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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 11
    ऋषिः - अयास्यः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१६
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    अ॒भि श्या॒वं न कृश॑नेभि॒रश्वं॒ नक्ष॑त्रेभिः पि॒तरो॒ द्याम॑पिंशन्। रात्र्यां॒ तमो॒ अद॑धु॒र्ज्योति॒रह॒न्बृह॒स्पति॑र्भि॒नदद्रिं॑ वि॒दद्गाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । श्या॒वम् । न । कृश॑नेभि : । अश्व॑म् । नक्ष॑त्रेभि: । पि॒तर॑: । द्याम् । अ॒पिं॒श॒न् ॥ रात्र्या॑म् । तम॑: । अद॑धु: । ज्योति॑: । अह॑न् । बृह॒स्पति॑: । भि॒नत् । अद्रि॑म् । वि॒दत् । गा:॥१६.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि श्यावं न कृशनेभिरश्वं नक्षत्रेभिः पितरो द्यामपिंशन्। रात्र्यां तमो अदधुर्ज्योतिरहन्बृहस्पतिर्भिनदद्रिं विदद्गाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । श्यावम् । न । कृशनेभि : । अश्वम् । नक्षत्रेभि: । पितर: । द्याम् । अपिंशन् ॥ रात्र्याम् । तम: । अदधु: । ज्योति: । अहन् । बृहस्पति: । भिनत् । अद्रिम् । विदत् । गा:॥१६.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 16; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (कृशनेभिः) सुवर्णों से (न) जैसे (श्यावम्) शीघ्रगामी (अश्वम्) घोड़े को, [वैसे ही] (पितरः) पालनेवाले [ईश्वरनियमों] ने (नक्षत्रेभिः) तारों से (द्याम्) आकाश को (अभि) सब ओर से (अपिंशन्) सजाया है। और (रात्र्याम्) रात्रि में (तमः) अन्धकार को और (अहन्) दिन में (ज्योतिः) प्रकाश को (अदधुः) रक्खा है, [उसी प्रकार] (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़ी वेदवाणी के रक्षक महाविद्वान्] ने (अद्रिम्) पहाड़ [के समान भारी अज्ञान] को (भिनत्) तोड़ डाला और (गाः) वेदवाणियों को (विदत्) प्राप्त कराया है ॥११॥

    भावार्थ

    जैसे नक्षत्र, दिन, रात्रि आदि ईश्वर के अटल नियमों पर चलते हैं, विद्वान् जन दृढ़ चित्त से अज्ञान मिटाकर अचल वेदवाणी को फैलावे ॥११॥

    टिप्पणी

    ११−(अभि) सर्वतः (श्यावम्) अ० ।।८। श्यैङ् गतौ-वप्रत्ययः। शीघ्रगामिनम् (न) यथा (कृशनेभिः) कॄपॄवृजिमन्दिनिधाञः क्युः। उ० २।८१। कृश तनूकरणे-क्यु। कृशनैः सुवर्णालङ्कारैः-निघ० १।२ (अश्वम्) तुरङ्गम् (नक्षत्रेभिः) तारागणैः (पितरः) पालकाः परमेश्वरनियमाः (द्याम्) आकाशम् (अपिंशन्) पिश अवयवे दीपनायां च-लङ्। अदीपयन्। अलम्-कुर्वन् (रात्र्याम्) निशि (तमः) अन्धकारम् (अदधुः) धारितवन्तः (ज्योतिः) प्रकाशम् (अहन्) अह्नि। दिने (बृहस्पतिः) महाविद्वान् पुरुषः (भिनत्) अभिनत्। विदारितवान् (अद्रिम्) शैलतुल्यदृढज्ञानम् (विदत्) बिद्लृ लाभे-लुङ्। अन्तर्गतण्यर्थः। अविदत्। प्रापितवान् (गाः) वेदवाणीः ॥

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    विषय

    रात्र्यां तमः, अहन् ज्योतिः

    पदार्थ

    १. (पितरः) = पालनात्मक कर्मों में प्रवृत्त पुरुष (द्याम्) = मस्तिष्करूप धुलोक को (नक्षत्रेभि:) = विज्ञान के नक्षत्रों से इसप्रकार (अपिंशन) = अलंकृत करते हैं, (न) = जैसेकि (श्यावं अश्वम्) = [श्यैङ्गतौ] खुब गतिशील व कपिशवर्णवाले अश्व को (कृशनेभिः) = सुवर्णमय आभरणों से (अभि) = [पिंशन्ति]-सजाया करते हैं। २. ये पितर (तमः) = सारे अज्ञानान्धकार को (रात्र्यां अदभुः) = रात में ही स्थापित कर देते हैं। (अहन्) = जीवन के दिनों में ये (ज्योति:) = प्रकाश-हो-प्रकाश को स्थापित करते हैं। इनका दिन ज्ञान के प्रकाश को प्राप्त करने में ही बीतता है। (बृहस्पति:) = वह ज्ञान का स्वामी प्रभु (अद्रिः भिनत्) = इनके अविद्यापर्वत का विदारण करता है और (गा: विदत्) = इन्हें ज्ञान की वाणियों को प्राप्त कराता है।

    भावार्थ

    हम अपने मस्तिष्करूप द्युलोक को विज्ञान के नक्षत्रों से दीस करने का प्रयत्न करें। हमारे दिन का समय ज्ञान-प्राप्ति में ही व्यतीत हो। प्रभु भी हमारे अविद्यापर्वत का विदारण करके हमारे लिए ज्ञान-धेनुओं को प्राप्त कराएंगे।

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    भाषार्थ

    (न) जैसे (श्यावम्) श्याम वर्णवाले (अश्वम्) अश्व को (पितरः) उसके पालक स्वामी, (कृशनेभिः) अग्नि-सदृश चमकीली मणियों के हारों द्वारा (अपिंशन्) सुशोभित करते हैं, वैसे (पितरः) पालक-ऋतुओं ने (कृशनेभिः नक्षत्रेभिः) कृशानु-समान चमकते नक्षत्रों द्वारा (द्याम्) द्युलोक को (अपिंशन्) सुशोभित कर दिया है। पालक-ऋतुओं ने (रात्र्याम्) रात्रि में (तमः अदधुः) अन्धकार को स्थापित किया हैं। और (अह्न) दिन में (ज्योतिः) ज्योति को स्थापित किया है, जबकि (बृहस्पतिः) वायु ने (अद्रिम्) मेघ को (भिनत्) छिन्न-भिन्न करके (गाः) जलों को (विदत्) प्राप्त किया।

    टिप्पणी

    [कृशन=कृशानु (=अग्नि)। मन्त्र में पालक-ऋतुओं के अनुसार, जब मेघ को छिन्न-भिन्न कर दिया, और उसके समग्र जलों को प्राप्त कर लिया, तब आकाश स्वच्छ हो गया। और दिन में सूर्य चमकने लगा, और रात्री में श्याम आकाश में अग्निमय-नक्षत्र चमकने लगे। इस प्रकार मन्त्र १० और ११ में वर्षाऋतु की समाप्ति पर दृश्यों का वर्णन हुआ है। पितरः=ऋतवः (शत০ ब्रा০ २.६.१.३२) में सायण। तथा ‘पितृमते’ की व्याख्या में पितृ=ऋतु (दयानन्द, यजुः০ २.२९)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    Like a dark horse adorned with golden trappings, the rays of light adorn the heavens with stars. Brhaspati vests darkness in the night and light in the day, breaks the cloud, releases the light and showers recovering the light of existence from the night of annihilation, and enlightens the heart of darkness with revelations of the light of Divinity. 11. Like a dark horse adorned with golden trappings, the rays of light adorn the heavens with stars. Brhaspati vests darkness in the night and light in the day, breaks the cloud, releases the light and showers recovering the light of existence from the night of annihilation, and enlightens the heart of darkness with revelations of the light of divinity.

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    Translation

    Pitarah, the presevative forces of the nature have decoreted the heaven with constellations like the dark steed adorned with pearls etc. They set the darkness in the night and the light in day. Brihaspati, cleaves the cloud and finds the rays.

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    Translation

    Pitarah, the preservative forces of the heaven with constellations like the dark steed adorned with pearls etc. They set the darkness in the night and the light in day. Brihaspati, cleaves the cloud and finds the rays.

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    Translation

    Just as the people decorate the black steed with ornaments like the pearl-necklaces, etc., similarly do the protecting forces of nature decorate the heavens with numerous constellations. These forces allot darkness to the night and light to the day. The Sun shatters the cloud of darkness and reveals the rays.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(अभि) सर्वतः (श्यावम्) अ० ।।८। श्यैङ् गतौ-वप्रत्ययः। शीघ्रगामिनम् (न) यथा (कृशनेभिः) कॄपॄवृजिमन्दिनिधाञः क्युः। उ० २।८१। कृश तनूकरणे-क्यु। कृशनैः सुवर्णालङ्कारैः-निघ० १।२ (अश्वम्) तुरङ्गम् (नक्षत्रेभिः) तारागणैः (पितरः) पालकाः परमेश्वरनियमाः (द्याम्) आकाशम् (अपिंशन्) पिश अवयवे दीपनायां च-लङ्। अदीपयन्। अलम्-कुर्वन् (रात्र्याम्) निशि (तमः) अन्धकारम् (अदधुः) धारितवन्तः (ज्योतिः) प्रकाशम् (अहन्) अह्नि। दिने (बृहस्पतिः) महाविद्वान् पुरुषः (भिनत्) अभिनत्। विदारितवान् (अद्रिम्) शैलतुल्यदृढज्ञानम् (विदत्) बिद्लृ लाभे-लुङ्। अन्तर्गतण्यर्थः। अविदत्। प्रापितवान् (गाः) वेदवाणीः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    বিদ্বদ্গুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (কৃশনেভিঃ) সুবর্ণ দ্বারা (ন) যেমন (শ্যাবম্) শীঘ্রগামী (অশ্বম্) অশ্বকে, [তেমনই] (পিতরঃ) পালনকারী [ঈশ্বরের নিয়মসমূহ] (নক্ষত্রেভিঃ) নক্ষত্র/তারাসমূহ দ্বারা (দ্যাম্) আকাশকে (অভি) সর্বদিক হতে (অপিংশন্) সজ্জিত করেছে। এবং (রাত্র্যাম্) রাত্রিতে (তমঃ) অন্ধকার এবং (অহন্) দিনে (জ্যোতিঃ) প্রকাশ (অদধুঃ) স্থাপিত করেছে, [তেমনই] (বৃহস্পতিঃ)বৃহস্পতি [বেদবাণীর রক্ষক মহান বিদ্বান্] (অদ্রিম্) পাহাড় [এর সমান ভারী অজ্ঞান] কে (ভিনৎ) বিদারিত করেছে এবং (গাঃ) বেদবাণী সমূহ (বিদৎ) প্রাপ্ত করিয়েছে॥১১॥

    भावार्थ

    নক্ষত্র, দিন, রাত্রি ইত্যাদি যেমন ঈশ্বরের অটল নিয়ম দ্বারা চালিত হয়, বিদ্বানগণ দৃঢ় চিত্ত দ্বারা অজ্ঞানতা দূর করে বেদবাণী বিস্তার করে/করুক॥১১॥

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    भाषार्थ

    (ন) যেমন (শ্যাবম্) শ্যাম বর্ণবিশিষ্ট (অশ্বম্) অশ্বকে (পিতরঃ) তার পালক স্বামী, (কৃশনেভিঃ) অগ্নি-সদৃশ চমকিত মণির হার/অলংকার দ্বারা (অপিংশন্) সুশোভিত করে, তেমনই (পিতরঃ) পালক-ঋতুসমূহ (কৃশনেভিঃ নক্ষত্রেভিঃ) কৃশানু-সমান চমকিত নক্ষত্র দ্বারা (দ্যাম্) দ্যুলোককে (অপিংশন্) সুশোভিত করেছে। পালক-ঋতুসমূহ (রাত্র্যাম্) রাত্রিতে (তমঃ অদধুঃ) অন্ধকার স্থাপিত করেছে। এবং (অহ্ন) দিনের বেলায় (জ্যোতিঃ) জ্যোতি স্থাপিত করেছে, (বৃহস্পতিঃ) বায়ু (অদ্রিম্) মেঘকে (ভিনৎ) ছিন্ন-ভিন্ন করে (গাঃ) জল (বিদৎ) প্রাপ্ত করেছে।

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