Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 68 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 68/ मन्त्र 8
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६८
    0

    अ॒स्य पी॒त्वा श॑तक्रतो घ॒नो वृ॒त्राणा॑मभवः। प्रावो॒ वाजे॑षु वा॒जिन॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्य॒ । पी॒त्वा । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । घ॒न: । वृ॒त्राणा॑म् । अ॒भ॒व॒: । प्र ॥ आ॒व॒: । वाजे॑षु । वा॒ज‍िन॑म् ॥६८.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्य पीत्वा शतक्रतो घनो वृत्राणामभवः। प्रावो वाजेषु वाजिनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्य । पीत्वा । शतक्रतो इति शतऽक्रतो । घन: । वृत्राणाम् । अभव: । प्र ॥ आव: । वाजेषु । वाज‍िनम् ॥६८.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 68; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (शतक्रतो) हे सैकड़ों कर्मोंवाले ! [वीर पुरुष] (अस्य) इस [तत्त्व रस] का (पीत्वा) पान करके तू (वृत्राणाम्) रोकनेवाले शत्रुओं का (घनः) मारनेवाला (अभवः) हुआ है और (वाजेषु) सङ्ग्रामों में (वाजिनम्) पराक्रमी वीर को (प्र) अच्छे प्रकार (आवः) तूने बचाया है ॥८॥

    भावार्थ

    जो वीर पुरुष वेदविद्या का रस चखता रहता है, वह परमेश्वर की कृपा से शत्रुओं को मारकर अपने वीर लोगों की रक्षा करता है ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(अस्य) सोमस्य। तत्त्वरसस्य (पीत्वा) पानं कृत्वा (शतक्रतो) हे बहुकर्मन् (घनः) मूर्तौ घनः। पा० ३।३।७७। हन्तेरप् मूर्तिभिन्नार्थेऽपि। हन्ता। धातुकः (वृत्राणाम्) आवरकाणां शत्रूणाम् (अभवः) (प्र) प्रकर्षेण (आवः) रक्षितवानसि (वाजेषु) सङ्ग्रामेषु (वाजिनम्) पराक्रमिणं पुरुषम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सोम-रक्षण व संग्राम-विजय

    पदार्थ

    १. हे (शतक्रतो) = अनन्त कर्मों व प्रज्ञानोंवाले प्रभो! आप (अस्य पीत्वा) = इस सोम की रक्षा करके (वृत्राणाम्)-= ज्ञान पर आवरण के रूप में आ जानेवाली काम आदि वासनओं के (घन:) = मारनेवाले (अभव:) = होते हैं। सोम-रक्षणवाला पुरुष क्रोध आदि का शिकार नहीं होता। २. हे प्रभो! आप (वाजेषु) = इन वासना-संग्रामों में (वाजिनम्) = प्रशस्त अन्नवाले को [बाज-अन्न] (प्राव:) = प्रकर्षण रक्षित करते हैं। जब एक मनुष्य सात्त्विक अन्न का सेवन करता है तब उसकी बुद्धि व मन भी सात्त्विक बनते हैं। सात्विक बुद्धिवाला वासना-संग्राम में अवश्य वियजी बनता है।

    भावार्थ

    प्रभु-नामस्मरण से हम वासनाओं से ऊपर उठते है--शरीर में सोम का रक्षण कर पाते हैं। प्रभु हमें शक्तिशाली बनाकर संग्नामों में रक्षित करते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (शतक्रतो) हे सैकड़ों अद्भुत कर्मोंवाले परमेश्वर! आप, (अस्य) इस भक्तिरस का (पीत्वा) पान करके, इस उपासक के (वृत्राणाम्) पाप-वृत्रों के (घनः अभवः) हनन करनेवाले हुए हैं। आप (वाजेषु) देवासुर-संग्रामों में (वाजिनम्) पाप-वृत्रों के हनन करने में सशक्त व्यक्ति के (प्र आवः) पूर्णतया रक्षक हुए हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    In dr a Devata

    Meaning

    Hero of a hundred yajnic projects, having accomplished the programme and having drunk the soma of success, concentrate and consolidate as the light of the sun and be the breaker of the clouds of rain, and then advance and promote the wealth and defence of the nation through the battles of progress.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O man of hundred powers, you drinking this good juice become the killer of wickeds and protect the man of venture and vigour in the battles.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O man of hundred powers, you drinking this good juice become the killer of wickeds and protect the man of venture and vigor in the battles.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O the hero of hundreds of acts of valour and sacrifice, be the destroyer of evil forces by drinking it, and fully protect the powerful, speedily-moving, with all supplies, the army in wars.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(अस्य) सोमस्य। तत्त्वरसस्य (पीत्वा) पानं कृत्वा (शतक्रतो) हे बहुकर्मन् (घनः) मूर्तौ घनः। पा० ३।३।७७। हन्तेरप् मूर्तिभिन्नार्थेऽपि। हन्ता। धातुकः (वृत्राणाम्) आवरकाणां शत्रूणाम् (अभवः) (प्र) प्रकर्षेण (आवः) रक्षितवानसि (वाजेषु) सङ्ग्रामेषु (वाजिनम्) पराक्रमिणं पुरुषम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (শতক্রতো) হে অসংখ্য কর্মযুক্ত ! [বীর পুরুষ] (অস্য) এই [তত্ত্ব রস] (পীত্বা) পান করে তুমি (বৃত্রাণাম্) বাধাদানকারী শত্রুদের (ঘনঃ) বিনাশক (অভবঃ) হয়েছো এবং (বাজেষু) সংগ্রামে (বাজিনম্) পরাক্রমী বীরদেরকে (প্র) উত্তম প্রকারে (আবঃ) তুমি রক্ষা করেছো ॥৮॥

    भावार्थ

    যে বীর পুরুষ বেদবিদ্যার স্বাদ আস্বাদন করেছে, সে পরমেশ্বরের কৃপা দ্বারা শত্রুদের বিনাশ করে নিজের বীরগণের রক্ষা করে ॥৮॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (শতক্রতো) হে শত কর্মশীল পরমেশ্বর! আপনি, (অস্য) এই ভক্তিরস (পীত্বা) পান করে, এই উপাসকের (বৃত্রাণাম্) পাপ-বৃত্র-সমূহের (ঘনঃ অভবঃ) হননকারী হয়েছেন। আপনি (বাজেষু) দেবাসুর-সংগ্রামে (বাজিনম্) পাপ-বৃত্র-সমূহের হনন করার জন্য সশক্ত ব্যক্তির (প্র আবঃ) পূর্ণরূপে রক্ষক হয়েছেন।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top