अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 94/ मन्त्र 7
ए॒वैवापा॒गप॑रे सन्तु दू॒ढ्योश्वा॒ येषां॑ दु॒र्युज॑ आयुयु॒ज्रे। इ॒त्था ये प्रागुप॑रे सन्ति दा॒वने॑ पु॒रूणि॒ यत्र॑ व॒युना॑नि॒ भोज॑ना ॥
स्वर सहित पद पाठए॒व । ए॒व । अपा॑क् । अप॑रे । स॒न्तु॒ । दु॒:ऽध्य॑: । अश्वा॑: । येषा॑म् । दु॒:ऽयुज॑: । आ॒ऽयु॒यु॒जे ॥ इ॒त्था । ये । प्राक् । उप॑रे । सन्ति॑ । दा॒वने॑ । पु॒रूणि॑ । यत्र॑ । व॒युना॑नि । भोज॑ना ॥९४.७॥
स्वर रहित मन्त्र
एवैवापागपरे सन्तु दूढ्योश्वा येषां दुर्युज आयुयुज्रे। इत्था ये प्रागुपरे सन्ति दावने पुरूणि यत्र वयुनानि भोजना ॥
स्वर रहित पद पाठएव । एव । अपाक् । अपरे । सन्तु । दु:ऽध्य: । अश्वा: । येषाम् । दु:ऽयुज: । आऽयुयुजे ॥ इत्था । ये । प्राक् । उपरे । सन्ति । दावने । पुरूणि । यत्र । वयुनानि । भोजना ॥९४.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(एव) ऐसे (एव) ही (अपरे) वे दूसरे [वेदविरोधी] (दूढ्यः) दुर्बुद्धि लोग (अपाक्) नीच गति में (सन्तु) होवें, (येषाम्) जिनके (दुर्युजः) कठिनाई से जुतनेवाले [अति प्रबल] (अश्वाः) घोड़े (आयुयुज्रे) बाँध दिये गये [हठरा दिये गये] हैं। (इत्था) इसी प्रकार (प्राक्) उत्तम गति में (सन्तु) वे होवें, (ये) जो लोग (उपरे) निवृत्ति [विषयों के त्याग] में (दावने) दान के लिये हैं, (यत्र) जिस [दान] में (पुरूणि) बहुत से (वयुनानि) कर्म और (भोजनानि) पालनसाधन धन आदि हैं ॥७॥
भावार्थ
दुर्बुद्धि वेदविरोधी मनुष्य बहुत प्रयत्न करने पर भी श्रेष्ठ कर्म नहीं कर सकते, और जो पुरुष कुविषयों को छोड़कर वेदाज्ञा में आत्मदान करते हैं, वे अनेक प्रकार धन आदि प्राप्त करके संसार में उत्तम गति भोगते हैं ॥७॥
टिप्पणी
७−(एव) एवम् (एव) अवधारणे (अपाक्) अप+अञ्चु गतौ-क्विन्, यथा भवति तथा। अधोगतौ (अपरे) अन्ये वेदविरोधिनः (सन्तु) (दूढ्यः) दुर्धियः। दुर्बुद्धयः। (अश्वाः) तुरङ्गाः (येषाम्) (दुर्युजः) युज संयमने-क्विन्। दुर्योजनीयाः। अतिप्रबलाः (आयुयुज्रे) युज संयमने-कर्मणि लिट्। सम्यग् बद्धाः स्थितिं प्राप्ता बभूवुः (इत्था) अनेन प्रकारेण (ये) (प्राक्) प्रकृष्टगमने (उपरे) उप+रमतेर्ड प्रत्ययः। उपरतौ निवृत्तौ। विषयत्यागे (सन्ति) (दावने) ददातेः-वनिप्। दानाय (पुरूणि) बहूनि (यत्र) यस्मिन् दाने (वयुनानि) कर्माणि (भोजना) भोजनानि। पालनसाधनानि धनानि-निघ० २।१ ॥
विषय
प्राग, नकि अपाग्
पदार्थ
१. (येषाम्) = जिन यज्ञ न करनेवालों के (दुर्युज) = दुए योजनावाले, अर्थात् अशुभ मार्ग की ओर जानेवाले (अश्वा:) = इन्द्रियरूप अश्व (आयुयुज्रे) = इस शरीर-रथ में जुतते हैं, वे (दूत्य) = [दुर्धियः] दुष्ट बुद्धिवाले (अपरे) = इस अपरा प्रकृति में फंसे हुए पुरुष (एवा एव) = अपनी गतियों के कारण ही (अपाग् सन्तु) = अधोगतिवाले हों। भोगप्रवण मनोवृत्तिवाले पुरुषों की बुद्धियाँ सदा कुमन्त्रणा करती हैं। इनकी अन्ततः अवनति ही होती है। २. (उ) = और (ये) = जो (परे) = दुसरे पराप्रकृति [जीव आत्मस्वरूप] की और चलनेवाले होते हैं और (इत्था) = सचमुच (दावने सन्ति) = देने के कार्य में लोग रहते हैं, वे (प्राग् सन्ति) = आगे बढ़नेवाले होते हैं। (वे) = वहाँ पहुँचते हैं (यत्र) = जहाँ कि (पुरूणि) = पालन व पूरण करनेवाले पर्याप्त (वयुनानि) = ज्ञानयुक्त व कान्त [चमकते हुए] (भोजना) = धन हैं। भोगवृत्ति से ऊपर उठे हुए इन यज्ञशील पुरुषों को पालन के लिए आवश्यक सब धन प्राप्त होते हैं। ये धन उन्हें मूढ बनानेवाले नहीं होते। ये उन्हें आगे बढ़ाते हुए उनकी ज्ञानवृद्धि का साधन बनते हैं।
भावार्थ
भोगप्रवण बनकर हम अधोगति को प्राप्त करनेवाले न बनें। यज्ञों में प्रवृत्त हुए हुए हम आगे बढ़ें और ज्ञानयुक्त धनोंवाले हों।
भाषार्थ
(एव-एव) इस ही प्रकार (अपरे ) अन्य अर्थात् (दूढ्यः) दुर्बुद्धि लोग (अपाक्) पिछड़े रहते (सन्ति) हैं (येषाम्) जिनके कि (अश्वाः) इन्द्रियाश्व उनके साथ (आ युयुज्रे) सदा जुते रहते हैं, और (दुर्युजः) दुःखदायीरूप में जुते रहते हैं। (इत्था) इसी प्रकार (ये) जो (परे) इनसे अतिरिक्त उपासक हैं, (यत्र) जिनमें कि (वयुनानि) आध्यात्मिक-ज्ञान-रूपी (भोजना) भोजन (पुरूणि) बहुमात्रा में होता है, वे (दावने) परमेश्वर के प्रति सर्वस्व-दान में, (प्राक् सन्ति) आगे बढ़े हुए होते हैं।
इंग्लिश (4)
Subject
Brhaspati Devata
Meaning
Thus do people of evil disposition keep wallowing piteously in low states of existence whose mind and senses are engaged in wrong things like restive horses. And thus do others of the first and higher disposition fare admirably who are dedicated here itself to the higher omnificent divinity in which infinite gifts of freedom, peace and happiness abound. Thus do people of evil disposition keep wallowing in low states of existence whose mind and senses are engaged in wrong things like restive horses. And thus do others of the first and higher disposition fare who are dedicated here itself to the higher omnificent divinity in which infinite gifts of freedom, peace and happiness abound.
Translation
In this way others who are evil-minded be left desolated. They whose incontrollable organs have come to control be placed in good position and they who are to surrender them in resignation of worldly attachments in which are performed man good deeds and are possessed of many supporting means enjoy great delight in the world.
Translation
In this way others who are evil-minded be left desolated. They whose incontrollable organs have come to control be placed in good position and they who are to surrender them in resignation of worldly attachments in which are performed man good deeds and are possessed of many supporting means enjoy great delight in the world.
Translation
The Splendorous God firmly holds the constantly moving and trembling clouds and mountains, thunders and bestirs the inter special things. He specially upholds the heavens and the earth, the supporters of all and interlinked by force of attraction. Protecting and nourishing all means of showering joy and bliss, inspires the Vedic songs in the very act of reveling and rejoicing at the creation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(एव) एवम् (एव) अवधारणे (अपाक्) अप+अञ्चु गतौ-क्विन्, यथा भवति तथा। अधोगतौ (अपरे) अन्ये वेदविरोधिनः (सन्तु) (दूढ्यः) दुर्धियः। दुर्बुद्धयः। (अश्वाः) तुरङ्गाः (येषाम्) (दुर्युजः) युज संयमने-क्विन्। दुर्योजनीयाः। अतिप्रबलाः (आयुयुज्रे) युज संयमने-कर्मणि लिट्। सम्यग् बद्धाः स्थितिं प्राप्ता बभूवुः (इत्था) अनेन प्रकारेण (ये) (प्राक्) प्रकृष्टगमने (उपरे) उप+रमतेर्ड प्रत्ययः। उपरतौ निवृत्तौ। विषयत्यागे (सन्ति) (दावने) ददातेः-वनिप्। दानाय (पुरूणि) बहूनि (यत्र) यस्मिन् दाने (वयुनानि) कर्माणि (भोजना) भोजनानि। पालनसाधनानि धनानि-निघ० २।१ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(এব) এভাবে (এব) ই (অপরে) অন্য [বেদবিরোধী] (দূঢ্যঃ) দুর্বুদ্ধি সম্পন্ন মনুষ্য (অপাক্) অধোগতি (সন্তু) প্রাপ্ত হোক, (যেষাম্) যাদের (দুর্যুজঃ) অতি কষ্টে সংযোগশীল [অতি প্রবল] (অশ্বাঃ) অশ্বকে (আয়ুয়ুজ্রে) বন্ধন করা হয়েছে। (ইত্থা) এভাবেই (প্রাক্) উত্তমগতি (সন্তু) তারা প্রাপ্ত হোক, (যে) যারা (উপরে) নিবৃত্তি [বিষয়-বাসনা ত্যাগ] পূর্বক (দাবনে) আত্মদানের জন্য প্রস্তুত, (যত্র) যে দানের মধ্যে (পুরূণি) বহু (বয়ুনানি) কর্ম ও (ভোজনানি) পালনসাধন রয়েছে ॥৭॥
भावार्थ
দুর্বুদ্ধি সম্পন্ন বেদবিরোধী মনুষ্য বহু প্রচেষ্টা করলেও শ্রেষ্ঠ কর্ম করতে সক্ষম হয় না, অপরদিকে যে পুরুষ কু-বিষয় ত্যাগ করে বেদাজ্ঞার প্রতি আত্মদান করে, সে/তাঁরা অনেক প্রকার ধনাদি প্রাপ্ত করে সংসারে উত্তম গতি লাভ করে ॥৭॥
भाषार्थ
(এব-এব) এইভাবে (অপরে) অন্য অর্থাৎ (দূঢ্যঃ) দুর্বুদ্ধি লোকেরা (অপাক্) পৃথক হয়ে (সন্তি) থাকে (যেষাম্) যাদের (অশ্বাঃ) ইন্দ্রিয়াশ্ব তাঁদের সাথে (আ যুয়ুজ্রে) সদা যুক্ত থাকে, এবং (দুর্যুজঃ) দুঃখদায়ীরূপে যুক্ত থাকে। (ইত্থা) এরূপ (যে) যারা/যে (পরে) এঁদের থেকে অতিরিক্ত/আলাদা উপাসক আছে, (যত্র) যাদের মধ্যে (বয়ুনানি) আধ্যাত্মিক-জ্ঞান-রূপী (ভোজনা) ভোজন (পুরূণি) বহুমাত্রায় থাকে, সে/তাঁরা (দাবনে) পরমেশ্বরের প্রতি সর্বস্ব-দানের ক্ষেত্রে, (প্রাক্ সন্তি) অগ্রণী হয়ে থাকে।
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