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यजुर्वेद अध्याय - 35

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  • यजुर्वेद - अध्याय 35/ मन्त्र 2
    ऋषिः - आदित्या देवा ऋषयः देवता - सविता देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    3

    स॒वि॒ता ते॒ शरी॑रेभ्यः पृथि॒व्यां लो॒कमि॑च्छतु।तस्मै॑ युज्यन्तामु॒स्रियाः॑॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒वि॒ता। ते॒ शरी॑रेभ्यः। पृ॒थि॒व्याम्। लो॒कम्। इ॒च्छ॒तु॒ ॥ तस्मै॑। यु॒ज्य॒न्ता॒म्। उ॒स्रियाः॑ ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सविता ते शरीरेभ्यः पृथिव्याँल्लोकमिच्छतु । तस्मै युज्यन्तामुस्रियाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सविता। ते शरीरेभ्यः। पृथिव्याम्। लोकम्। इच्छतु॥ तस्मै। युज्यन्ताम्। उस्रियाः॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 35; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरीश्वरकर्त्तव्यविषयमाह॥

    अन्वयः

    हे जीव! सविता यस्य ते शरीरेभ्यः पृथिव्यां लोकमिच्छतु, तस्मै तुभ्यमुस्रिया युज्यन्ताम्॥२॥

    पदार्थः

    (सविता) परमात्मा (ते) तव (शरीरेभ्यः) देहेभ्यः (पृथिव्याम्) अन्तरिक्षे भूमौ वा (लोकम्) कर्मानुकूलं सुखदुःखप्रापकम् (इच्छतु) (तस्मै) (युज्यन्ताम्) (उस्रियाः) किरणाः। उस्रा इति रश्मिनामसु पठितम्॥ (निघं॰१। ५)॥२॥

    भावार्थः

    हे जीवा! यो जगदीश्वरो युष्मभ्यं सुखमिच्छति, किरणद्वारा लोकलोकान्तरं प्रापयति, स एव युष्माभिर्न्यायकारी मन्तव्यः॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर ईश्वर के कर्त्तव्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे जीव! (सविता) परमात्मा जिस (ते) तेरे (शरीरेभ्यः) जन्म-जन्मान्तरों के शरीरों के लिये (पृथिव्याम्) अन्तरिक्ष वा भूमि में (लोकम्) कर्मों के अनुकूल सुख-दुःख के साधन प्रापक स्थान को (इच्छतु) चाहे (तस्मै) उस तेरे लिये (उस्रियाः) प्रकाशरूप किरण (युज्यन्ताम्) अर्थात् उपयोगी हों॥२॥

    भावार्थ

    हे जीवो! जो जगदीश्वर तुम्हारे लिये सुख चाहता है और किरणों के द्वारा लोक-लोकान्तर को पहुंचाता है, वही तुम लोगों को न्यायकारी मानना चाहिये॥२॥

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    विषय

    राजा का प्रजा के प्रति कर्तव्य । पक्षान्तर में परमेश्वर की व्यवस्था । किरणों द्वारा जीवों की लोकलोकान्तर में गति।

    भावार्थ

    राजा के पक्ष में- हे पुरुष ! (सविता) सबका प्रेरक राजा ( ते शरीरेभ्यः ) तेरे सम्बन्धी जनों के शरीरों के भरण-पोषण के लिये ( पृथिव्याम् ) इस पृथिवी में ( लोकम् ) पर्याप्त स्थान जितने की उत्तम रीति से देख भाल कर सके (इच्छतु) देवे । (तस्मै ) इस राजा के लिये (उस्रियाः) बैल ( युजन्ताम् ) जोड़े जायं । (२) परमेश्वर के पक्ष में— परमेश्वर जीव के शरीरों के लिये पृथिवी में स्थान दे । जीव के शरीर में, रथ में बैलों के समान ज्ञानग्राहक प्राण प्रदान करता है । अथवा, उसे देह से देहान्तर और लोक से लोकान्तर में जाने के लिये किरणों से युक्त करता है । किरणों द्वारा जीव लोक-लोकान्तर में गमन करते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सविता देवता । गायत्री । षड्जः ॥

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    विषय

    सूर्य किरणें

    पदार्थ

    'घर में सब लोग स्वस्थ हों, घर का विकास [प्रसव व उत्पत्ति] हो तथा ऐश्वर्य की कमी न हो' इसके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि घर में सूर्यकिरणों का सम्पर्क अविच्छिन्न हो। सूर्य का नाम सविता है, यह 'षु प्रसवैश्वर्ययो: ' सब प्रसव [Growth] व ऐश्वर्य का करनेवाला है। मन्त्र में कहते हैं कि (सविता) = यह सूर्य (ते) = तेरे (शरीरेभ्यः) = शरीरों के लिए (पृथिव्याम्) = इस पृथिवी पर (लोकम्) = आलोक-प्रकाश को (इच्छतु) = चाहे । (तस्मै) = उस तेरे लिए (उस्त्रिया:) = सूर्यकिरणें (युज्यन्ताम्) = युक्त हों, सदा उपयोग की वस्तु बनें [युज् = use] जिस घर में सूर्यकिरणों का प्रवेश ठीक प्रकार से होता है उस घर में रोग नहीं घुस पाते, इसलिए हमारे घर ऐसे ही बनने चाहिए जिनमें सूर्यकिरणें सदा आ सकें।

    भावार्थ

    भावार्थ- 'घरों में रोगों का प्रवेश न हो, इसके लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि उनमें सूर्य की किरणों का प्रवेश अव्याहतरूप से हो।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे जीवांनो ! जो जगदीश्वर तुम्हाला सुख देऊ इच्छितो व किरणांद्वारे लोकलोकांतरी पोहोचवून कर्माप्रमाणे सुख-दुःखकारक साधन देतो. त्यालाच तुम्ही न्यायकारी मानले पाहिजे.

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    विषय

    आता ईश्‍वराच्या कर्त्तव्याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे जीव (जीवात्मा, (सविता) परमात्मा (ते) तुझ्या (शरीरेभ्यः) जन्मजन्मान्तरांमधे मिळणार्‍या देहासाठी (पृथिव्याम्) अंतरिक्षात अथवा भूमीत (लोकम्) तुझ्या कर्मांप्रमाणे सुखदायक वा दु:खदायक स्थान (इच्छतु) शोधून देवो (प्रत्येक जन्मात तुला आकाशात वा भूमीवर जो देह मिळेल, त्याची योग्य व्यवस्था ईश्‍वर करतो वा करो) (तस्यै) तुला तो देह देण्यासाठी (उस्त्रियाः) प्रकाशरूप किरणें (युज्यन्ताम्) उपयोगी व्हाव्यात. (जीवात्मा किरणांच्या साह्याने त्या त्या जन्मी तो तो देह कर्मानुसार धारण करतो) ॥2॥

    भावार्थ

    भावार्थ – हे जीवात्मांनो, जाणून घ्या की जो जगदीश्‍वर तुमच्यासाठी सुखाची कामना करतो, तोच तुम्हाला किरणांच्या साह्याने लोक लोकांतरापर्यंत पोहचवितो. त्याला तुम्ही न्यायकारी असे माना व जाणा. ॥2॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O soul, God grants for thy bodies in different births, according to thy deeds a happy or unhappy place on this earth. May radiant beams prove helpful to thee.

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    Meaning

    Human soul, may Savita, Lord of life and Law, will and determine a suitable place of residence for your bodies on the earth or in the skies, and may the rays of the sun be instrumental to that placement for you.

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    Translation

    May the impeller Lord grant a place (i. e. body) for your physical existence on earth. Let the sense-organs be harnessed for it. (1)

    Notes

    Savitā, the impeller Lord. Prthivyām lokam icchatu, may grant you a place on earth. Usriyāḥ, sense-organs; also, bullocks. Yujyantām, be hamessed.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনরীশ্বরকর্ত্তব্য বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ ঈশ্বরের কর্ত্তব্য বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে জীব! (সবিতা) পরমাত্মা (তে) তোমার (শরীরেভ্যঃ) জন্মজন্মান্তরের শরীরের জন্য (পৃথিব্যাম্) অন্তরিক্ষ বা ভূমিতে (লোকম্) কর্ম্মানুকূল সুখ-দুঃখের সাধন প্রাপক স্থানকে (ইচ্ছতু) ইচ্ছা করিবে (তস্মৈ) উহা তোমার জন্য (উস্রিয়াঃ) প্রকাশরূপ কিরণ (য়ুজ্যন্তাম্) অর্থাৎ উপয়োগী হউক ॥ ২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- হে জীবগণ ! যে জগদীশ্বর তোমাদের জন্য সুখ কামনা করেন এবং কিরণগুলির দ্বারা লোক-লোকান্তরে পৌঁছান তিনিই তোমাদের ন্যায়কারী স্বীকার করা উচিত ॥ ২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    স॒বি॒তা তে॒ শরী॑রেভ্যঃ পৃথি॒ব্যাং লো॒কমি॑চ্ছতু ।
    তস্মৈ॑ য়ুজ্যন্তামু॒স্রিয়াঃ॑ ॥ ২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    সবিতা তয়িত্যস্য আদিত্যা দেবা ঋষয়ঃ । সবিতা দেবতা । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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