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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 94 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 94/ मन्त्र 2
    ऋषिः - कृष्णः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९४
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    सु॒ष्ठामा॒ रथः॑ सु॒यमा॒ हरी॑ ते मि॒म्यक्ष॒ वज्रो॒ नृप॑ते॒ गभ॑स्तौ। शीभं॑ राजन्सु॒पथा या॑ह्य॒र्वाङ्वर्धा॑म ते प॒पुषो॒ वृष्ण्या॑नि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽस्थामा॑ । रथ॑: । सु॒ऽयमा॑ । हरी॒ इति॑ । ते॒ । मि॒म्यक्ष॑ । वज्र॑: । नृ॒ऽप॒ते॒ । गभ॑स्तौ ॥ शीभ॑म् । रा॒ज॒न् । सु॒ऽपथा॑ । आ । या॒हि॒ । अ॒वाङ् । वर्धा॑म । ते॒ । प॒पुष॑: । वृष्ण्या॑नि ॥९४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुष्ठामा रथः सुयमा हरी ते मिम्यक्ष वज्रो नृपते गभस्तौ। शीभं राजन्सुपथा याह्यर्वाङ्वर्धाम ते पपुषो वृष्ण्यानि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽस्थामा । रथ: । सुऽयमा । हरी इति । ते । मिम्यक्ष । वज्र: । नृऽपते । गभस्तौ ॥ शीभम् । राजन् । सुऽपथा । आ । याहि । अवाङ् । वर्धाम । ते । पपुष: । वृष्ण्यानि ॥९४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 94; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (नृपते) हे नरपति ! [मनुष्यों के स्वामी] (ते) तेरा (रथः) रथ (सुष्ठामा) दृढ़ बैठकोंवाला है, (हरी) दोनों घोड़े, (सुयमा) अच्छे साधे हुए हैं, (गभस्तौ) हाथ में (वज्रः) वज्र (मिम्यक्ष) प्राप्त हुआ है। (राजन्) हे राजन् ! (सुपथा) सुन्दर मार्ग से (शीभम्) शीघ्र (अर्वाङ्) सामने होकर (आ याहि) आ, (पपुषः ते) तुझ रक्षक के (वृष्ण्यानि) बलों को (वर्धाम) हम बढ़ावें ॥२॥

    भावार्थ

    जो राजा रथ, अश्व आदि सेना सजाकर वैरियों पर चढ़ाई करे, प्रजागण सहाय करके उसका बल बढ़ावें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(सुष्ठामा) दृढावस्थानयुक्ताः (रथः) (सुयमा) सुयमौ। सुशिक्षितौ (हरी) अश्वौ (ते) तव (मिम्यक्ष) म्यक्षतिर्गतिकर्मा-निघ० २।१४, लिट्। प्राप्तौ बभूव (वज्रः) आयुधम् (नृपते) नृणां पालक राजन् (गभस्तौ) बाहौ। हस्ते (शीभम्) अथ० ३।१३।२। शीघ्रम् (राजन्) (सुपथा) शोभनेन मार्गेण (आ याहि) आगच्छ (अर्वाङ्) अभिमुखः सन् (वर्धाम) वर्धयाम (ते) तव (पपुषः) पा रक्षणे-क्वसु। रक्षकस्य (वृष्ण्यानि) बलानि ॥

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    विषय

    सष्ठामा रथः

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के स्वपति से कहते हैं कि (रथ:) = तेरा शरीररूप रथ (सष्ठामा) = शोभनावस्थान हो इसका एक-एक अंग सुबद्ध हो, अर्थात् यह शरीररूप रथ सुगठित हो। (ते) = तेरे (हरी) = ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियरूप अश्व (सुयमा) = सम्यक् वश में हों। हे (नृपते) = आगे बढ़नेवालों के स्वामिन् मुखिया (ते गभस्तौ) = तेरे बाहुओं में (वज्रः) = क्रियाशीलतारूप वज्र (मिम्यक्ष) = संगत हो, अर्थात् तु सतत क्रियाशील जीवनवाला हो। २. हे (राजन्) = अपने जीवन को व्यवस्थित [regulated] करनेवाले और इसप्रकार अपने जीवन को दीप्स बनानेवाले जीव! तू सुपथा उत्तम मार्ग से (शीभम्) = शीघ्र (अर्वाड) = हमारे अभिमुख-हमारे अन्दर (आयाहि) = प्राप्त हो, बहिर्मुखी वृत्ति को छोड़कर अन्तर्मुखी वृत्तिवाला बन। जीवन को व्यवस्थित बनाना ही प्रभु की ओर चलना है। ३. प्रभु कहते हैं कि ऐसा होने पर (पपुष:) = सोमपान करनेवाले (ते) = तेरे (वृष्णयानि) = बलों को (वर्धाम) = हम बढ़ाते हैं। सोमपान से ही शक्ति का वर्धन होता है। सशक्त होकर ही हम प्रभु-दर्शन के योग्य बनते हैं।

    भावार्थ

    हमारा शरीररूप रथ सुदृढ़ हो। इन्द्रियाश्व संयत हों। हाथों में क्रियाशीलता हो। सुपथ से प्रभु की ओर चलें और सोम-रक्षण द्वारा शक्तिशाली बनें।

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! (रथः) मेरा यह शरीर रथ (सुष्ठामा) चञ्चलता से रहित होकर अब उत्तम स्थिरता को प्राप्त हो गया है, और (हरी) ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रियरूपी अश्व (सुयमा) सुनियन्त्रित हो गये हैं। (नृपते) हे नर-नारियों के स्वामी! (ते) आप ज्योतिर्मय की (गभस्तौ) अज्ञानान्धकार-निवारक किरणों में (वज्रः) मानो एक वज्र है, जो कि कामादि पर (मिम्यक्ष) गर्जा है। (राजन्) हे जगत् के राजन्! (सुपथा) योग के सुगममार्ग द्वारा (अर्वाङ्) हमारी ओर (शीभम्) शीघ्र (आ यहि) आइए, प्रकट हूजिए, (पपुषः) पोषण करनेवाले (ते) आपके (वृष्ण्यानि) सामर्थ्यों का, (वर्धाम) प्रचार द्वारा हम वर्धन करते हैं।

    टिप्पणी

    [गभस्तिः=गभम् अन्धकारम्, अस्यतीति=किरणः (उणादि कोष ४.१८०) वैदिक पुस्तकालय, अजमेर।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    Stable, strong and perfectly directed is your chariot, controlled and accurate your dual powers of motion. O refulgent ruler and protector of the people, in your hands you hold the controls of the thunder power of force and justice. Pray come at the fastest by the safest and straightest path to us right here. We celebrate and exalt your powers and generosity, and you love to protect and promote your celebrants. Stable, strong and perfectly directed is your chariot, controlled and accurate your dual powers of motion. O refulgent ruler and protector of the people, in your hands you hold the controls of the thunder power of force and justice. Pray come at the fastest by the safest and straighest path to us right here. We celebrate and exalt your powers and generosity, and you love to protect and promote your celebrants.

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    Translation

    O mighty ruler, your chariot is firm-seated, your horses are submissive and easily managed and your hands hold the weapon firmly grasped. O King, you are the ruler of people, you come quickly before us and we will increase your protective power.

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    Translation

    O mighty ruler, your chariot is firm-seated, your horses are submissive and easily managed and your hands hold the weapon firmly grasped. O King, you are the ruler of people, you come quickly before us and we will increase your protective power.

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    Translation

    Let those amongst us, who are capable of carrying on the state-affairs of the king, who are fierce, strong and pleased to work together, support this king, who has deadly weapons in his hands, is capable of destroying his enemies, powerful, and is of infallible energy and strength.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(सुष्ठामा) दृढावस्थानयुक्ताः (रथः) (सुयमा) सुयमौ। सुशिक्षितौ (हरी) अश्वौ (ते) तव (मिम्यक्ष) म्यक्षतिर्गतिकर्मा-निघ० २।१४, लिट्। प्राप्तौ बभूव (वज्रः) आयुधम् (नृपते) नृणां पालक राजन् (गभस्तौ) बाहौ। हस्ते (शीभम्) अथ० ३।१३।२। शीघ्रम् (राजन्) (सुपथा) शोभनेन मार्गेण (आ याहि) आगच्छ (अर्वाङ्) अभिमुखः सन् (वर्धाम) वर्धयाम (ते) तव (पपुषः) पा रक्षणे-क्वसु। रक्षकस्य (वृष्ण्यानि) बलानि ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (নৃপতে) হে নরপতি ! [মনুষ্যদের স্বামী] (তে) তোমার (রথঃ) রথ (সুষ্ঠামা) দৃঢ়াবস্থানযুক্ত, (হরী) রথের উভয় অশ্ব, (সুয়মা) সু-প্রশিক্ষিত, তুমি (গভস্তৌ) হস্তে (বজ্রঃ) বজ্র (মিম্যক্ষ) প্রাপ্ত। (রাজন্) হে রাজন্ ! (সুপথা) সুন্দর মার্গ অবলম্বন করে (শীভম্) শীঘ্র (অর্বাঙ্) সম্মুখে অগ্রসর হয়ে (আ যাহি) এসো, (পপুষঃ তে) রক্ষক তোমার (বৃষ্ণ্যানি) বল (বর্ধাম) আমরা বর্ধিত করি ॥২॥

    भावार्थ

    যে রাজা রথ, অশ্ব আদি সেনা সজ্জিত করে শত্রুদের উপর আক্রমণ করে, প্রজাগণ সহায়তা দ্বারা সেই রাজার বল বৃদ্ধি করে/করুক ॥২॥

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    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর! (রথঃ) আমার এই শরীর রথ (সুষ্ঠামা) চঞ্চলতা রহিত হয়ে এখন উত্তম স্থিরতা প্রাপ্ত হয়েছে, এবং (হরী) জ্ঞানেন্দ্রিয় এবং কর্মেন্দ্রিয়রূপী অশ্ব (সুযমা) সুনিয়ন্ত্রিত হয়েছে। (নৃপতে) হে নর-নারীদের স্বামী! (তে) আপনার [জ্যোতির্ময়ের] (গভস্তৌ) অজ্ঞানান্ধকার-নিবারক কিরণ-সমূহের মধ্যে (বজ্রঃ) মানো এক বজ্র আছে, যা কামাদির ওপর (মিম্যক্ষ) গর্জন করছে। (রাজন্) হে জগতের রাজন্! (সুপথা) যোগ-এর সুগমমার্গ দ্বারা (অর্বাঙ্) আমাদের দিকে (শীভম্) শীঘ্র (আ যহি) আসুন, প্রকট হন, (পপুষঃ) পোষণকারী (তে) আপনার (বৃষ্ণ্যানি) সামর্থ্যের, (বর্ধাম) প্রচার দ্বারা আমরা বর্ধন করি।

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