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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 50 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 50/ मन्त्र 7
    ऋषिः - गोपथः देवता - रात्रिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रात्रि सूक्त
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    उ॒षसे॑ नः॒ परि॑ देहि॒ सर्वा॑न्रात्र्यना॒गसः॑। उ॒षा नो॒ अह्ने॒ आ भ॑जा॒दह॒स्तुभ्यं॑ विभावरि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒षसे॑। नः॒। परि॑। दे॒हि॒। सर्वा॑न्। रा॒त्रि॒। अ॒ना॒गसः॑ ॥ उ॒षाः। नः॒। अह्ने॑। आ। भ॒जा॒त्। अहः॑। तुभ्य॑म्। वि॒भा॒व॒रि॒ ॥५०.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उषसे नः परि देहि सर्वान्रात्र्यनागसः। उषा नो अह्ने आ भजादहस्तुभ्यं विभावरि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उषसे। नः। परि। देहि। सर्वान्। रात्रि। अनागसः ॥ उषाः। नः। अह्ने। आ। भजात्। अहः। तुभ्यम्। विभावरि ॥५०.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 50; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रात्रि में रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (रात्रि) हे रात्रि ! (उषसे) उषा [प्रभातवेला] को (नः) हम (सर्वान्) सब (अनागसः) निर्दोषों को (परि देहि) सौंप। (उषाः) उषा (नः) हमें (अह्ने) दिन को, और (अहः) दिन (तुभ्यम्) तुझको (आ भजात्) देवे, (विभावरि) हे बड़ी चमकवाली ॥७॥

    भावार्थ

    मनुष्य दिन और राति सदा धर्म के साथ अपनी वृद्धि करें ॥७॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र कुछ भेद से ऊपर आ चुका है-४८।२ ॥ ७−(उषसे) प्रभातवेलायै (नः) अस्मान् (परिदेहि) समर्पय (सर्वान्) (रात्रि) (अनागसः) निर्दोषान् (उषाः) प्रभातवेला (नः) अस्मान् (अह्ने) दिनाय (आभजात्) भज सेवायाम्-लेटि, आडागमः। आभजेत् समन्तात् सेवेत। समर्पयेत्। अन्यत् पूर्ववत्-४८।२ ॥

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    भाषार्थ

    (नः सर्वान्) हम सब (अनागसः) निष्पापों को (रात्रि) हे रात्रि! तू (उषसे) उषा के प्रति (परि देहि) सौंप दे। (उषाः) उषा (नः) हमें (अह्ने) दिन के प्रति, (अहः) और दिन (तुभ्यम्) तेरे प्रति (आ भजात्) सौंप दे, (विभावरि) हे चमकीली रात्रि!

    टिप्पणी

    [अनागसः= निष्पापियों का जीवन दीर्घकाल का होता है। विभावरि= चान्द और तारागणों द्वारा चमकीली। अथवा अनागसः= विना हिंसित हुए।]

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    विषय

    कालचक्र में आगे और आगे

    पदार्थ

    १. हे (रात्रि) = रात्रिदेवते। तु (नः सर्वान) = हम सब (अनागसः) = निष्पापों को ही (उषसे परिदेहि) = उषाकाल के लिए दे, अर्थात् हम रात्रि में किन्हीं भी चोरों आदि के उपद्रवों से आक्रान्त न हों। २. (उषा:) = उषा (न:) = हमें (अह्ने आभजात्) = दिन के लिए देनेवाली हो और (विभावरि) = तारों की दीसिवाली रात्रिदेवते! (अहः) = दिन हमें फिर (तुभ्यम्) = तेरे लिए प्राप्त कराए।

    भावार्थ

    हम सुरक्षितरूप से ही रात्रि से उषा में, उषा से दिन में तथा दिन से पुनः रात्रि में पग रखनेवाले हों। 'रात्रि-उषा-दिन-रात्रि' इसप्रकार क्रम से कालचक्रों में चलते हुए हम दीर्घजीवनवाले हों। यह निष्पाप [अनागाः] जीवनवाला व्यक्ति 'ब्रह्मा' बनता है और कहता है कि -

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ratri

    Meaning

    O Night, deliver us all, free from sin and evil, back to the dawn. Let the dawn deliver us to the day and the day, O splendid Night, may deliver us back to you.

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    Translation

    O night, may you hand over all of us to the dawn free from sin, may the dawn deliver us to the day; and the day to you. O glowing one.

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    Translation

    Let this night safely pass on all of us innocent ta dawn, let dawn entrust us to day and Jet the day deliver us + this glorious night.

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    Translation

    O protecting authority, hand us, being sinless over to the dawn. Let the dawn hand us over to the day. Let the day once again entrust us to thee, the bright one at night.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र कुछ भेद से ऊपर आ चुका है-४८।२ ॥ ७−(उषसे) प्रभातवेलायै (नः) अस्मान् (परिदेहि) समर्पय (सर्वान्) (रात्रि) (अनागसः) निर्दोषान् (उषाः) प्रभातवेला (नः) अस्मान् (अह्ने) दिनाय (आभजात्) भज सेवायाम्-लेटि, आडागमः। आभजेत् समन्तात् सेवेत। समर्पयेत्। अन्यत् पूर्ववत्-४८।२ ॥

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