखुरलेल्या (पृतनाः) शत्रुसैन्याला (जयति) जिंकतो. हे वीर पुरुषहो, अशा धनुष्याची रक्षा करा (आपले अस्त्र-शस्त्र नेहमी जपून सांभाळून ठेवा.) ॥42॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोमा अलंकार आहे. जसा अनेक पुत्रींचा आणि अनेक पुत्रांचा पिता त्याची सर्व संताने अपत्य शब्दाने संबोधिली जातात, तसेच धनुष, प्रत्यंचा, बाण हे सर्व मिळून अनेक प्रकारचा ध्वनी उत्पन्न करतात. ज्या सैनिकाच्या पाठीच्या डाव्या भागावर धनुष्य असेल, तो उजव्या हातानें बाण काढून धनुष्याच्या प्रत्यंचेवर चढवणार. अशाप्रकारे अभ्यासवशात् बाण सोडण्यात शीघ्रता येते. असा वीर विजयी होतो. ॥42॥
इंग्लिश (3)
Meaning
With many a son, father of many daughters, he clangs and clashes as he goes to battle, with the quiver slung on the back, the born hero, vanquishes all the scattered armies.
Meaning
Father protector of many forces, mighty are his sons. His arrow clangs when he engages the enemy. Hero of the bow and arrow and the quiver inspired and shooting forth, he takes on the once organized but now scattered forces of the enemy and comes out victorious.
Translation
The quiver, slung on the back, pouring its shafts, vanquishes all opposing and shouting armies. It is like a father of many daughters and sons, who clang and cry as father goes to battle. (1)
Notes
Işudhiḥ, तूण:, quiver. Ninaddhah,बद्ध:, slung. Bahvinām pita, अनेकानां इषूणां पिता पालयिता, supporter of many arroWS. Bahuh asya putrah, बहुः इषुसमूहः अस्य पुत्रः, a bundle of many arrows is its son. Ciścā kṛnoti, makes much 'ci ci' noise; clang and cry. Samanā avagatya, संग्रामान् ज्ञात्वा,knowing of the battles. Sankāḥ pṛtanāḥ ca, opposing bands and armies.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনরায় সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে বীর পুরুষগণ! যে (বহ্বীনাং) বহু ধনুকের ছিলার (পিতা) পিতৃ তুল্য রক্ষক (অস্য) এই পিতার (বহুঃ) বহু গুণযুক্ত (পুত্রঃ) পুত্র সমান সম্পর্কীয় (পৃষ্ঠে) পশ্চাৎ ভাগে (নিনব্ধঃ) নিশ্চিত বদ্ধ (ইষুধিঃ) বাণ যাহাতে ধারণ করা হয়, সেই ধনুক (প্রসূতঃ) উৎপন্ন (সমনা) সংগ্রামগুলিকে (অবগত্য) প্রাপ্ত হইয়া (চিশ্চা) চি, চি, চি এমন শব্দ (কৃনোতি) করে (চ) এবং যদ্দ্বারা বীর পুরুষ (সর্বাঃ) সকল (সংকা) একত্রিত বা বিস্তৃত (পৃতনাঃ) সেনাদেরকে (জয়তি) জয় করে, তাহার যথাবৎ রক্ষা কর ॥ ৪২ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন বহু কন্যা এবং বহু পুত্রদের পিতা অপত্য শব্দ দ্বারা সংযুক্ত হয় তদ্রূপ ধনু, জ্যা ও বাণ মিলিয়া অনেক প্রকারের শব্দ উৎপন্ন করে । যাহার বাম হস্তে ধনু, পৃষ্ঠে বাণ, দক্ষিণ হস্ত দ্বারা বাণ বাহির করিয়া ধনুর জ্যার সহিত সংযুক্ত করিয়া ত্যাগ করিবার অভ্যাস দ্বারা শীঘ্রতা করিবার শক্তি উৎপন্ন করে, সেই বিজয় প্রাপ্ত হয় ॥ ৪২ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ব॒হ্বী॒নাং পি॒তা ব॒হুর॑স্য পু॒ত্রশ্চি॒শ্চা কৃ॑ণোতি॒ সম॑নাব॒গত্য॑ ।
ই॒ষু॒ধিঃ সংকাঃ॒ পৃত॑নাশ্চ॒ সর্বাঃ॑ পৃ॒ষ্ঠে নিন॑দ্ধো জয়তি॒ প্রসূ॑তঃ ॥ ৪২ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
বহ্বীনামিত্যস্য ভারদ্বাজ ঋষিঃ । বীরা দেবতাঃ । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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