यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 5
ऋषिः - नारायण ऋषिः
देवता - परमेश्वरो देवता
छन्दः - स्वराडतिशक्वरी
स्वरः - पञ्चमः
15
ब्रह्म॑णे ब्राह्म॒णं क्ष॒त्राय॑ राज॒न्यं म॒रुद्भ्यो॒ वैश्यं॒ तप॑से॒ शू॒द्रं तम॑से॒ तस्क॑रं नार॒काय॑ वीर॒हणं॑ पा॒प्मने॑ क्ली॒बमा॑क्र॒याया॑ऽअयो॒गूं कामा॑य पुँश्च॒लूमति॑क्रुष्टाय माग॒धम्॥५॥
स्वर सहित पद पाठब्रह्म॒णे। ब्रा॒ह्म॒णम्। क्ष॒त्राय॑। रा॒ज॒न्य᳖म्। म॒रुद्भ्य॒ इति॑ म॒रुद्ऽभ्यः॑। वैश्य॑म्। तप॑से। शू॒द्रम्। तम॑से। तस्क॑रम्। ना॒र॒काय॑। वी॒र॒हणाम्। वी॒र॒हन॒मिति॑ वीर॒ऽहन॑म्। पा॒प्मने॑। क्ली॒बम्। आ॒क्र॒याया॒ इत्या॑ऽऽक्र॒यायै॑। अ॒यो॒गूम्। कामा॑य। पुं॒श्च॒लूम्। अति॑क्रुष्टा॒येत्यति॑ऽक्रुष्टाय। मा॒ग॒धम् ॥५ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्मणे ब्राह्मणङ्क्षत्राय राजन्यम्मरुद्भ्यो वैश्यन्तपसे शूद्रन्तमसे तस्करन्नारकाय वीरहणम्पाप्मने क्लीबमाक्रयायाऽअयोगूङ्कामाय पुँश्चलूमतिक्रुष्टाय मागधम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
ब्रह्मणे। ब्राह्मणम्। क्षत्राय। राजन्यम्। मरुद्भ्य इति मरुद्ऽभ्यः। वैश्यम्। तपसे। शूद्रम्। तमसे। तस्करम्। नारकाय। वीरहणाम्। वीरहनमिति वीरऽहनम्। पाप्मने। क्लीबम्। आक्रयाया इत्याऽऽक्रयायै। अयोगूम्। कामाय। पुंश्चलूम्। अतिक्रुष्टायेत्यतिऽक्रुष्टाय। मागधम्॥५॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
ईश्वरवद्राज्ञापि कर्त्तव्यमित्याह॥
अन्वयः
हे परमेश्वर राजन्! वा त्वमत्र ब्रह्मणे ब्राह्मणं क्षत्राय राजन्यं मरुद्भ्यो वैश्यं तपसे शूद्रं सर्वतो जनय, तमसे तस्करं नारकाय वीरहणं पाप्मने क्लीबमाक्रयाया अयोगूं कामाय पुंश्चलूमतिक्रुष्टाय मागधञ्च दूरे यमय॥५॥
पदार्थः
(ब्रह्मणे) वेदेश्वरविज्ञानप्रचाराय (ब्राह्मणम्) वेदेश्वरविदम् (क्षत्राय) राज्याय पालनाय वा (राजन्यम्) राजपुत्रम् (मरुद्भ्यः) पश्वादिभ्यः (वैश्यम्) विक्षु प्रजासु भवम् (तपसे) सन्तापजन्याय सेवनाय (शूद्रम्) प्रीत्या सेवकं शुद्धिकरम् (तमसे) अन्धकाराय प्रवृत्तम् (तस्करम्) चोरम् (नारकाय) नरके दुःखबन्धने भवाय कारागाराय (वीरहणम्) यो वीरान् हन्ति तम् (पाप्मने) पापाचरणाय प्रवृत्तम् (क्लीबम्) नपुंसकम् (आक्रयायै) आक्रमन्ति प्राणिनो यस्यां तस्यै हिंसायै प्रवर्त्तमानम् (अयोगूम्) अयसा शस्त्रविशेषेण सह गन्तारम् (कामाय) विषयसेवनाय प्रवृत्ताम् (पुंश्चलूम्) पुंभिः सह चलितचित्तां व्यभिचारिणीम् (अतिक्रुष्टाय) अत्यन्तनिन्दनाय प्रवर्त्तकम् (मागधम्) नृशंसम्॥५॥
भावार्थः
हे राजन्! यथा जगदीश्वरो जगति परोपकाराय पदार्थान् जनयति, दोषान् निवारयति, तथा त्वमिह राज्ये सज्जनानुत्कर्षय दुष्टान् निःसारय दण्डय ताडय च, यतः शुभगुणानां प्रवृत्तिर्दुर्व्यसनानाञ्च निवृत्तिः स्यात्॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
ईश्वर के तुल्य राजा को भी करना चाहिए, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे परमेश्वर वा राजन्! आप इस जगत् में (ब्रह्मणे) वेद और ईश्वर के ज्ञान के प्रचार के अर्थ (ब्राह्मणम्) वेद ईश्वर के जानने वाले को (क्षत्राय) राज्य की रक्षा के लिए (राजन्यम्) राजपूत को (मरुद्भ्यः) पशु आदि प्रजा के लिए (वैश्यम्) प्रजाओं में प्रसिद्ध जन को (तपसे) दुःख से उत्पन्न होने वाले सेवन के अर्थ (शूद्रम्) प्रीति से सेवा करने तथा शुद्धि करनेहारे शूद्र को सब ओर से उत्पन्न कीजिए (तमसे) अन्धकार के लिए प्रवृत्त हुए (तस्करम्) चोर को (नारकाय) दुःख बन्धन में हुए कारागार के लिए (वीरहणम्) वीरों को मारनेहारे जन को (पाप्मने) पापाचरण के लिए प्रवृत्त हुए (क्लीबम्) नपुंसक को (आक्रयायै) प्राणियों की जिसमें भागाभूगी होती, उस हिंसा के अर्थ प्रवृत्त (अयोगूम्) लोहे के हथियार विशेष के साथ चलनेहारे जन को (कामाय) विषय सेवन के लिए प्रवृत्त हुई (पुंश्चलूम्) पुरुषों के साथ जिसका चित्त चलायमान उस व्यभिचारिणी स्त्री को और (अतिक्रुष्टाय) अत्यन्त निन्दा करने के लिए प्रवृत्त हुए (मागधम्) भाट को दूर पहुंचाइये॥५॥
भावार्थ
हे राजन्! जैसे जगदीश्वर जगत् में परोपकार के लिए पदार्थों को उत्पन्न करता और दोषों को निवृत्त करता है, वैसे आप राज्य में सज्जनों की उन्नति कीजिए, दुष्टों को निकालिए, दण्ड और ताड़ना भी दीजिए, जिससे शुभ गुणों की प्रवृत्ति और दुष्ट व्यसनों की निवृत्ति होवे॥५॥
विषय
ब्रह्मज्ञान, क्षात्रबल, मरुद् ( वैश्य ) विज्ञान आदि नाना ग्राह्य शिल्प पदार्थों की वृद्धि और उसके लिये ब्राह्मण, क्षत्रियादि उन-उन पदार्थों के योग्य पुरुषों की राष्ट्ररक्षा के लिये नियुक्ति । त्याज्य कार्यों के लिये उनके कर्त्ताओं को दण्ड का विधान । स्वराडतिशक्करी । पंचमः ।
भावार्थ
( १ ) ( ब्रह्मणे ब्राह्मणम् ) ब्रह्म,परमेश्वर की उपासना, ब्रह्म "ज्ञान, वेदाध्ययन, अध्यापन के लिये 'ब्राह्मण' ब्रह्मवेत्ता, वेदज्ञ विद्वान् को नियुक्त करो । ( २ ) ( क्षत्राय राजन्यम् ) प्रजा को विनष्ट होने के बचाने, स्वराज्य पालन और वीर्य पराक्रम के लिये 'राजन्य', श्रेष्ठ राजा को नियुक्त करो। (३) ( मरुद्भ्यः वैश्यम् ) मनुष्यों के हित के लिये, उनके अन्न आदि उत्पन्न करने, गोपालन और प्रदान और नाना व्यवसायों के लिये ( वैश्यम् ) वैश्य को नियुक्त करो । ( ४ ) (तपसे) श्रम के कार्य के लिये ( शूद्रम् ) शीघ्र गति से जाने वाले, श्रमशील पुरुष को नियुक्त करो । [ ५-३० ] ब्रह्मण ब्राह्मणमिति द्व कण्डिके, 'तपसे' ० नुवाकश्च ( इत्य- ध्यायपरिसमाप्तपर्यन्त ऽनुवाकश्च ),ब्राह्मणम्इति सर्वानुक्रमणिका । (५) (तमसे) अन्धकार के भीतर कार्य करने के लिये ( तस्करम् ) जो उसमें कार्य करने में समर्थ है उसे नियुक्त करो । ( ६ ) ( नारकाय वीरह- णम् ) नीचे की योनि नीच स्तर के कष्ट भोगने के लिये ( वीरहणम् ) पुत्रों और वीर्यवान् पुरुषों के नाश करने वाले को पकड़ो। (७) (पाप्मने क्लीबम् ) पाप को नष्ट करने के लिये 'क्लोब' शक्तिहीन पुरुष को नियुक्त: करो कि वह पाप कर ही न सके अथवा पाप पर विजय करने के लिये क्कीब का अनुकरण करो, अर्थात् पाप के प्रति स्वतः नपुंसक के समान उदासीन होकर रहे । ( ८ ) ( आक्रयाय अयोगूम् ) सब प्रकार के पदार्थों के क्रय-विक्रय करने के लिये 'अयोगू' अर्थात् चांदी सोने के परिमाण, सिक्कों की गणना और व्यवहार- विज्ञ पुरुष को नियुक्त करो । ( ९ ) ( कामाय पुंश्चलूम् ) काम के उपभोग में गिरने के निमित्त पुरुषों मैं अति चंचल स्वभाव के पुरुष या स्त्री को दोपयुक्त जानो । (१०) ( अतिक्रष्टाय मागधम् ) अति राग से आलाप करने के लिये 'मागध' को उपयुक्त जानो । शत० १३ । ६ । २ । १० ॥
विषय
ज्ञान के लिए ब्राह्मण को
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार राष्ट्र- शरीर के स्वास्थ्य के लिए धन का विभाग व विकेन्द्रियकरण आवश्यक है। राजा को राष्ट्र की उचित व्यवस्था के लिए यह धन- विभाग करना ही चाहिए। कर व्यवस्था भी इस प्रकार से हो कि धन केन्द्रित न हो पाये। प्रसंगवश अब यह भी कहते हैं कि राष्ट्र में राजा किस-किस कार्य के लिए किस-किस व्यक्ति को नियत करे। २. (ब्रह्मणे) = ज्ञान के प्रचार के लिए (ब्राह्मणम्) = वेद व ईश्वर के वेत्ता ज्ञानी पुरुष को (आलभते) = नियत करे। ज्ञान ज्ञानी ही तो फैलाएगा। 'आलभते' क्रिया २२वें मन्त्र में आई है। वही क्रिया सर्वत्र उपयुक्त होगी । २. (क्षत्राय राजन्यम्) = लोगों को व राष्ट्र को क्षतों से बचाने के लिए क्षत्रिय को प्राप्त करे। राष्ट्र की रक्षा क्षत्रियों से ही होगी। क्षत्रियों के अभाव में राष्ट्र शत्रुओं से आक्रान्त होकर पराधीन हो जाएगा। ३. (मरुद्भ्यः) = सब मान्य मनुष्यमात्र के लिए वैश्यम् = वैश्य को प्राप्त करे । जहाँ मनुष्यों की बस्ती बसानी है वहाँ वैश्यों के लिए मण्डी भी बनानी है। मनुष्यों के दैनन्दिन जीवन के लिए उपयोगी वस्तुओं को ये ही प्राप्त कराएँगे। ४. (तपसे शूद्रम्) = तप के लिए, अर्थात् कष्ट व श्रम के लिए शूद्र को प्राप्त करे। (शूद्र) = शु द्रवति = यह शीघ्रता से कार्य करनेवाला होता है, शु उन्दति = शीघ्र पसीने से गीला होनेवाला होता है। यह ज्ञान, बल व धन प्राप्ति की योग्यता के अभाव में श्रम से ही राष्ट्र की उपयोगी सेवा करता है। शरीर में जो पाँव का स्थान है, राष्ट्र-शरीर में वही स्थान शूद्र का है। राष्ट्र के सब बड़े-बड़े भवन इन्हीं के श्रम पर आश्रित होते हैं । ५. (तमसे) = अन्धकार में काम करने के लिए (तस्करम्) = चोर को नियत करे। 'तत् करोतीति तस्कर:'-अन्धकार में कार्य करने में समर्थ पुरुष को नियत करे। ६. (नारकाय वीरहणम्) = [नारम् नरसमूहं कायति] शत्रुओं के नरसमूहों को रुलाने के लिए वीरों को नियत करे, जो शत्रुपक्ष से आनेवाले व्यक्तियों को तीरों की मार से समाप्त कर दें। (पाप्मने क्लीबम्) = पाप के लिए नपुंसक को प्राप्त करे। इस वाक्य के दो अर्थ हो सकते हैं- [क] पाप के लिए नपुंसकसा हो जाए, अर्थात् पाप कर ही न सके अथवा [ख] नपुंसक ही पाप करेगा, वीर पाप को अपनी शोभा के विपरीत समझेगा' ८. (आक्रयाय अयोगूम्) = सब प्रकार के पदार्थों के क्रय-विक्रय के लिए खूब परिश्रमी पुरुष को नियत करे । 'अयोगू' शब्द का अर्थ 'लोहार' है। यह भरपूर श्रम का प्रतीक है। इधर-उधर की भागदौड़ से न थकनेवाला पुरुष ही इस कार्य के लिए उपयुक्त है। ९. (कामाय पुंश्चलूम्) = इच्छाशक्ति को बलवान् बनाने के लिए मनुष्यों में हलचल उत्पन्न करनेवाले को प्राप्त करे। १०. (अतिक्रुष्टाय मागधम्) = महान् वक्तृत्व के लिए मागध-स्तुतिपाठक को प्राप्त करे, भाटों को अत्युक्तिपूर्ण कथनों के उपयुक्त जाने । किसी की निन्दा करनी हो तो मागध को नियुक्त करे, ये लोग प्रशंसा करते हुए प्रतीत होते हैं और इष्टनिन्दा को पूर्ण सफलता के साथ कर सकते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - राजा को चाहिए कि राष्ट्र के भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए उपयुक्ततम व्यक्ति को नियत करे।
मराठी (2)
भावार्थ
हे राजा ! परमेश्वर जसा परोपकार करण्यासाठी जगातील पदार्थ उत्पन्न करतो व दोष नाहीसे करतो, तसे तूही राज्यातील सज्जनांना उन्नत करून दुष्टांना दंड दे. ज्यामुळै त्यांनी चांगले वर्तन करावे व दुष्ट व्यसने नष्ट व्हावीत.
विषय
राजानेही ईश्वराप्रमाणे (न्याय) केला पाहिजे, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे परमेश्वरा अथवा हे राजन् या जगात (ब्रह्मणे) वेद आणि ईश्वराच्या ज्ञानाचा प्रकार करण्यासाठी आपण (ब्राह्मणम्) वेदज्ञाता व ईश्वर-उपासक जन (उत्पन्न करा) (क्षत्रिय) राज्य-स्थापना आणि राज्यरक्षणासाठी (राजन्यम्) क्षत्रिय आणि (मरुद्भ्यः) पशू आदी प्रजेसाठी (वैश्यम्) प्रजेत कीर्तीमान मनुष्य (उत्पन्न करा) (तपसे) कष्ट आणि दुःख सहन करीत सेवा करण्यासाठी (शूद्रम्) प्रेमाने सेवा करणारे आरि शुद्ध-स्वच्छता करणारे शुद्र (उत्पन्नकरा) (नारकाय) दुःख बंधनात टाकणार्या कारागारात (तस्करम्) चोराला बंदिस्त करा. (वीरहणम्) वीरांची हत्या करणार्या (पाप्मने) पापी व्यक्तीसाठी (क्लीबम्) नपुंसकाला (बंधनात ठेवा वा त्याला नपुंसक करा) (आक्रयायै) ज्याला भीतीमुळे लोक पळापळी करतात, अशा हिंसक मनुष्याला (अयोगूम्) लोखंडाचे विशिष्ट हत्यार घेऊन चालणार्या त्या हिंसक माणसाला (आमच्यापासून कुठे तरी दूर पाठवा) (कामाय) विषयसेवन करणार्या कामुक (पुंश्चलूम्) पुरूषांसह व्यभिचारात प्रवृत्त अशा व्यभिचारिणी स्त्रीला (दूर पाठवा) आणि (अतिक्रुष्टाय) लोकांची वा सज्जनांची व्यर्थ निंदा करणार्या (मागधम्) भाट वा चारण मनुष्याला (आमच्यापासून कुठे तरी दूर पाठवा) ॥5॥
भावार्थ
भावार्थ - हे राजन्, ज्याप्रमाणे परमेश्वर या जगात परोपकारासाठी सर्व आवश्यक पदार्थ उत्पन्न करतो आणि दोषपूर्ण पदार्थ वा मानसिक दोष दूर करतो, तसे आपणही या राज्यात सज्जनांची उन्नती करा, दुष्टांना हाकलून द्या, त्यांना दंड करा, ताडन करा की ज्यामुळे प्रजेची शुभगुणांकडे प्रवृत्ती होईल व दुर्व्यसनांपासून प्रजाजन दूर राहतील. ॥5॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O God create a Brahmana, who knows the Veda and God, for propagating the knowledge of God and the Veda ; a Kshatriya prince for the safety of kingdom ; a vaisha for rearing the cattle ; a Shudra for hard labour and service. Cast aside the thief, who steals in darkness ; the destroyer of heroes, who passes his days in jail, the eunuch mentally disposed to licentiousness, the dacoit bent on looting and harming people ; the harlot full of lust ; and the bard disposed to abuse.
Meaning
Give us, we pray, the Brahmanas for education and research, culture and human values; the Kshatriyas for governance, defence and administration; the Vaishyas for economic development, and the Shudras for assistance and labour in the ancillary services. Remove, we pray, the thief roaming in the dark, the murderer bent on lawlessness, the coward disposed to sin, the armed terrorist bent on destruction, the harlot out for pleasure of flesh, and the bastard fond of scandal. Note: In mantras 5-22 in which various aspects of organised life are listed, there is repetition of ‘asuva’ and ‘parasuva’ from mantra 3, which means: ‘Give us, we pray, what is good’, and, ‘Remove, we pray, what is evil’. This is the prayer. Also, there are echoes of ‘havamahe’ from mantra 4, which means: ‘We invoke and develop’, and, ‘we challenge and fight out’. This is the call for action under the divine eye.
Translation
(He deputes) the intellectual persons (brahmana) to intellectual pursuits. (1) The nobles (rajanya) to defence and administration. (2) The producers of wealth (vaisya) to sustenance of people. (3) The labourer (Sudra) to hard work. (4) The thief to darkness. (5) The Slaughterer of heroes to hellish tortures. (6) The impotent to evil tendencies. (7) The swordsman to attack. (8) A harlot to sexual pleasure. (9) A minstrel (magadha) to excessive abusing. (10)
Notes
This and the following 17 verses contain no verb at all. It has to be imagined. The ritualists have imagined that cer tain types of victims (men and women) are to be tied to the wooden stakes for certain deities. We have followed a different line. Brahmane, for intellectual pursuits. Kṣatrāya, for defence of the weak. Marudbhyaḥ, for sustenance of people; or af, for the subjects such as cattle. (Dayā. ). Tapase, for hard work. Klibam, नपुंसकं, impotent; eunuch. Ayogūm, अयस: लोहस्य गंतारं, a swordsman; a robber. Akrayāya, आक्रमणाय , for attack. Puñścalūm, a harlot.
बंगाली (1)
विषय
ঈশ্বরবদ্রাজ্ঞাপি কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
ঈশ্বরতুল্য রাজাকেও করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে পরমেশ্বর বা রাজন্! আপনি এই জগতে (ব্রহ্মণে) বেদ ও ঈশ্বরের জ্ঞানের প্রচারের অর্থ (ব্রাহ্মণম্) বেদ ঈশ্বর বিদ্কে (ক্ষত্রায়) রাজ্যের রক্ষা হেতু (রাজন্যম্) রাজপুত্রকে (মরুদভ্যঃ) পশু আদি প্রজার জন্য (বৈশ্যম্) প্রজাদিগের মধ্যে প্রসিদ্ধ ব্যক্তিকে (তপসে) সন্তাপজন্য সেবন হেতু (শূদ্রম্) প্রীতিপূর্বক সেবা করুন তথা শুদ্ধিকারী শূদ্রকে সব দিক দিয়া উৎপন্ন করুন (তমসে) অন্ধকারের জন্য প্রবৃত্ত (তস্করম্) চোরকে (নারকায়) দুঃখবন্ধনে হওয়া কারাগারের জন্য প্রবৃত্ত (বীরহণম্) বীরহননকারী ব্যক্তিকে (পাপ্মনে) পাপাচরণের জন্য প্রবৃত্ত (ক্লীবম্) নপুংসককে (আক্রয়ায়ৈ) প্রাণীদের যাহাতে আক্রমণ হয় সেই হিংসার জন্য প্রবৃত্ত (অয়োগূম্) লৌহ অস্ত্র বিশেষ সহ গমনশীল ব্যক্তিকে (কামায়) বিষয় সেবনের জন্য প্রবৃত্ত (পুংশ্চলুম্) পুরুষদের সহ যাহার চিত্ত চলায়মান সেই ব্যভিচারিণী স্ত্রীকে এবং (অতিক্রুষ্টায়) অত্যন্ত নিন্দা করিবার জন্য প্রবৃত্ত (মাগধম্) ভাঁড়কে দূরে রাখুন ॥ ৫ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–হে রাজন্! যেমন জগদীশ্বর জগতে পরোপকার হেতু পদার্থগুলিকে উৎপন্ন করে এবং দোষসমূহকে নিবৃত্ত করে সেইরূপ আপনি রাজ্যে সজ্জনদিগের উন্নতি করুন, দুষ্টদিগকে বাহির করুন, দন্ড ও তাড়নাও দিন, যাহাতে শুভ গুণগুলির প্রবৃত্তি এবং দুষ্ট ব্যসনগুলির নিবৃত্তি হয় ॥ ৫ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ব্রহ্ম॑ণে ব্রাহ্ম॒ণং ক্ষ॒ত্রায়॑ রাজ॒ন্যং᳖ ম॒রুদ্ভ্যো॒ বৈশ্যং॒ তপ॑সে॒ শূ॒দ্রং তম॑সে॒ তস্ক॑রং নার॒কায়॑ বীর॒হণং॑ পা॒প্মনে॑ ক্লী॒বমা॑ক্র॒য়ায়া॑ऽঅয়ো॒গূং কামা॑য় পুঁশ্চ॒লূমতি॑ক্রুষ্টায় মাগ॒ধম্ ॥ ৫ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ব্রহ্মণ ইত্যস্য নারায়ণ ঋষিঃ । পরমেশ্বরো দেবতা । স্বরাডতিশক্বরী ছন্দঃ ।
পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal