यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 11
ऋषिः - नारायण ऋषिः
देवता - विद्वान् देवता
छन्दः - स्वराडतिशक्वरी
स्वरः - पञ्चमः
2
अर्मे॑भ्यो हस्ति॒पं ज॒वाया॑श्व॒पं पुष्ट्यै॑ गोपा॒लं वी॒र्य्यायाविपा॒लं तेज॑सेऽजपा॒लमिरा॑यै की॒नाशं॑ की॒लाला॑य सुराका॒रं भ॒द्राय॑ गृह॒पꣳ श्रेय॑से वित्त॒धमाध्य॑क्ष्यायानुक्ष॒त्तार॑म्॥११॥
स्वर सहित पद पाठअर्मे॑भ्यः। ह॒स्ति॒पमिति॑ हस्ति॒ऽपम्। ज॒वाय॑। अ॒श्व॒पमित्य॑श्व॒ऽपम्। पुष्ट्यै॑। गो॒पा॒लमिति॑ गोऽपा॒लम्। वी॒र्य्या᳖य। अ॒वि॒पा॒लमित्य॑विऽपा॒लम्। तेज॑से। अ॒ज॒पा॒लमित्य॑जऽपा॒लम्। इरा॑यै। की॒नाश॑म्। की॒लाला॑य। सु॒रा॒का॒रमिति॑ सुराऽका॒रम्। भ॒द्राय॑। गृ॒ह॒पमिति॑ गृह॒ऽपम्। श्रेय॑से। वि॒त्त॒धमिति॑ वित्त॒ऽधम्। आध्य॑क्ष्यायेत्या॒धि॑ऽअक्ष्याय। अ॒नु॒क्ष॒त्तार॒मित्य॑नुऽक्ष॒त्तार॑म् ॥११ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्मेभ्यो हस्तिपञ्जवायाश्वपम्पुष्ट्यै गोपालँवीर्यायाविपालन्तेजसे जपालमिरायै कीनाशङ्कीलालाय सुराकारम्भद्राय गृहपँ श्रेयसे वित्तधमाध्यक्ष्यायानुक्षत्तारम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
अर्मेभ्यः। हस्तिपमिति हस्तिऽपम्। जवाय। अश्वपमित्यश्वऽपम्। पुष्ट्यै। गोपालमिति गोऽपालम्। वीर्य्याय। अविपालमित्यविऽपालम्। तेजसे। अजपालमित्यजऽपालम्। इरायै। कीनाशम्। कीलालाय। सुराकारमिति सुराऽकारम्। भद्राय। गृहपमिति गृहऽपम्। श्रेयसे। वित्तधमिति वित्तऽधम्। आध्यक्ष्यायेत्याधिऽअक्ष्याय। अनुक्षत्तारमित्यनुऽक्षत्तारम्॥११॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे ईश्वर राजन् वा! त्वमर्मेभ्यो हस्तिपं जवायाऽश्वपं पुष्ट्यै गोपालं वीर्य्यायाऽविपालं तेजसेऽजपालमिरायै कीनाशं कीलालाय सुराकारं भद्राय गृहपं श्रेयसे वित्तधमाध्यक्ष्यायाऽनुक्षत्तारमासुव॥११॥
पदार्थः
(अर्मेभ्यः) प्रापकेभ्यः (हस्तिपम्) हस्तीनां पालकम् (जवाय) वेगाय (अश्वपम्) अश्वानां रक्षकं शिक्षकम् (पुष्ट्यै) रक्षणय (गोपालम्) गवां पालकम् (वीर्य्याय) वीर्य्यवृद्धये (अविपालम्) अवीनां रक्षकम् (तेजसे) तेजोवर्द्धनाय (अजपालम्) अजानां रक्षकम् (इरायै) अन्नादिवृद्धये। इरेत्यन्ननामसु पठितम्॥ (निघ॰२।७) (कीनाशम्) कृषीबलम् (कीलालाय) अन्नाय। कीलाल इत्यन्ननामसु पठितम्॥ (निघ॰२।७) (सुराकारम्) सोमनिष्पादकम् (भद्राय) कल्याणाय (गृहपम्) गृहाणां रक्षकम् (श्रेयसे) धर्म्मार्थकामप्राप्तये (वित्तधम्) यो वित्तं धनं दधाति तम् (आध्यक्ष्याय) अध्यक्षाणां भावाय (अनुक्षत्तारम्) सारथ्यनुकूलम्॥११॥
भावार्थः
राजपुरुषैः सुशिक्षितान् हस्तिरक्षकादीन् सङ्गृह्यैतैर्बहवो व्यवहाराः साधनीयाः॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे ईश्वर वा राजन्! आप (अर्मेभ्यः) प्राप्ति कराने वालों के लिए (हस्तिपम्) हाथियों के रक्षक को (जवाय) वेग के अर्थ (अश्वपम्) घोड़ों के रक्षक शिक्षक को (पुष्ट्यै) पुष्टि रखने के लिए (गोपालम्) गौओं के पालनेहारे को (वीर्य्याय) वीर्य्य बढ़ाने के अर्थ (अविपालम्) गडरिये को (तेजसे) तेजवृद्धि के लिए (अजपालम्) बकरे-बकरियों को (इरायै) अन्नादि के बढ़ाने के अर्थ (कीनाशम्) खेतिहर को (कीलालाय) अन्न के लिए (सुराकारम्) सोम औषधियों से रस को निकालने वाले को और (भद्राय) कल्याण के अर्थ (गृहपम्) घरों के रक्षक को (श्रेयसे) धर्म, अर्थ और कामना की प्राप्ति के अर्थ (वित्तधम्) धन धारण करनेवालों को और (आध्यक्ष्याय) अध्यक्षों के स्वत्व के लिए (अनुक्षत्तारम्) अनुकूल सारथि को उत्पन्न कीजिए॥११॥
भावार्थ
राजपुरुषों को चाहिए कि अच्छे शिक्षित हाथी आदि को रखने वाले पुरुषों को ग्रहण कर हम से बहुत से व्यवहार सिद्ध करें॥११॥
विषय
ब्रह्मज्ञान, क्षात्रबल, मरुद् ( वैश्य ) विज्ञान आदि नाना ग्राह्य शिल्प पदार्थों की वृद्धि और उसके लिये ब्राह्मण, क्षत्रियादि उन-उन पदार्थों के योग्य पुरुषों की राष्ट्ररक्षा के लिये नियुक्ति । त्याज्य कार्यों के लिये उनके कर्त्ताओं को दण्ड का विधान ।
भावार्थ
(६१) (अर्मेभ्यः ) बड़ी सवारियों के लिये ( हस्तिपम् ) हाथीवान् को नियुक्त कर । (६२) ( जवाय अश्वपम् ) वेग से देशान्तर पहुँचने के लिये अश्वों के पालक पुरुष को नियुक्त करो। (६३) (पुष्ट्ये)अन्न,गोदुग्ध आदि पुष्टिकारक पदार्थों के प्राप्त करने के लिये (गोपालम् ) गौओं के पालक पुरुष को रक्खो । (६४) (वीर्याय अविपालम् ) वीर्य की वृद्धि के लिये भेड़ों के पालने वाले पुरुष को नियुक्त करो । ( ६५) (तेजसे अजपालम् ) तेज, स्फूर्ति की वृद्धि के लिये बकरियों के पालक पुरुष को नियुक्त करो। यहां पशु-पालन के अनुभवी पुरुषों की यह अनुभवसिद्ध बात है कि भैंस का दूध सुस्ती बढ़ाता है, गौ का दूध पुष्टिकारक, भेड़ का दूध वीर्यवर्धक है और बकरी का दूध कान्ति और स्फूर्ति पैदा करता है । धन्वन्तरि के मत से:- गोदुग्ध - पथ्यं रसायनं बल्यं हृद्यं मेध्यं गवां पयः ॥ अजादुग्ध - छागं कषायं मधुरं शीतं ग्राहितरं लघु । अविदुग्ध - आविकं तु पय: स्निग्धं कफपित्तहरं परम् । स्थौल्य मेदहरं पथ्यं लोमशं गुरुवृद्धिदम् ॥ (६६) ( इरायै ) अन्न की वृद्धि के लिये ( कीनाशम् ) किसान को नियुक्त कर । (६७) (कीलालाय) अन्न ओषधि के सार-भाग को प्राप्त करने के लिये ( सुराकारम् ) सुरा विधि से भपके द्वारा आसव चुवाने वाले पुरुष को नियत कर । (६८) (भद्राय गृहपम् ) सुख और कल्याण की वृद्धि के लिये गृह पालक पुरुषों को नियुक्त करे । (६९) (श्रेयसे वित्तधम्) सबके कल्याण के लिये धर्म कार्य करने के निमित्त वित्तधारण करने वाले धनाढ्य पुरुषों को प्रेरित कर । ( ७० ) (अध्यक्ष्याय) अध्यक्ष के का' के लिये (अनुक्षत्तारम् ) क्षत्ता अर्थात् अश्वों को चलाने वाले सारथि या कोचवान के समान अपने अधीन पुरुषों को सन्मार्ग पर चलाने वाले पुरुष को नियुक्त करो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
स्वराडाकृतिः । पंचमः ॥
विषय
अर्म के लिए हस्तिप को
पदार्थ
६१. (अर्मेभ्यः) = गन्तव्य प्रदेशों के लिए (हस्तिपम्) = हाथियों के पालनेवाले व महावत को प्राप्त करे। ये हाथी कठिन, दुर्गम व गम्भीर स्थानों में भी हमें प्राप्त करानेवाले होंगे। ६२. (जवाय) वेग के लिए (अश्वपम्) = अश्वपाल को नियत करे। यह घोड़ों के द्वारा शीघ्रता से स्थानान्तर पर पहुँचानेवाला होगा। ६३ (पुष्ट्यै) = पोषण के लिए (गोपालम्) = गोरक्षकों को नियत करे। ये उत्तम गोदुग्ध प्राप्त कराके हमारा पोषण करेंगे। ६४. (वीर्याय) = वीर्य के लिए (अविपालम्) = अवि [भेड़] के पालनेवाले को नियत करे। भेड़ का दूध 'स्थौल्यमेदहरम्' मोटापे व प्रमेहों [Diabetes] को दूर करनेवाला है। ६५. (तेजसे) = तेजस्विता के लिए (अजपालम्) = बकरियों को पालनेवाले को नियत करे। इन बकरियों का दूध 'सर्वरोगापहम्' = सब रोगों का हरण करनेवाला है, रोगहरण द्वारा यह हमें तेजस्वी बनाता है। ६६. (इरायै) = अन्न की वृद्धि के लिए (कीनाशम्) = किसान को प्राप्त करे। वस्तुतः इन किसानों की स्थिति के ठीक होने पर ही देश की स्थिति का ठीक होना सम्भव है। ६७. [क] (कीलालाय) = पेय पानी के लिए (सुराकारम्) = शुण्डायन्त्र से पानी को वाष्पीभूत करके फिर से द्रवीभूत करनेवाले को नियत करे। डिस्टिल्ड पानी स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हितकर है। [ख] (कीलालाय) = अन्न, आदि के रस के लिए (सुराकारम्) = रस का अभिषव करनेवाले को नियत करे। ६८. (भद्राय) = कल्याण के लिए गृहम् घरों के रक्षक को [ पहरेदारों को] नियत करें। पहरेदारों के होने पर चोरी आदि न होने से प्रजा का भद्र व कल्याण होता है। ६९. (श्रेयसे) = कल्याण के लिए (वित्तधम्) = वित्त के धारण करनेवाले को प्राप्त करे । 'वित्तधम्' वह व्यक्ति है जो धनी है, वित्त का धारण करनेवाला है और औरों के लिए धन को देता हुआ धन के द्वारा उनका धारण करता है। इस व्यक्ति का कल्याण क्यों न होगा ? ७०. (आध्यक्ष्याय) = अध्यक्षता के कार्य के लिए (अनुक्षत्तारम्) = कर्मसचिवों Secretaries को नियत करे क्षत्ता Ministers हैं और अनुक्षत्ता Secretaries हैं। फल
भावार्थ
भावार्थ - राष्ट्र में गोप, अश्वपाल, अविपाल व किसान आदि का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
मराठी (2)
भावार्थ
राजपुरुषांनी चांगले प्रशिक्षित हत्ती वगैरे बाळगणारे घोड्यांचे रक्षक, गोपाळ, धनगर, शेतकरी वगैरे लोकांकडून पुष्कळ व्यवहार सिद्ध करून घ्यावेत.
विषय
पुनहा, त्याच विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे परमेश्वर अधवा हे राजन् आपण (अर्मेभ्यः) प्राप्त म्हणजे (राज्याचे उत्पन्न वाढविण्यासाठी) (हस्तिपम्) हत्तींचे रक्षक (प्रशिक्षित माहूत) (उत्पन्न करा-निर्माण करा) (जवाय) वेगाने (गती वा प्रवास करण्यासाठी) (अश्वपम्) घोड्यांचे पालक-प्रशिक्षक यांना, तसेच (पुष्ट्यै) पोषकत्व शक्ती ठेवण्यासाठी (गोपालम्) गोपाल्, गवळी आदी (उत्पन्न करा-निर्माण करा) (वीर्याय) वीर्य वृद्धीसाठी (अविपालम्) धनगर (शेळी व मेंढीपालन करून दूध वाढविणारे, त्या दुधाचे सेवन करण्यामुळे उत्कृष्ट धनगर उत्पन्न व्हावेत. (तेजसे) तेजवृद्धीसाठी (अजपालम्) शेळी-बकरे पाळणारे (उत्पन्न करा) (शेळीच्या दुधामुळे शरीरात तेज निर्माण होते) (इरायै) अन्नवृद्धीसाठी (कीनाशम्) कृषक आणि (कीलालाय) अन्नासाठी (सुराकारम्) सोम आदी औषधींचा रस काढणारे कर्म कर (उत्पन्न करा-निर्माण करा) (भद्राय) कल्याणासाठी (गृहपम्) गृहरक्षक (चौकीदार, पहारेकरी, राजपुरूष आदी) तसेच (श्रेयसे) धर्म, अर्थ, आणि काम यांच्या प्राप्तीसाठी (वित्तधम्) धन धारण करणारे (दानी स्वभावाचे श्रीमंत वैश्य आदी अथवा राजकोष आदी (उत्पन्न करा-निर्माण करा) (अध्यक्ष्याय) अध्यक्षांच्या सम्मान प्रतिष्ठेसाठी (अनुक्षत्तारम्) अनुकूल सारथी (उत्पन्न करा-निर्माण करा) ॥11॥
भावार्थ
भावार्थ - राजपुरूषांनी सुप्रशिक्षित हत्ती आदी पशूंचे स्वामी असलेल्या लोकांना आपलेसे करावे आणि त्यांच्यामार्फत अनेक उपयोग कामें पूर्ण करून घ्यावीत ॥11॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O God, create an elephant-keeper for deep walking; a horsekeeper for speed ; a cowherd for nourishment ; a shepherd for manliness j a goatherd for enhancing keenness , a ploughman for growing more food ; a preparer of Soma for obtaining essence of medicines and food ; a house guard for weal ; a possessor of wealth for well-being ; and an obedient attendant for supervision.
Meaning
Create, develop and promote the elephant keeper for tourists, the horse keeper for fast movement, the cowherd for nourishment, the sheep-keeper for virility, the goat keeper for lustre, the farmer for food, the soma- maker for vitality, the house keeper for good living, the treasurer for honour and credit, the purser for financial distribution and control.
Translation
(One should seek) for elegant movement an elephantkeeper. (1) For speed a horse-keeper. (2) For nourishment a cowherd. (3) For manly vigour a shephered. (4) For lustre a goatherd. (5) For plenty of food a farmer. (6) For beer a wine-maker. (7) For weal a house-keeper. (8) For happy living a wealthy man. (9) For supervision a faithful assistant. (10)
Notes
Armebhyah, for elegant carriage. Irāyai, for food grains. Kinaśa, farmer (किसान in Hindi). Śreyase, for welfare. Anukṣattāram, faithful assistant.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে ঈশ্বর বা রাজন্! আপনি ((অের্মেভ্যঃ) প্রাপকদের জন্য (হস্তিপম্) হস্তিদের পালককে (জবায়) বেগ হেতু (অশ্বপম্) অশ্বদিগের রক্ষক শিক্ষককে (পুষ্ট্যৈ) পুষ্টি রক্ষা করিবার জন্য (গোপালম্) গাভিদের পালককে (বীর্য়্যায়) বীর্য্য বৃদ্ধি করিবার জন্য (অবিপালম্) মেষপালককে (তেজসে) তেজ্র বৃদ্ধির জন্য (অজপালম্) ছাগ-ছাগীদের পালককে (ইরায়ৈ) অন্নাদির বৃদ্ধি করার জন্য (কীনাশম্) কৃষককে (কীলালায়) অন্নের জন্য (সুরাকারম্) সোম ওষধিসকল হইতে রস নিষ্কাশনকারীকে এবং (ভদ্রায়) কল্যাণের জন্য (গৃহপম্) গৃহগুলির রক্ষককে (শ্রয়সে) ধর্ম, অর্থ ও কামনার প্রাপ্তি হেতু (বিত্তধম্) ধন ধারণকারীদিগকে এবং (আধ্যক্ষ্যায়) অধ্যক্ষদের স্বত্ব হেতু (অনুক্ষত্তারম্) অনুকূল সারথিকে উৎপন্ন করুন ॥ ১১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–রাজপুরুষদিগের উচিত যে, উত্তম শিক্ষিত হাতি আদির রক্ষকদিগকে গ্রহণ করিয়া ইহা দ্বারা বহু ব্যবহার সিদ্ধ করুক ॥ ১১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
অর্মে॑ভ্যো হস্তি॒পং জ॒বায়া॑শ্ব॒পং পুষ্ট্যৈ॑ গোপা॒লং বী॒র্য়্যা᳖য়াবিপা॒লং তেজ॑সেऽজপা॒লমিরা॑য়ৈ কী॒নাশং॑ কী॒লালা॑য় সুরাকা॒রং ভ॒দ্রায়॑ গৃহ॒পꣳ শ্রেয়॑সে বিত্ত॒ধমাধ্য॑ক্ষ্যায়ানুক্ষ॒ত্তার॑ম্ ॥ ১১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
অর্মেভ্য ইত্যস্য নারায়ণ ঋষিঃ । বিদ্বান্ দেবতা । স্বরাডতিশক্বরী ছন্দঃ ।
পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
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