यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 45
र॒थ॒वाह॑नꣳ ह॒विर॑स्य॒ नाम॒ यत्रायु॑धं॒ निहि॑तमस्य॒ वर्म॑।तत्रा॒ रथ॒मुप॑ श॒ग्मꣳ स॑देम वि॒श्वाहा॑ व॒यꣳ सु॑मन॒स्यमा॑नाः॥४५॥
स्वर सहित पद पाठर॒थ॒वाह॑नम्। र॒थ॒वाह॑न॒मिति॑ रथ॒ऽवाह॑नम्। ह॒विः। अ॒स्य॒। नाम॑। यत्र॑। आयु॑धम्। निहि॑त॒मिति॒ निऽहि॑तम्। अ॒स्य॒। वर्म॑। तत्र॑। रथ॑म्। उप॑। श॒ग्मम्। स॒दे॒म॒। वि॒श्वाहा॑। व॒यम्। सु॒म॒न॒स्यमा॑ना॒ इति॑ सुऽमन॒स्यमा॑नाः ॥४५ ॥
स्वर रहित मन्त्र
रथवाहनँ हविरस्य नाम यत्रायुधन्निहितमस्य वर्म । तत्रा रथमुप शग्मँ सदेम विश्वाहा वयँ सुमनस्यमानाः ॥
स्वर रहित पद पाठ
रथवाहनम्। रथवाहनमिति रथऽवाहनम्। हविः। अस्य। नाम। यत्र। आयुधम्। निहितमिति निऽहितम्। अस्य। वर्म। तत्र। रथम्। उप। शग्मम्। सदेम। विश्वाहा। वयम्। सुमनस्यमाना इति सुऽमनस्यमानाः॥४५॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे वीराः! अस्य यत्र रथवाहनं हविरायुधमस्य वर्म च नाम च निहितं तत्र सुमनस्यमाना वयं शग्मं रथं विश्वाहोप सदेम॥४५॥
पदार्थः
(रथवाहनम्) रथान् वहन्ति गमयन्ति येन तत् (हविः) आदातव्याग्नीन्धनजलकाष्ठधात्वादि (अस्य) योद्धुः (नाम) (यत्र) याने (आयुधम्) भुशुण्डिशतघ्न्यसिधनुर्बाणशक्तिपद्मपाशादि (निहितम्) धृतम् (अस्य) योद्धुः (वर्म) कवचम् (तत्र) तस्मिन्। अत्र ऋचि तुनुघ॰ [अ॰६.३.१३३] इति दीर्घः। (रथम्) रमणसाधनं यानम् (उप) (शग्मम्) सुखम्। शग्ममिति सुखनामसु पठितम्॥ (निघ॰३।६) (सदेम) प्राप्नुयाम (विश्वाहा) सर्वेष्वहस्सु (वयम्) (सुमनस्यमानाः) सुष्ठु विचारयन्तः॥४५॥
भावार्थः
हे मनुष्याः! यस्मिन् यानेऽग्न्यादिरश्वादिश्च युज्यते, तत्र युद्धसामग्री संस्थाप्य नित्यमन्वीक्ष्य स्थित्वा सुविचारेण शत्रुभिः सह संयुद्ध्य नित्यं सुखं प्राप्नुत॥४५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे वीर पुरुषो! (अस्य) इस योद्धा जन के (यत्र) जिस यान में (रथवाहनम्) जिस से विमानादि यान चलते वह (हविः) ग्रहण करने योग्य अग्नि, इन्धन, जल, काठ और धातु आदि सामग्री तथा (आयुधम्) बन्दूक, तोप, खड्ग, धनुष्, बाण, शक्ति और पद्म फांसी आदि शस्त्र और (अस्य) इस योद्धा के (वर्म) कवच और (नाम) नाम (निहितम्) स्थित हैं (तत्र) उस यान में (सुमनस्यमानाः) सुन्दर विचार करते हुए (वयम्) हम लोग (शग्मम्) सुख तथा उस (रथम्) रमण योग्य यान को (विश्वाहा) सब दिन (उप, सदेम) निकट प्राप्त होवें॥४५॥
भावार्थ
हे मनुष्यो! जिस यान में अग्नि आदि तथा घोड़े आदि संयुक्त किये जाते, उसमें युद्ध की सामग्री धर नित्य उस की देखभाल कर उस में बैठ और सुन्दर विचार से शत्रुओं के साथ सम्यक् युद्ध करके नित्य सुख को प्राप्त होओ॥४५॥
विषय
रथ का वर्णन।
भावार्थ
( यत्र ) जिस रथ पर ( रथवाहनम् ) रथ को चलाने योग्य उपकरण (हविः) खाने, पीने, पहनने की अन्नादि सामग्री, (नाम) शत्रुओं का नमाने वाले ( आयुधम् ) अस्त्र-शस्त्र और (यस्य) इस वीर रथी का (वर्म) कवच भी ( निहितम् ) रखा जाता है (तत्र) उस ( शग्मम् ) सुखकारी (रथम् ) रथ को ( वयम् ) हम सब ( सुमनस्यमानाः) शुभ चित्त होकर (विश्वाहा ) सब दिनों (उप सदेम) प्राप्त हों । (२) अध्यात्म में- (रथम् ) रसस्वरूप आत्मा को हम प्राप्त हों वही ( रथवाहनम् ) रस को प्राप्त कराने हारा है । जिसमें ( आयुधम् ) सब प्रकार के आनन्द (वर्म) परम रक्षास्थान और (हविः) परम उपादेय ज्ञान है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वीराः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
रथमुपसदेम
पदार्थ
१. (अस्य) = इस मन्त्र के ऋषि भरद्वाज पायु' का (हविः) = दानपूर्वक अदन, यज्ञशेष के रूप में भोजन का सेवन (रथवाहनम् नाम) = निश्चय से शरीररूप रथ के धारण के लिए ही करते हैं। २. इनका यह शरीररूप रथ ऐसा है (यत्र) = जिसमें (अस्य) = इस रथस्वामी का (आयुधम्) = सब अस्त्र-शस्त्र, [वस्तुतः इस जीवन-यात्रा में इन्द्रियाँ ही आयुध हैं अथवा प्राण आयुधरूप हैं- ये इन्दियाँ और प्राण] तथा (वर्म) = ज्ञानरूप कवच निहितम् रखा है। वस्तुतः जिस समय मनुष्य भोजन का चुनाव बड़े ध्यान से करता है तब उसकी इन्द्रियाँ, प्राण और ज्ञान सभी उत्तम होते हैं । ३. (तत्र) = उस समय (वयम्) = हम (एवम्) = शरीररूप रथ पर (उपसदेम) = विनीततापूर्वक आसीन हों-हम उपासना की वृत्तिवाले बनकर रथारूढ़ हों, जिससे यह रथ (शग्मम्) = हमारे लिए सुखकर हो । ४. ऐसे रथ पर आरूढ़ हुए हुए हम (विश्वाहा) = सदा (सुमनस्यमाना:) = सौमनस्यवाले हों। हमारे मनों में प्रसन्नता हो, उसमें किसी प्रकार की मलिन भावनाएँ न हों।
भावार्थ
भावार्थ- जैसे रथ के ठीक होने पर तथा सब उपकरणों व रक्षासाधनों से युक्त होने पर यात्री सुख व शान्ति अनुभव करता है, उसी प्रकार हमारा यह शरीररूप रथ भी हो। इसमें इन्द्रियाँ, प्राण, मन व बुद्धि आदि सभी उपकरण ठीक हों, जिससे सौमनस्यवाले होकर हम यात्रा को पूर्ण करें।
मराठी (2)
भावार्थ
हे माणसांनो ! ज्या यानात अग्नी व घोडे इत्यादींची योजना करून युद्ध साहित्य ठेवतात त्याची सतत देखरेख करा. या यानाद्वारे शत्रूंशी युद्ध करून नित्य सुखी व्हा.
विषय
पुन्हा, त्याच विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे वीर पुरुषहो, (अस्य) या योद्धा सैनिकाच्या (वा वैमानिकांच्या) (यत्र) ज्या यानामधे (रथवाहनम्) असे पदार्थ की ज्यामुळे विमान आदी यान चालते, त्या (हविः) ग्रहणीय अग्नी, इंधन, जल, लाकूड आणि धातू आदी सामग्रीचा वापर केला गेला आहे, ज्या यानात (आयुधम्) बंदूक, तोफ, तलवार, धनुष, बाण आदी शक्तिमय अस्त्र-शस्त्र आहेत आणि पमकांसी (पाश) आदी शस्त्र आहेत (त्या विमानाची तुम्ही प्रशंसा करा) तसेच (अस्य) या योद्धा सेनाधिकार्याच्या यानात (वर्म) त्यांचे कवच आणि (नाम) नाम (म्हणजे सैनिकी पद वा हुद्दा (निहितम्) संलग्न आहेत. (तत्र) त्या यानात (सुमनस्यमानाः) सुंदर वा सर्व हितकारी विचार करीत (वयम्) आम्ही (नागरिकजन वा छोट्या हुद्याचे सैनिक) त्या (शग्मम्) सुखमय (रथम्) रमणीय यानाचा (विश्वाहा) सर्वथा सर्वदिनी (उप, सदेम) उपयोग करू. ॥45।
भावार्थ
भावार्थ - हे मनुष्यांनो, ज्या यानात अग्नीचा वापर केला जातो (ते इंधन आदी यान) तसेच ज्यात घोडे जुंपले जातात, ते रथ यान, यांमधे युद्धापयोगी साहित्य भरून दररोज त्याची देखरेख करीत, त्यात बसून विहार वा प्रवास करावा. असे करताना विचार सुंदर शुभ असावेत पण शत्रूचा पराभव करून सुख प्राप्त करणे त्यागू नये. ॥45॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Let us honour that aeroplane, each day that passes, with hearts full of joy, in which are laid necessary ingredients for propelling it, and gun, cannon, shield, bow, arrow, armour and military equipment of this warrior.
Meaning
The warrior is ‘Rathavahana’, hero of the chariot, and the chariot is whereon the armour, arms and ammunition of this hero are safely kept. And that mighty protective chariot, we, people of positive and faithful mind, love, and wish to ride every day, all time.
Translation
The spoil, borne off on his car, in which his weapons and armoury are deposited, is the appropriate oblation of the warrior. So let us here, daily pay tributes to the helpful joy-bestowing car. (1)
Notes
Ratha, the chariot is praised here. Rathavāhaṇam,रथं च तद् वाहनं, chariot, the vehicle (is its name). Yatra haviḥ, ayudham, varma nihitam, wherein are placed supplies (हवि:), the weapons (आयुधं) and the armour (वर्म). Śagmam, सुखकरं, comfortable. Viśvāhā, सर्वदा, always; on all days. Rathamn sadema, may we sit or ride in the chariot. Also, pay tributes to the chariot.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে বীর পুরুষগণ! (অস্য) এই যোদ্ধার (য়ত্র) যে যানে (রথবাহনম্) যদ্দ্বারা বিমানাদি যান চলে উহা (হবিঃ) গ্রহণীয় অগ্নি, ইন্ধন, জল, কাষ্ঠ এবং ধাতু আদি সামগ্রী তথা (আয়ুধম্) বন্দুক, তোপ, খড়গ, ধনুর্বাণ, শক্তি আদি পদ্মপাশ আদি শস্ত্র এবং (অস্য) এই যোদ্ধার (বর্ম) কবচ এবং (নাম) নাম (নিহিতম্) স্থিত (তত্র) সেই যানে (সুমনস্যমানাঃ) সুন্দর বিচার করিতে থাকিয়া (বয়ম্) আমরা (শগ্মম্) সুখ তথা সেই (রথম্) রমণযোগ্য যানকে (বিশ্বাহা) সকল দিন (উপ, সদেম) নিকট প্রাপ্ত হই ॥ ৪৫ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যে যানে অগ্নি আদি তথা অশ্বাদি সংযুক্ত করা হয়, তাহাতে যুদ্ধ সামগ্রী রাখিয়া নিত্য তাহার দেখাশুনা করিয়া তাহাতে বসিয়া এবং সুন্দর বিচার দ্বারা শত্রুদিগের সহ সম্যক্ যুদ্ধ করিয়া নিত্য সুখ প্রাপ্ত হও ॥ ৪৫ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
র॒থ॒বাহ॑নꣳ হ॒বির॑স্য॒ নাম॒ য়ত্রায়ু॑ধং॒ নিহি॑তমস্য॒ বর্ম॑ ।
তত্রা॒ রথ॒মুপ॑ শ॒গ্মꣳ স॑দেম বি॒শ্বাহা॑ ব॒য়ꣳ সু॑মন॒স্যমা॑নাঃ ॥ ৪৫ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
রথবাহনমিত্যস্য ভারদ্বাজ ঋষিঃ । বীরা দেবতাঃ । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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