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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 94 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 94/ मन्त्र 10
    ऋषिः - कृष्णः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९४
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    गोभि॑ष्टरे॒माम॑तिं दु॒रेवां॒ यवे॑न॒ क्षुधं॑ पुरुहूत॒ विश्वा॑म्। व॒यं राज॑भिः प्रथ॒मा धना॑न्य॒स्माके॑न वृ॒जने॑ना जयेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गीभि॑: । त॒रे॒म॒ । अम॑तिम् । दु॒:ऽएवा॑म् । यवे॑न । क्षुध॑म् । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । विश्वा॑म् ॥ व॒यम् । राज॑ऽभि: । प्र॒थ॒मा: । धना॑नि । अ॒स्माके॑न । वृ॒जने॑न । ज॒ये॒म॒ ॥९४.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गोभिष्टरेमामतिं दुरेवां यवेन क्षुधं पुरुहूत विश्वाम्। वयं राजभिः प्रथमा धनान्यस्माकेन वृजनेना जयेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गीभि: । तरेम । अमतिम् । दु:ऽएवाम् । यवेन । क्षुधम् । पुरुऽहूत । विश्वाम् ॥ वयम् । राजऽभि: । प्रथमा: । धनानि । अस्माकेन । वृजनेन । जयेम ॥९४.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 94; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (पुरुहूत) हे बहुतों से बुलाये गये ! [राजन्] (गोभिः) विद्याओं से (दुरेवाम्) दुर्गतिवाली (अमतिम्) कुमति [वा कङ्गाली] को और (यवेन) अन्न से (विश्वाम्) सब (क्षुधम्) भूख को (तरेम) हम हटावें। (वयम्) हम (राजभिः) राजाओं के साथ (प्रथमाः) प्रथम श्रेणीवाले होकर (धनानि) अनेक धनों को (अस्माकेन) अपने (वृजनेन) बल से (जयेम) जीतें ॥१०॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रयत्न करके विद्याओं द्वारा कुमति और निर्धनता हटाकर भोजन पदार्थ प्राप्त करें और अपने भुज बल से महाधनी होकर राजाओं के साथ प्रथम श्रेणीवाले होवें ॥१०॥

    टिप्पणी

    मन्त्र १०, ११ आचुके हैं-अ० २०।१७।१०, ११। और कुछ भेद से-२०।८९।१०, ११ ॥ १०, ११−मन्त्रौ व्याख्यातौ-अ० २०।१७।१०, ११ ॥

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    विषय

    देखो व्याख्या २०.१७.१०-११ पर।

    पदार्थ

    प्रभु की उपासना करनेवाला [गणाति] और उल्लासमय जीवनवाला [माद्यति] 'गृत्समद' अगले सूक्त के प्रथम मन्त्र का ऋषि है। २-४ तक ऋषि 'सुदा:'-उत्तम दानशील पैजवन:-[अपिजवनः] खूब क्रियाशील व्यक्ति है -

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    भाषार्थ

    देखो—मन्त्र-संख्या (२०.१७.१० तथा २०.८९.१०)

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    O lord universally invoked and celebrated, let us overcome the difficult problems of the want of moral and spiritual vision and knowledge by the Vedic voice, and the problem of world hunger by cooperative production of food. And let us on top win wealth, honour and excellence by our own brilliance of intelligence and our own persistent effort. O lord universally invoked and celebrated, let us overcome the difficult problems of want, of moral and spiritual vision and knowledge, by the Vedic voice, and the problem of world hunger by cooperative production of food. And let us on top win wealth, honour and excellence by our own brilliance of intelligence and our own persistent effort.

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    Translation

    May we overcome all trouble-some indigence or ignorance with cows-or with vedic speeches, may we overcome hunger with corn and may we, first in rank, allied with panes acquire possessions with our own exertions.

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    Translation

    May we overcome all trouble-some indigence or ignorance with cows or with vedic speeches, may we overcome hunger with corn and may we, first in rank, allied with princes acquire possessions with our own exertions.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र १०, ११ आचुके हैं-अ० २०।१७।१०, ११। और कुछ भेद से-२०।८९।१०, ११ ॥ १०, ११−मन्त्रौ व्याख्यातौ-अ० २०।१७।१०, ११ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (পুরুহূত) হে বহুজন দ্বারা আমন্ত্রিত! [রাজন্] (গোভিঃ) বিদ্যা দ্বারা (দুরেবাম্) দূর্গতির (অমতিম্) কুমতি [বা দারিদ্র্য]কে এবং (যবেন) অন্ন দ্বারা (বিশ্বাম্) সকল (ক্ষুধম্) ক্ষুধাকে (তরেম) আমরা দূর করবো/করি। (বয়ম্) আমরা (রাজভিঃ) রাজাদের সহিত (প্রথমাঃ) প্রথম শ্রেণীভুক্ত হয়ে (ধনানি) প্রচুর ধনসম্পদ (অস্মাকেন) নিজ (বৃজনেন) বল দ্বারা (জয়েম) জয় করি।।১০।।

    भावार्थ

    মনুষ্য প্রচেষ্টাপূর্বক বিদ্যা দ্বারা কুমতি ও নির্ধনতা দূর করে ভোজন পদার্থ প্রাপ্ত করুক এবং নিজ বাহুবল দ্বারা মহাধনী হয়ে রাজাদের সাথে প্রথম শ্রেণীভুক্ত হবে/হোক।।১০।।

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    भाषार्थ

    দেখো—মন্ত্র-সংখ্যা (২০.১৭.১০ তথা ২০.৮৯.১০)

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