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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 68 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 68/ मन्त्र 10
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६८
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    यो रा॒यो॒ऽवनि॑र्म॒हान्त्सु॑पा॒रः सु॑न्व॒तः सखा॑। तस्मा॒ इन्द्रा॑य गायत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । रा॒य: । अ॒वनि॑: । म॒हान् । सु॒ऽपा॒र: । सु॒न्व॒त:। सखा॑ ॥ तस्मै॑ । इन्द्रा॑य । गा॒य॒त॒ ॥६८.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो रायोऽवनिर्महान्त्सुपारः सुन्वतः सखा। तस्मा इन्द्राय गायत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । राय: । अवनि: । महान् । सुऽपार: । सुन्वत:। सखा ॥ तस्मै । इन्द्राय । गायत ॥६८.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 68; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो [परमेश्वर] (रायः) धन का (अवनिः) रक्षक वा स्वामी (महान्) [बड़ा गुणी वा बली], (सुपारः) भले प्रकार पार लगानेवाला, (सुन्वतः) तत्त्वरस निकालनेवाले पुरुष का (सखा) मित्र है, [हे मनुष्यो !] (तस्मै) उस (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमेश्वर] के लिये (गायत) तुम गान करो ॥१०॥

    भावार्थ

    मनुष्य जगदीश्वर परमात्मा की उपासना से तत्त्व का ग्रहण करके पुरुषार्थ से धर्म का सेवन करें ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(यः) परमेश्वरः (रायः) धनस्य (अवनिः) अ० २०।३।१०। रक्षकः। स्वामी (महान्) गुणेन बलेन वाधिकः (सुपारः) पार कर्मसमाप्तौ-पचाद्यच्। सुष्ठु पारयिता (सुन्वतः) तत्त्वरसं निष्पादयतः पुरुषस्य (सखा) प्रियः (तस्मै) (इन्द्राय) परमैश्वर्यवते जगदीश्वराय (गायत) गानं कुरुत ॥

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    पदार्थ

    शब्दार्थ =  ( यः ) = जो परमेश्वर  ( राय: ) = धन का  ( अवनिः ) = रक्षक व स्वामी  ( महान् ) = अपने गुणों व बलों से बड़ा है ।  ( सुपारः ) = भली प्रकार पार लगानेवाला  ( सुन्वत: ) = तत्त्व रस को निकालनेवाले पुरुष का  ( सखा ) = प्यारा मित्र है  ( तस्मै ) = ऐसे  ( इन्द्रायं ) = बड़े ऐश्वर्यवाले प्रभु के लिए आप लोग  ( गायत ) = गान किया करो ।
     

    भावार्थ

    भावार्थ = सब मनुष्यों को चाहिये कि उस धन और सुख के रक्षक महाबली, संसार समुद्र से पार लगानेवाले, ज्ञानी पुरुष के परम सहायक, परमेश्वर की ही सदा प्रार्थना, उपासना से तत्त्व का ग्रहण करके पुरुषार्थ से धर्म का सेवन किया करें ।

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    विषय

    'सुपार' प्रभु

    पदार्थ

    १. (तस्मै इन्द्राय) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु के लिए (गायत) = गुणों का गायन करो, (यः) = जोकि (राय:) = धनों के (अवनिः) = रक्षक व स्वामी हैं। (महान्) = वे प्रभु ही पूजनीय हैं। प्रभु अपने उपासकों को आवश्यक धन प्राप्त कराते ही हैं। २. (सु-पार:) = प्रभु ही हमें सब कार्यों के पार ले-चलनेवाले है-प्रभु-कृपा से ही सब कार्य पूर्ण होते हैं। (सुन्वतः सखा) = वे प्रभु यज्ञशील पुरुष के मित्र है अथवा (सुन्वतः) = सोम का सम्पादन करनेवाले के वे मित्र हैं। प्रभु की प्राप्ति यज्ञशील व सोमरक्षक को ही होती है।

    भावार्थ

    प्रभु ही धनों के दाता, पूजनीय, कार्यों के साधक व यज्ञशील के मित्र हैं। हम प्रभु का ही गायन करें।

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    भाषार्थ

    (यः) जो परमेश्वर (रायः) सांसारिक और आध्यात्मिक सम्पत्तियों की (अवनिः) उपजाऊ भूमि है, वह (महान् सुपारः) महान् है और भवसागर से सुगमतापूर्वक पार कर देता है, तथा (सुन्वतः) भक्तिरसवाले उपासक का (सखा) सखा बन जाता है, (तस्मै इन्द्राय) उस परमेश्वर की प्रसन्नता के लिए (गायत) भक्तिपूर्वक सामगान गाया करो।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    In dr a Devata

    Meaning

    People of the land and children of Indra, sing and celebrate the glories of Indra, lord supreme of life and light, great and glorious, creator and protector of wealth, saviour pilot across the seas, and friend of the makers of soma.

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    Translation

    O people, you sing the praise of that learned men who is the preserver of all wealths, great, prompt and friend of the man of constructive activities.

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    Translation

    O people, you sing the praise of that learned men who is the preserver of all wealth’s, great, prompt and friend of the man of constructive activities.

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    Translation

    O people, sing the praises of That Mighty Lord of Fortunes, or king, Who is the Protector and Shelterer of all riches and Great and Perfect Nourisher and Friend of the devotee.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(यः) परमेश्वरः (रायः) धनस्य (अवनिः) अ० २०।३।१०। रक्षकः। स्वामी (महान्) गुणेन बलेन वाधिकः (सुपारः) पार कर्मसमाप्तौ-पचाद्यच्। सुष्ठु पारयिता (सुन्वतः) तत्त्वरसं निष्पादयतः पुरुषस्य (सखा) प्रियः (तस्मै) (इन्द्राय) परमैश्वर्यवते जगदीश्वराय (गायत) गानं कुरुत ॥

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    बंगाली (3)

    পদার্থ

    য়ো রায়োবনিমহান্ত্সুপারঃ সুন্বতঃ সখা।

    তস্মা ইন্দ্রায় গায়ত ।।৮৩।।

    (অথর্ব ২০।৬৮।১০)

    পদার্থঃ (য়ঃ) যে পরমেশ্বর (রায়ঃ) ধনের (অবনিঃ) রক্ষক, সেই স্বামীই (মহান্) মহান (উত) এবং (সুপারঃ) তিনিই অজ, অমর, বীর কল্যাণকর্তা, উত্তম কর্মে উৎসাহ প্রদানকারী। (সুন্বতঃ) তত্ত্বরস আহরণকারী পুরুষের (সখা) প্রিয় সখা তিনি। (তস্মৈ) এমন (ইন্দ্রায়) মহান ঐশ্বর্যবান প্রভুর উদ্দেশ্যে তোমরা সবাই (গায়ত) প্রার্থনা করো।  

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ সকল মানুষের উচিত ধন ও সুখের রক্ষক, সর্বশক্তিমান, সংসার সমুদ্র থেকে পরিত্রাণকারী, জ্ঞানী পুরুষের পরম সহায়ক পরমেশ্বরেরই সদা প্রার্থনা করা। উপাসনা তত্ত্ব জ্ঞাত হয়ে পুরুষার্থ দ্বারা ধর্মের সেবন করা উচিত ।।৮৩।।

     

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    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যঃ) যে [পরমেশ্বর] (রায়ঃ) ধনের (অবনিঃ) রক্ষক বা স্বামী (মহান্) [পরম গুণী বা বলবান্], (সুপারঃ) উত্তমরূপে পরিত্রাণকারী, (সুন্বতঃ) তত্ত্বরস নিষ্পাদনকারী পুরুষের (সখা) মিত্র, [হে মনুষ্যগণ!] (তস্মৈ) সেই (ইন্দ্রায়) ইন্দ্রের [পরম ঐশ্বর্যযুক্ত পরমেশ্বর] জন্য (গায়ত) তোমরা স্তুতি করো ॥১০॥

    भावार्थ

    মনুষ্য জগদীশ্বর পরমাত্মার উপাসনা দ্বারা তত্ত্ব গ্রহণ করে পুরুষার্থ দ্বারা ধর্ম পালন করুক/ধর্মের সেবা করুক ॥১০।।

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    भाषार्थ

    (যঃ) যে পরমেশ্বর (রায়ঃ) সাংসারিক এবং আধ্যাত্মিক সম্পত্তির (অবনিঃ) উর্বর ভূমি, তিনি (মহান্ সুপারঃ) মহান্ এবং ভবসাগর থেকে সুগমতাপূর্বক পার/উদ্ধার করেন, তথা (সুন্বতঃ) ভক্তিরসসম্পন্ন উপাসকের (সখা) সখা হন, (তস্মৈ ইন্দ্রায়) সেই পরমেশ্বরের প্রসন্নতার জন্য (গায়ত) ভক্তিপূর্বক সামগান করো।

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