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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 50 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 50/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गोपथः देवता - रात्रिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रात्रि सूक्त
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    ये ते॑ रात्र्यन॒ड्वाह॑स्ती॒क्ष्णशृ॑ङ्गाः स्वा॒शवः॑। तेभि॑र्नो अ॒द्य पा॑र॒याति॑ दु॒र्गाणि॑ वि॒श्वहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। ते॒। रा॒त्रि॒। अ॒न॒ड्वाहः॑। तीक्ष्ण॑ऽशृङ्गाः। सु॒ऽआ॒शवः॑। तेभिः॑। नः॒। अ॒द्य। पा॒र॒य॒। अति॑। दुः॒ऽगानि॑। वि॒श्वहा॑ ॥५०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये ते रात्र्यनड्वाहस्तीक्ष्णशृङ्गाः स्वाशवः। तेभिर्नो अद्य पारयाति दुर्गाणि विश्वहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये। ते। रात्रि। अनड्वाहः। तीक्ष्णऽशृङ्गाः। सुऽआशवः। तेभिः। नः। अद्य। पारय। अति। दुःऽगानि। विश्वहा ॥५०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 50; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रात्रि में रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (रात्रि) हे रात्रि ! (ते) तेरे (ये) जो (तीक्ष्णशृङ्गाः) पैने सींगवाले और (स्वाशवः) बड़े फुरतीले (अनड्वाहः) रथ ले चलनेवाले बैल [अर्थात् बैलों के समान रक्षा भार उठानेवाले पुरुष] हैं। (तेभिः) उनके द्वारा (नः) हमें (अद्य) आज और (विश्वाहा) सब दिन (दुर्गाणि प्रति) विघ्नों को लाँघ कर (पारय) पार लगा ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि रथ ले चलनेवाले फुरतीले बलवान् बैलों के समान रक्षा भार उठाने में फुरतीले और पराक्रमी होकर सब विघ्नों को हटावें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(ये) रक्षकाः (ते) तव (रात्रि) (अनड्वाहः) अनसः शकटस्य वाहकाः पुङ्गवा इव रक्षाभारवाहकाः पुरुषाः (तीक्ष्णशृङ्गाः) निशितविषाणाः (स्वाशवः) अतिशीघ्रगामिनः (तेभिः) तैः (नः) अस्मान् (अद्य) अस्मिन् दिने (पारय) तारय (अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य (दुर्गाणि) विघ्नान् (विश्वहा) विश्वेषु सर्वेषु अहःसु दिनेषु ॥

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    भाषार्थ

    (ये) जो (ते) वे (तीक्ष्णशृङ्गाः) तेज सींगोंवाले, (स्वाशवः) अति शीघ्रगामी, (अनड्वाहः) रथ का वहन करने में समर्थ बैल हैं, (तेभिः) उन के द्वारा (अद्य) आज और (विश्वहा) सब दिन अर्थात् सदा (रात्रि) हे रात्रि! (नः) हमें (दुर्गाणि) दुर्गम मार्गों को (अति) लांघ कर (पारय) पार कर दे।

    टिप्पणी

    [रात्री में यात्रा करने पर यह निर्देश दिया है कि रथ के बैल प्रौढावस्था के तेज सींगोंवाले, शीघ्रगामी, तथा रथ को ले चलने में समर्थ होने चाहिएँ। रात्री की यात्रा में यदि कोई हिंस्र वन्य-पशु, बैलों पर आक्रमण करे, तो उन से रक्षार्थ, बैल तीक्ष्णशृङ्गोंवाले होने चाहिये।]

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    विषय

    उत्तम-वृषभ

    पदार्थ

    १. हे (रात्रि) = रात्रिदेवते! (ये) = जो (ते) = तेरे (स्वाशवः) = उत्तम तीन गतिवाले (तीक्ष्णशङ्गा:) = तेज सींगोंवाले (अनड्वाह:) = बैल है, (तेभि:) = उनके द्वारा (न:) = हमें (अद्य) = आज और विश्वहा सदा [विश्वेषु अहःस] (दुर्गाणि) = कष्टमय स्थितियों से दुस्तर नदी आदि से (अति पारय) = पार करा। २. जैसे बैल दुस्तर नदी आदि को पार कराने में हमारे सहायक होते हैं, इसीप्रकार राजा हमें शत्रुकृत अरिष्टों से पार कराए।

    भावार्थ

    नदी आदि को पार कराने के लिए शीघ्रगतिवाले तीक्ष्णशृंग बैलों को उत्तम व्यवस्था की जाए।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ratri

    Meaning

    O Night, fast and sharp-homed are the bulls of your chariot. By them take us across the dark difficulties of life to the dawn of a new day now and always.

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    Translation

    O night, with those sharp-horned fast-running bullocks, that are yours may you, today and on all days, hear us across all difficulties.

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    Translation

    Let this night make us overcome difficulties everywhere through its those oxen which are quick in speed and which bear sharpened horns.

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    Translation

    O royal majesty, whoever there are powerful persons, capable of bearing the burden of administration, equipped with very sharp weapons of defence, capable of mobilizing their forces speedily, let them always be helpful to us in overcoming all difficult situations and even today.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(ये) रक्षकाः (ते) तव (रात्रि) (अनड्वाहः) अनसः शकटस्य वाहकाः पुङ्गवा इव रक्षाभारवाहकाः पुरुषाः (तीक्ष्णशृङ्गाः) निशितविषाणाः (स्वाशवः) अतिशीघ्रगामिनः (तेभिः) तैः (नः) अस्मान् (अद्य) अस्मिन् दिने (पारय) तारय (अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य (दुर्गाणि) विघ्नान् (विश्वहा) विश्वेषु सर्वेषु अहःसु दिनेषु ॥

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