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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 50 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 50/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गोपथः देवता - रात्रिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रात्रि सूक्त
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    अप॑ स्ते॒नं वासो॑ गोअ॒जमु॒त तस्क॑रम्। अथो॒ यो अर्व॑तः॒ शिरो॑ऽभि॒धाय॒ निनी॑षति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑। स्ते॒नम्। वासः॑। गो॒ऽअ॒जम्। उ॒त। तस्क॑रम् ॥ अथो॒ इति॑। यः। अर्व॑तः। शिरः॑। अ॒भि॒ऽधाय॑। निनी॑षति ॥५०.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप स्तेनं वासो गोअजमुत तस्करम्। अथो यो अर्वतः शिरोऽभिधाय निनीषति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप। स्तेनम्। वासः। गोऽअजम्। उत। तस्करम् ॥ अथो इति। यः। अर्वतः। शिरः। अभिऽधाय। निनीषति ॥५०.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 50; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (3)

    विषय

    रात्रि में रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    तू (स्तेनम्) चोर को (उत) और (गोअजम्) गौ को हाँक ले जानेवाले (तस्करम्) लुटेरे को (अप वासः) बाहिर बसा दे। (अथो) और भी [उसको], (यः) जो (अर्वतः) घोड़े के (शिरः) शिर को (अभिधाय) बाँधकर (निनीषति) [उसे] ले जाना चाहता है ॥५॥

    भावार्थ

    जो पुरुष गौ आदि दूध के पशुओं को चुरा ले जावें, और इसलिये कि घोड़े फिर घर को न लौट आवें और न शब्द करें, उनका शिर अर्थात् आँखें और मुख बन्द करके भगा ले जावें, उन्हें देश से निकाल देना चाहिये ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(अप) दूरे (स्तेनम्) चोरम् (वासः) वस निवासे-णिजन्ताल्लेटि। छान्दसं रूपम्। त्वं वासयः। निवासं देहि (गोअजम्) गो+अज गतिक्षेपणयोः अच्। सर्वत्र विभाषा गोः। पा० ६।१।१२२। इति प्रकृतिभावः। गोः क्षेप्तारं प्रेरकम् (उत) अपि च (तस्करम्) (अथो) अपि च (यः) तस्करः (अर्वतः) अश्वस्य (शिरः) (अभिधाय) बध्वा (निनीषति) अपजिहीर्षति ॥

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    भाषार्थ

    (गो अजम्) गौ को हांक कर ले जाने वाले (स्तेनम्) चोर को; (उत) और (तस्करम्) उपक्षयकारी लुटेरे को; (अथो) तथा (यः) जो (अर्वतः) अश्व के (शिरः) सिर को (अभिधाय) रस्सी से बान्ध कर (निनीषति) ले जाना चाहता है, उस को (अप वासः) अलग बसा।

    टिप्पणी

    [अभिधाय; अभिधानी= रस्सी। अपवासः=अलग बसाना सामाजिक बहिष्कार है। गोअजम्=गो+अज (गतिक्षेपणयोः)+पचाद्यच्। अज्= To drive; to lead (आप्टे)।]

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    विषय

    स्तेनों व तस्करों का अपसारण

    पदार्थ

    १. (वास:) = वस्त्रों को, (गो अजम्) = गौओं व बकरियों को जो (निनीषति) = उठाकर ले-जाना चाहता है, उस (स्तेनम्) = चोर को (अप) = [सारय]-दूर कर । २. उस (तस्करम्) = उस-उस दुष्टकार्य को करनेवाले तस्कर को भी (अथ उ) = अब निश्चय से दूर कर (यः) = जो (अर्वतः) = घोड़ों को (शिरः अभिधाय) = सिर को बाँधकर-सिर पर, न पहचाने जाने के लिए कपड़ा आदि बाँधकर, (निनीषति) = ले-जाना चाहता है।

    भावार्थ

    राजा रात्रि में इसप्रकार रक्षण-व्यवस्था करे कि 'वस्त्रों, गौवों, बकरियों व घोड़े आदि का अपहरण न होता रहे।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ratri

    Meaning

    Drive off the thief who wants to steal our cow, and the robber who halters the courser’s head and tries to steal it away.

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    Translation

    Keep the thief away from (our) house, also the ____ and goats; also him, who wants to lead our horse ___ his head.

    Comments / Notes

    Text is not clear in the book. If someone has a clearer copy, please edit this translation

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    Translation

    Let this night become the source of keeping away from us the thief and robber who steals away our cloths, cows and goats and also the man who covering the head of horses carries them away.

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    Translation

    Totally efface the thief, who wants to steal our clothes, cows and goats, the robber, who wants to take our horses by tying their heads (i.e., to prevent them from coming back to us, as horses are well-known not to forget the path once seen by them).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(अप) दूरे (स्तेनम्) चोरम् (वासः) वस निवासे-णिजन्ताल्लेटि। छान्दसं रूपम्। त्वं वासयः। निवासं देहि (गोअजम्) गो+अज गतिक्षेपणयोः अच्। सर्वत्र विभाषा गोः। पा० ६।१।१२२। इति प्रकृतिभावः। गोः क्षेप्तारं प्रेरकम् (उत) अपि च (तस्करम्) (अथो) अपि च (यः) तस्करः (अर्वतः) अश्वस्य (शिरः) (अभिधाय) बध्वा (निनीषति) अपजिहीर्षति ॥

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