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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 68 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 68/ मन्त्र 3
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६८
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    अथा॑ ते॒ अन्त॑मानां वि॒द्याम॑ सुमती॒नाम्। मा नो॒ अति॑ ख्य॒ आ ग॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अथ॑ । ते॒ । अन्त॑मानाम् । वि॒द्याम॑ । सु॒ऽम॒ती॒नाम् ॥ मा । न॒: । अति॑ । ख्य॒: । आ । ग॒हि॒ ॥६८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अथा ते अन्तमानां विद्याम सुमतीनाम्। मा नो अति ख्य आ गहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अथ । ते । अन्तमानाम् । विद्याम । सुऽमतीनाम् ॥ मा । न: । अति । ख्य: । आ । गहि ॥६८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 68; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे राजन् !] (अथ) और (ते) तेरी (अन्तमानाम्) अत्यन्त समीप रहनेवाली (सुमतीनाम्) सुन्दर बुद्धियों का (विद्याम) हम ज्ञान करें। तू (नः) हमें (अति) छोड़कर (मा ख्यः) मत बोल, (आ गहि) तू आ ॥३॥

    भावार्थ

    जब राजा पूर्ण रीति से प्रजापालन करता है, प्रजागण उसकी धार्मिक नीतियों से लाभ उठाकर उससे प्रीति करते हैं ॥३॥

    टिप्पणी

    १-३−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।७।१-३ ॥

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    विषय

    व्याख्या देखें अथर्व० २०.५७.१-३

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    भाषार्थ

    देखो—२०.५७.३।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    In dr a Devata

    Meaning

    Indra, lord of light and knowledge, come, so that we know you at the closest of those who are established in you and hold you in their heart and vision. Come, lord of life, come close, forsake us not.

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    Translation

    We know of the learned men who are in close contact. You do not neglect us and come to us.

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    Translation

    We know of the learned men who are in close contact. You do not neglect us and come to us.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १-३−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।७।१-३ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে রাজন্ !] (অথ) এবং (তে) তোমার (অন্তমানাম্) অভ্যন্তরে স্থিত (সুমতীনাম্) উৎকৃষ্ট বুদ্ধিবৃত্তি (বিদ্যাম) আমরা জ্ঞান করি/জ্ঞাত হই/প্রাপ্ত করি। তুমি (নঃ) আমাদের (অতি) উল্লঙ্ঘন/পরিত্যাগ করে (মা খ্যঃ) বলো না, (আ গহি) তুমি এসো/আগমন করো ॥৩॥

    भावार्थ

    যখন রাজা পূর্ণ প্রীতি সহকারে প্রজাপালন করে, তখন প্রজাগণ রাজার ধার্মিক নীতি হতে লাভবান হয় এবং তাঁকে প্রীতি শ্রদ্ধা করে ॥৩॥

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    भाषार्थ

    দেখো—২০.৫৭.৩।

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