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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 12
    ऋषिः - मयोभूः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
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    यां मृ॒ताया॑नुब॒ध्नन्ति॑ कू॒द्यं॑ पद॒योप॑नीम्। तद्वै ब्र॑ह्मज्य ते दे॒वा उ॑प॒स्तर॑णमब्रुवन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । मृ॒ताय॑ । अ॒नु॒ऽब॒ध्नन्ति । कू़॒द्य᳡म् । प॒द॒ऽयोप॑नीम् । तत् । वै । ब्र॒ह्म॒ऽज्य॒ । ते॒ । दे॒वा: । उ॒प॒ऽस्तर॑णम् । अ॒ब्रु॒व॒न् ॥१९.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यां मृतायानुबध्नन्ति कूद्यं पदयोपनीम्। तद्वै ब्रह्मज्य ते देवा उपस्तरणमब्रुवन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । मृताय । अनुऽबध्नन्ति । कू़द्यम् । पदऽयोपनीम् । तत् । वै । ब्रह्मऽज्य । ते । देवा: । उपऽस्तरणम् । अब्रुवन् ॥१९.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 19; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    नास्तिक के तिरस्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (याम्) जिस (पदयोपनीम्) पद व्याकुल करनेवाली (कूद्यम्=कूदीम्) दुःखित शब्द देनेवाली बेड़ी को (मृताय) मरने के लिये (अनुबन्धन्ति) जकड़ देते हैं। (ब्रह्मज्य) हे ब्राह्मण के हानिकारक ! (देवाः) महात्माओं ने (तत्) उसको (वै) अवश्य (ते) तेरे लिये (उपस्तरणम्) विस्तर (अब्रुवन्) कहा है ॥१२॥

    भावार्थ

    दुराचारी नास्तिकों को कारागार आदि में रख कर कठिन दण्ड देवें ॥१२॥

    टिप्पणी

    १२−(याम्) (मृताय) मरणाय (अनुबध्नन्ति) अनुकृष्य धारयन्ति (कूद्यम्) कूङ् आर्तस्वरे−क्विप्। कुवम् आर्तस्वरं ददाति दा क, ङीप्। छान्दसो यण्। कूदीम्। आर्तस्वरदात्रीं शृङ्खलाम् (पदयोपनीम्) युप विमोहने−ल्युट्, ङीप्। पदयोर्व्याकुलयित्रीम् (तत्) (वै) अवश्यम् (ब्रह्मज्य) म० ७। हे ब्राह्मणस्य हानिकारक (ते) तुभ्यम् (देवाः) महात्मानः (उपस्तरणम्) स्तॄञ् आच्छादने ल्युट्। विष्टरम् (अब्रुवन्) अकथयन् ॥

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    विषय

    पदयोपनी कूदी

    पदार्थ

    १. (याम्) = जिस (कूद्यम्) = [कूङ् आर्तस्वरे, कुवं ददाति] आर्तस्वर को देनेवाली-दु:खितों के शब्द को पैदा करनेवाली (पदयोपनीम्) = [युष विमोहने] पाँवों को विमोहित [मूढ़] करनेवाली बेड़ी को (मृताय) = मरण-दण्ड के लिए [मृतं मरणम्, भावे क्तः] (अनुबध्नन्ति) = बाँधते हैं, हे (ब्राह्मज्य) = राष्ट्र में ज्ञान को नष्ट करनेवाले राजन्! (देवा:) = सब विद्वान् (वै) = निश्चय से (तत्) = उस बेड़ी को (ते उपस्तरणम्) = तेरे लिए सेज [शय्या] के रूप में (अब्रूवन्) = कहते हैं।

    भावार्थ

    'ब्रह्मज्य' राजा को कष्ट-स्वर-जनक, पाँवो को मूढबना देनेवाली बेड़ी में जकड़कर मृत्युदण्ड देना चाहिए। अत्याचारी राजा को दिया गया यह दण्ड अन्यों के लिए प्रत्यादर्श का काम करेगा।

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    भाषार्थ

    (कूद्यम् ) कृत्सित आवाज करनेवाली (पदयोपनीम् ) पैरों को संज्ञाशून्य कर देनेवाली (याम्) जिस बेड़ी को (मृताय) मृत्युदण्ड के लिए (अनु) निरन्तर (बन्धन्ति) बांधते हैं, (ब्रह्मज्य) ब्रह्मज्ञ और वेदज्ञ के जीवन को हानि पहुँचानेवाले हे राजन् ! (देवाः) राष्ट्र के दिव्य न्यायाधीशों ने (वै) निश्चय से (तद्) उसे (ते) तेरे लिए (उपस्तरणम्) बिछौना (अब्रुवन्) [दण्ड रूप में] कहा है। [इससे अतिरिक्त और बिछौना नहीं।]

    टिप्पणी

    [कूद्यम्= कु+ उद्यम् (वद्)। पदयोपनीम्=पद + युप (विमोहने, मोहनम् वैचित्र्यम्, चेतनाशून्यत्वम्)। देवाः= न्याय में फैसला देनेवाले। इन्हें सभाचरः, नथा न्यायालय को सभा कहा है। यथा 'धर्माय सभाचरम' (यजु:० ३०।६); धर्म है न्यायव्यवस्था, सभा है न्याय करनेवालों की, सभाचर है मुख्य न्यायाधीश। मन्त्र में दण्ड का विधान हुआ है, जोकि न्यायाधीशों द्वारा होता है।]

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    विषय

    ब्रह्मगवी का वर्णन।

    भावार्थ

    (यां) जिस (पदयोपनीं) पैरों को कष्ट देने वाली (कूद्यं) कांटेदार बेड़ी या कड़ी को (मृताय) मृत्यु दण्ड के लिये (अनु बध्नन्ति) शासक लोग बांधते हैं। हे ब्रह्मज्य ! ब्राह्मण के नाशक ब्रह्मशत्रो ! (देवाः) विद्वान् लोग (तत् वै) उन कांटों वाली बेड़ी को ही (ते उप स्तरणम्) तेरा सेज बनाने का (अब्रुवन्) उपदेश करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मयाभूर्ऋषिः। ब्रह्मगवी देवता। २ विराट् पुरस्ताद् बृहती। ७ उपरिष्टाद् बृहती। १-३-६, ७-१५ अनुष्टुभः। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahma Gavi

    Meaning

    That bunch of thorns which people bind after the dead to efface the footsteps, O violator and desecrator of Brahmana, that be your bed: so say the wise and the divines.

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    Translation

    The track-effacing broom, which they tie to a dead person, that, O scatter of intellectuals, will be your bedding, so the enlightened ones have decreed.

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    Translation

    The step effecting twist of grass which is bind by the people upon the dead be your couch, O oppressor of Brahmana declare so the learned man.

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    Translation

    O Oppressor of Vedic scholars, the thorny fetter, painful to the feet, fastened to punish a culprit to death has been declared by the sages as thy couch.

    Footnote

    An oppressor of learned persons should be punished to lie on thorny fetters.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(याम्) (मृताय) मरणाय (अनुबध्नन्ति) अनुकृष्य धारयन्ति (कूद्यम्) कूङ् आर्तस्वरे−क्विप्। कुवम् आर्तस्वरं ददाति दा क, ङीप्। छान्दसो यण्। कूदीम्। आर्तस्वरदात्रीं शृङ्खलाम् (पदयोपनीम्) युप विमोहने−ल्युट्, ङीप्। पदयोर्व्याकुलयित्रीम् (तत्) (वै) अवश्यम् (ब्रह्मज्य) म० ७। हे ब्राह्मणस्य हानिकारक (ते) तुभ्यम् (देवाः) महात्मानः (उपस्तरणम्) स्तॄञ् आच्छादने ल्युट्। विष्टरम् (अब्रुवन्) अकथयन् ॥

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