यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 17
ऋषिः - नारायण ऋषिः
देवता - राजेश्वरौ देवते
छन्दः - विराट् धृतिः
स्वरः - ऋषभः
4
बी॒भ॒त्सायै॑ पौल्क॒सं वर्णा॑य हिरण्यकारं तु॒लायै॑ वाणि॒जं प॑श्चादो॒षाय॑ ग्ला॒विनं॒ विश्वे॑भ्यो भू॒तेभ्यः॑ सिध्म॒लं भूत्यै॑ जागर॒णमभू॑त्यै स्वप॒नमार्त्यै॑ जनवा॒दिनं॒ व्यृद्ध्याऽअपग॒ल्भꣳ सꣳश॒राय॑ प्र॒च्छिद॑म्॥१७॥
स्वर सहित पद पाठबी॒भ॒त्सायै॑। पौ॒ल्क॒सम्। वर्णा॑य। हि॒र॒ण्य॒का॒रमिति॑ हिरण्यऽका॒रम्। तु॒लायै॑। वा॒णि॒जम्। प॒श्चा॒दो॒षायेति॑ पश्चाऽदो॒षाय॑। ग्ला॒विन॑म्। विश्वे॑भ्यः। भू॒तेभ्यः॑। सि॒ध्म॒लम्। भूत्यै॑। जा॒ग॒र॒णम्। अभू॑त्यै। स्व॒प॒नम्। आर्त्या॒ इत्याऽऋ॑त्यै। ज॒न॒वा॒दिन॒मिति॑ जनऽवा॒दिन॑म्। व्यृ᳖द्ध्या इति॒ विऽऋ॑ध्यै। अ॒प॒ग॒ल्भमित्य॑पऽग॒ल्भम्। स॒ꣳश॒रायेति॑ सम्ऽश॒राय॑। प्र॒च्छिद॒मिति॑ प्र॒ऽच्छिद॑म् ॥१७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
बीभत्सायै पौल्कसँवर्णाय हिरण्यकारन्तुलायै वाणिजम्पश्चादोषाय ग्लाविनँविश्वेभ्यो भूतेभ्यः सिध्मलम्भूत्यै जागरणमभूत्यै स्वपनमार्त्यै जनवादिनँव्यृद्धर्याऽअपगल्भँ सँशराय प्रच्छिदम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
बीभत्सायै। पौल्कसम्। वर्णाय। हिरण्यकारमिति हिरण्यऽकारम्। तुलायै। वाणिजम्। पश्चादोषायेति पश्चाऽदोषाय। ग्लाविनम्। विश्वेभ्यः। भूतेभ्यः। सिध्मलम्। भूत्यै। जागरणम्। अभूत्यै। स्वपनम्। आर्त्या इत्याऽऋत्यै। जनवादिनमिति जनऽवादिनम्। व्यृद्ध्या इति विऽऋध्यै। अपगल्भमित्यपऽगल्भम्। सꣳशरायेति सम्ऽशराय। प्रच्छिदमिति प्रऽच्छिदम्॥१७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे ईश्वर वा राजन्! त्वं बीभत्सायै पौल्कसं पश्चादोषाय ग्लाविनमभूत्यै स्वपनं व्यृद्ध्या अपगल्भं संशराय प्रच्छिदं परासुव। वर्णाय हिरण्यकारं तुलायै वाणिजं विश्वेभ्यो भूतेभ्यः सिध्मलं भूत्यै जागरणमार्त्यै जनवादिनमासुव॥१७॥
पदार्थः
(बीभत्सायै) भर्त्सनाय प्रवृत्तम् (पौल्कसम्) पुक्कसस्यान्त्यजस्याऽपत्यम्। अत्र पृषोदरादित्वादभीष्टसिद्धिः (वर्णाय) सुरूपसंपादनाय (हिरण्यकारम्) सुवर्णकारं सूर्यं वा (तुलायै) तोलनाय (वाणिजम्) वणिगपत्यम् (पश्चादोषाय) पश्चाद्दोषदानाय प्रवृत्तम् (ग्लाविनम्) अहर्षितारम् (विश्वेभ्यः) सर्वेभ्यः (भूतेभ्यः) (सिध्मलम्) सिध्माः सुखसाधका विद्यन्ते यस्य तम् (भूत्यै) ऐश्वर्याय (जागरणम्) जागृतम् (अभूत्यै) अनैश्वर्याय (स्वपनम्) निद्राम् (आर्त्यै) पीडानिवृत्तये (जनवादिनम्) प्रशस्ता जनवादा विद्यन्ते यस्य तम् (व्यृद्ध्यै) विगता चासौ ऋद्धिश्च व्यृद्धिस्तस्यै (अपगल्भम्) प्रगल्भतारहितम् (संशराय) सम्यग्घिंसनाय प्रवृत्तम् (प्रच्छिदम्) यः प्रच्छिनत्ति तम्॥१७॥
भावार्थः
ये मनुष्या नीचसङ्गं त्यक्त्वोत्तमसङ्गतिं कुर्वन्ति, ते सर्वव्यवहारसिद्ध्यैश्वर्यवन्तो जायन्ते। येऽनलसाः सन्तः सिद्धये यतन्ते, ते सुखं ये चाऽलसास्ते च दारिद्र्यमाप्नुवन्ति॥१७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे जगदीश्वर वा राजन्! आप (बीभत्सायै) धमकाये के लिए प्रवृत्त हुए (पौल्कसम्) भंगी के पुत्र को (पश्चादोषाय) पीछे दोष को प्रवृत्त हुए (ग्लाविनम्) हर्ष को नष्ट करने वाले को (अभूत्यै) दरिद्रता के अर्थ समर्थ (स्वपनम्) सोने को (व्यृद्ध्यै) संपत् के बिगाड़ने के अर्थ प्रवृत्त हुए (अपगल्भम्) प्रगल्भतारहित पुरुष को तथा (संशराय) सम्यक् मारने के लिए प्रवृत्त हुए (प्रच्छिदम्) अधिक छेदन करनेवाले को पृथक् कीजिए और (वर्णाय) सुन्दर रूप बनाने के लिए (हिरण्यकारम्) सुनार वा सूर्य्य को (तुलायै) तोलने के अर्थ (वाणिजम्) बणिये के पुत्र को (विश्वेभ्यः) सब (भूतेभ्यः) प्राणियों के लिए (सिध्मलम्) सुख सिद्ध करने वाले जिस के सहायी हों, उस जन को (भूत्यै) ऐश्वर्य होने के अर्थ (जागरणम्) प्रबोध को और (आर्त्यै) पीड़ा की निवृत्ति के लिए (जनवादिनम्) मनुष्यों को प्रशंसा के योग्य वाद-विवाद करने वाले उत्तम मनुष्य को उत्पन्न वा प्रकट कीजिए॥१७॥
भावार्थ
जो मनुष्य नीचों का संग छोड़ के उत्तम पुरुषों की सङ्गति करते हैं, वे सब व्यवहारों की सिद्धि से ऐश्वर्य वाले हाते हैं। जो अनालसी होके सिद्धि के लिए यत्न करते, वे सुखी और जो आलसी होते वे दरिद्रता को प्राप्त होते हैं॥१७॥
विषय
ब्रह्मज्ञान, क्षात्रबल, मरुद् ( वैश्य ) विज्ञान आदि नाना ग्राह्य शिल्प पदार्थों की वृद्धि और उसके लिये ब्राह्मण, क्षत्रियादि उन-उन पदार्थों के योग्य पुरुषों की राष्ट्ररक्षा के लिये नियुक्ति । त्याज्य कार्यों के लिये उनके कर्त्ताओं को दण्ड का विधान ।
भावार्थ
(१२३) (बीभत्सायै) बीभत्स क्रियाओं के लिये (पौल्कसम्) पुक्कस नाम घृणित पदार्थ के साथ व्यवहार करने वाले पुरुष को लगावे । (१२४) (वर्णाय उत्तम वर्ण या सुन्दर वरण करने योग्य पदार्थ के लिये ( हिरण्यकारम् ) सुवर्णकार को नियुक्त करो । (१२५) (तुलायै वणिजम् ) तुला, तराजू के व्यवहार के लिये वणिग् व्यवसाय में कुशल पुरुष को लगावे । (१२६) (पश्चादोषाय ग्लाबिनम् ) पीछे से दोष देने के लिये अप्रसन्न पुरुष, जिसको गलानि हो जाय उसे उपयुक्त जाने, क्योंकि वही पीछे से दोष दिया करता है । (१२७) (विश्वेभ्यः भूतेभ्यः) समस्त प्राणियों के सुख के लिये ( सिघ्मलम् ) त्वचा रोग के रोगी पुरुष को सदा दूर रक्खे ।' अथवा समस्त प्राणियों के सुख के लिये सुखसाधक पदार्थों से युक्त पुरुष को नियुक्त करो । ( १२८) (जागरणं भूत्यै) जागना, सावधान रहना भूति, ऐश्वर्य वृद्धि के लिये आवश्यक है । (१२९ ) ( स्वप-) नम् ) सोना आलस्य करना (अभूत्यै) ऐश्वर्य के नाश के लिये है । (१३० ) ( आत्यै जनवादिनम् ) पीड़ा को दूर करने और उससे खबरदार करने के लिये सर्वसाधारण के स्पष्ट रूप से सूचित कर देने वाले पुरुष को नियुक्त करे । (१३१) (व्यृद्ध्य) ऋद्धि सम्पत्ति के नाश करने के लिये प्रवृत्त हुए ( अपगल्भम् ) बुरे प्रकार के ढीठ पुरुष को दमन करे । अथवा (व्यध्यै ) सम्पत्ति समृद्धि के नाश या विपरीत गुण वाली समृद्धि से बचने के लिये ( अपगल्भम् ) दुरभिमानी को दमन करे और विनीत पुरुष को नियुक्त करे | (१३२) (संशराय) अच्छी प्रकार शरों या बाणों का प्रयोग करने - के लिये (प्रच्छिदम् ) दूर तक छेदन-भेदन में कुशल पुरुष को नियुक्त कर ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विराड् धृतिः । ऋषभः ॥
विषय
बीभत्स के लिए पौल्कस को
पदार्थ
१२३. (बीभत्सायै) = हत्या आदि बीभत्स कार्यों के लिए (पौल्कसम्) = अन्त्यजजाति के व्यक्ति को प्राप्त करे। १२४. (वर्णाय) = सौन्दर्य निर्माण के लिए (हिरण्यकारम्) = सुवर्णकार को प्राप्त करे, वह सोने पर किस प्रकार चित्रकला द्वारा सौन्दर्य का उत्पादन करनेवाला होता है ? १२५. (तुलायै) = तुला के लिए, तोलने आदि के कार्यों के लिए (वाणिजम्) = वणिक्पुत्र [ बाणिया] को प्राप्त करे। १२६. (पश्चादोषाय) = पीछे दोष देने के लिए (ग्लाविनम्) = अहृष्ट, अशान्त को प्राप्त करे [ग्लै हर्षक्षये], अर्थात् अप्रसन्न रहने के स्वभाववाला व्यक्ति सदा पीठ पीछे दोषों का उद्घाटन करता है अथवा पश्चादोष [back biter] कभी प्रसन्न नहीं रह सकता। १२७. (विश्वेभ्यः भूतेभ्यः) = सब प्राणियों के हित के लिए (सिध्मलम्) = [सिध्मा: सुखसाधकाः विद्यन्ते यस्य तम् - द०] सुखसाधक पदार्थों से युक्त पुरुष को नियत करे। १२८. (भूत्यै जागरणम्) = कल्याण के लिए जागरण को प्राप्त करें, अर्थात् जागनेवाले का ही कल्याण होता है, ऐसा समझे । १२९. (अभूत्यै स्वपनम्) = यह भी स्पष्ट है कि सोना, सोते रहना, अपने भले को न सोचना, अकल्याण के लिए होता है। १३०. (आर्त्यै) = पीड़ा के लिए (जनवादिनम्) = इधर-उधर लोकनिन्दा फैलानेवाले को प्राप्त करे। १३१. (व्यृद्ध्यै) = असमृद्धि व दरिद्रता के लिए (अपगल्भम्) = प्रगल्भतारहित पुरुष को प्राप्त करे। राजा के मन्त्री प्रगल्भ व चतुर न होंगे तो कोश खाली हो जाएगा। प्रगल्भता के अभाव में गृहस्थ दरिद्र ही बना रहेगा। १३२. (संशराय) = उत्तमता से हिंसा के लिए (प्रच्छिदम्) = उत्तम छेदनकर्ता को प्राप्त करे, अर्थात् वधदण्ड के लिए छेदनक्रिया में निपुण व्यक्ति को नियत करे। में निपुण व्यक्ति की नियुक्ति करनी है।
भावार्थ
भावार्थ - राष्ट्र में बीभत्स व छेदनादि कार्यों में निपुण व्यक्ति को नियत करे ।
मराठी (2)
भावार्थ
जी माणसे नीच माणसांची संगती सोडून उत्तम पुरुषांची संगती करतात त्यांचे सर्व व्यवहार सिद्ध होऊन ते ऐश्वर्यवान बनतात. जे उद्योगी बनून यत्न करतात ते सुखी होतात व जे आळशी असतात ते दारिद्र्यातच राहतात.
विषय
पुन्हा, त्याच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे जगदीश्वर वा हे राजन्, आपण (बीभत्सायै) धमकावण्यापासून (पौल्कसम्) भंगीच्या पुत्रास (परावृत्त करा) (अथवा घृणित, निंदनीय मलमूत्र काढणेसारखे बीभत्स कर्म करणार्या पासून भंगीपुत्राला दूर करा ते घृणित कार्य करू देऊ नका, असाही अर्थ निघतो) (पश्चादोषाय) पाठीमागून नांव ठेवणार्यापासून (ग्लाविनम्) हर्षनाशक मनुष्याला पृथक करा (निंदकाची निंदा न चहाडी लावण्याची प्रवृत्ती नष्ट करा) (अभूत्यै) दारिद्य्रापासून (दरिद्रव्यक्तीपासून) त्याची (स्वपनम्) झोपण्याची (आलस्यवृत्ती घालवा) (व्यृद्ध्यै) संपत्तीचा नाश करणार्यापासून (अपगल्भम्) मूर्ख अविवेकी मनुष्याला (पृथक करा) (संराय) मारण्याच्या वा प्रहार करण्यास उद्द व मनुष्याला (प्रच्छिदम) अधिकहिंसा वा हिंसकवृत्ती पासून पृथक करा (त्याच्यातील ती हिंसकवृत्ती घालवा) - (वर्णाय) सुंदर रूप निर्माण करणार्यासाठी (सौंदर्यवृद्धीसाठी) (हिरण्यकारम्) सोनार अथवा सूर्य (उत्पन्न करा-निर्माण करा) (तुलायै) मापतोल करण्यासाठी (वाणिजम्) वाणी, व्यापारी मनुष्याच्या पुत्र आणि (विश्वेभ्यः) (भूतेभ्यः) सर्व प्राण्यासाठी (सिध्मलम्) सुख निर्माण करणारा मनुष्य आणि त्याचे सहायक (उत्पन्न करा-निर्माण करा) (भूत्यै) ऐश्वर्यप्राप्तीसाठी (जागरणम्) तद्विषयक ज्ञान आणि (आर्त्यै) पीडा-वेदनेपासून निवृत्तीसाठी (जनवादिनम्) लोकांना वाद विवादाद्वारे प्रशंसनीय ज्ञान देणारा मनुष्य (जनवादिनम) (उत्पन्न करा-निर्माण करा) ॥17॥
भावार्थ
भावार्थ - जे लोक नीच माणसांचा संग सोडून उत्तम पुरूषांची संगती धरतात, ते सर्व कार्यात यशस्वी आणि ऐश्वर्यवान होतात. जे लोक आलस्य न करता उद्दिष्टाच्या पूर्ततेसाठी यत्न करतात, ते सुखी होतात आणि जे आळसी राहतात, ते दारिद्य्राच्या गर्तात लोटले जातात. ॥17॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O God drive away a sweepers son bent on ferocity ; a dissatisfied person given to back-biting ; a slothful person destined for poverty ; a shameless person bent on losing wealth ; a destroyer and splitter bent on violence. O God create a goldsmith for beautifying ornaments ; a merchant for exact weighing ; a bringer of happiness for all human beings with his assistants ; a watchful man for prosperity ; an eloquent debater for alleviation of suffering.
Meaning
Remove the brute bent on cruelty, the non¬ performer suffering from fault-finding, the slothful heading to adversity, the slanderer causing mischief and injury, the pessimist inviting poverty, the saboteur causing damage and destruction. Give us the sun and the goldsmith for beauty of form, the measurer for correct measurement, all round capability for all living beings, wakefulness for prosperity, the public voice against adversity.
Translation
(One should seek) for obnoxious jobs a scavanger. (1) For colour a goldsmith. (2) For weighing balance a merchant. (3) For finding faults an unpleasant man. (4) For all the beings a procurer of comforts. (5) For prosperity an alert man. (6) For poverty a sleepy person. (7) For mischief a gossiper. (8) For defamation a shame less person. (9) For extreme violence a mincer. (10)
Notes
Bibhatsāyai, for obnoxious jobs. Paulkasam, a scavanger. Pascadoṣāya, for finding faults. Glāvinam, an unpleasant man. Sidhmalam, procurer of comforts; or, a man suffering from leucoderma or leprosy; a leper. Ärtyai, for mischief. Apagalbham, a shameless person. Samsaraya, for extreme violence. Pracchadam,प्रच्छेदनकर्तारं, a mincer.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে জগদীশ্বর বা রাজন্! আপনি (বীভৎসায়ৈ) ভৎর্সনার জন্য প্রবৃত্ত (পৌল্কসম্) মেথরের পুত্রকে (পশ্চাদোষায়) পিছনে দোষ দিতে প্রবৃত্ত (গ্লাবিনম্) হর্ষের বিনাশকারীকে (অভূত্যৈ) দারিদ্র্যের জন্য সক্ষম (স্বপনম্) নিদ্রা কে (ব্যদ্ধ্যৈ) সম্পত্তি নষ্ট করিবার জন্য প্রবৃত্ত (অপগল্ভম্) প্রগল্ভতারহিত পুরুষকে তথা (সংশরায়) সম্যক্ মারিবার জন্য প্রবৃত্ত (প্রচ্ছিদম্) অধিক ছেদনকারীকে পৃথক করুন এবং (বর্ণায়) সুন্দর রূপ সম্পাদনার্থ (হিরণ্যকারম্) স্বর্ণকার বা সূর্য্যকে (তুলায়ৈ) তৌল করিবার জন্য (বাণিজম্) বণিকের পুত্রকে (বিশ্বেভ্যঃ) সকল (ভূতেভ্যঃ) প্রাণীদিগের জন্য (সিধ্মলম্) সুখ সিদ্ধকারী যাহার সহায়ক হয় সেই ব্যক্তিকে (ভূত্যৈ) ঐশ্বর্য্য হইবার জন্য (জাগরণম্) প্রবোধকে এবং (আর্ত্যৈ) পীড়ার নিবৃত্তি হেতু (জনবাদিনম্) মনুষ্যকে প্রশংসার যোগ্য বাদ-বিবাদকারী উত্তম মনুষ্যকে উৎপন্ন বা প্রকট করুন ॥ ১৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যে সব মনুষ্য নিম্নলোকদের সঙ্গ পরিত্যাগ করিয়া উত্তম পুরুষদের সঙ্গতি করে, তাহারা সব ব্যবহারের সিদ্ধি দ্বারা ঐশ্বর্য্য সম্পন্ন হয়, যাহারা নিরলস হইয়া সিদ্ধির জন্য চেষ্টা করে তাহারা সুখী এবং যাহারা অলস হয় তাহারা দারিদ্র্য প্রাপ্ত হয় ॥ ১৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
বী॒ভ॒ৎসায়ৈ॑ পৌল্ক॒সং বর্ণা॑য় হিরণ্যকা॒রং তু॒লায়ৈ॑ বাণি॒জং প॑শ্চাদো॒ষায়॑ গ্লা॒বিনং॒ বিশ্বে॑ভ্যো ভূ॒তেভ্যঃ॑ সিধ্ম॒লং ভূত্যৈ॑ জাগর॒ণমভূ॑ত্যৈ স্বপ॒নমার্ত্যৈ॑ জনবা॒দিনং॒ বৃ্য᳖দ্ধ্যাऽঅপগ॒ল্ভꣳ সꣳশ॒রায়॑ প্র॒চ্ছিদ॑ম্ ॥ ১৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
বীভৎসায়া ইত্যস্য নারায়ণ ঋষিঃ । রাজেশ্বরৌ দেবতে । বিরাট্ ধৃতিশ্ছন্দঃ ।
ঋষভঃ স্বরঃ ॥
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