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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 3
    ऋषिः - मयोभूः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
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    ये ब्रा॑ह्म॒णं प्र॒त्यष्ठी॑व॒न्ये वा॑स्मिञ्छु॒ल्कमी॑षि॒रे। अ॒स्नस्ते॒ मध्ये॑ कु॒ल्यायाः॒ केशा॒न्खाद॑न्त आसते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । ब्रा॒ह्म॒णम् । प्र॒ति॒ऽअष्ठी॑वन् । ये । वा॒ । अ॒स्मि॒न् । शु॒ल्कम् । ई॒षि॒रे । अ॒स्न: । ते । मध्ये॑ । कु॒ल्याया॑: । केशा॑न् ।खाद॑न्त: । आ॒स॒ते॒ ॥१९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये ब्राह्मणं प्रत्यष्ठीवन्ये वास्मिञ्छुल्कमीषिरे। अस्नस्ते मध्ये कुल्यायाः केशान्खादन्त आसते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । ब्राह्मणम् । प्रतिऽअष्ठीवन् । ये । वा । अस्मिन् । शुल्कम् । ईषिरे । अस्न: । ते । मध्ये । कुल्याया: । केशान् ।खादन्त: । आसते ॥१९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    नास्तिक के तिरस्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जिन्होंने (ब्राह्मणम्) ब्राह्मण को (प्रत्यष्ठीवन्) निकाल ही दिया, (वा) अथवा (ये) जिन्होंने (अस्मिन्) उस पर से (शुल्कम्) कर (ईषिरे) उगाहा। (ते) वे लोग (अस्नः) रुधिर की (कुल्यायाः) नदी के (मध्ये) बीच में (केशान्) क्लिष्ट पदार्थों को (खादन्तः) खाते हुए (आसते) ठहरते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    जो अत्याचारी राक्षस लोग ब्राह्मणों को सताते हैं, वे घोर युद्धों में हार कर बड़े-बड़े कष्ट उठाते हैं ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(ये) दुष्टाः (ब्राह्मणम्) ब्रह्मवेत्तारम् (प्रत्यष्ठीवन्) ष्ठिवु निरसने−लङ्। प्रत्यक्षं निरस्तवन्तः बहिष्कृतवन्तः (ये) (वा) अथवा (अस्मिन्) ब्राह्मणे (शुल्कम्) शुल्क अतिस्पर्शने, सर्जने−घञ्। करम् (ईषिरे) ईष उञ्छे लिट्, आत्मनेपदं छान्दसम्। एकत्र कृतम् (अस्नः) अ० ५।५।८। असृज, असन् आदेशः। रुधिरस्य (ते) ब्राह्मणनिन्दकाः (मध्ये) घोरसंग्राममध्ये (कुल्यायाः) कुल संस्त्याने−क्यप्। टाप्। नद्याः−निघ०। १।१३। (केशान्) क्लिशेरन् लो लोपश्च। उ० ५।३३। इति क्लिश उपतापे−अन्, लस्य लोपः। क्लिष्टान् पदार्थान् (खादन्तः) भक्षयन्तः (आसते) तिष्ठन्ति ॥

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    विषय

    ब्राह्मणों के निरादर से युद्धों में विनाश

    पदार्थ

    १. (ये) = जो राजा लोग राज्यशक्ति के गर्व में (ब्राह्मणं प्रत्यष्ठीवन्) = ब्राह्मण के प्रति थूकते हैं, अर्थात् उसका निरादर करते हैं, (ये वा) = अथवा जो (अस्मिन्) = इसपर (शुल्कम्) = कर को (ईषिरे) = [ईष glean, collect] उगाहते हैं, (ते) = वे (अस्न:) = रुधिर की (कुल्यायाः मध्ये) = नदी के बीच में 'कुल्याऽल्पा कृत्रिमा सरित्'-अपने-अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए बनाई हुई कृत्रिम छोटी-छोटी नदियों के बीच में (केशान् खादन्त:) = एक-दूसरे के बालों को खाते हुए-एक-दूसरे को नोचते हुए (आसते) = स्थित होते हैं।

    भावार्थ

    ज्ञानियों का निरादर करनेवाले राजा परस्पर युद्धों में फंस जाते हैं और एक-दूसरे का नाश करने में लगे रहते हैं।

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    भाषार्थ

    (ये) जो (ब्राह्मणम्) ब्रह्मज्ञ और वेदज्ञ विद्वान् के (प्रत्यष्ठीवन् ) प्रति थूकते हैं, या उसकी प्रतिकूलता में स्थित होते हैं, (वा) या (ये) जो (अस्मिन्) इसपर (शुल्कम् ) 'कर' (ईषिरे) लगाना चाहते हैं, (ते) वे (अस्नः) रुधिर [असृक्] की (कुल्यायाः मध्ये) नहर के बीच (केशान् खादन्तः) परस्पर के केशों को नोचते हुए (आसते) रहते हैं।

    टिप्पणी

    [ब्राह्मणों के प्रति थूकना उनके प्रति घृणा तथा अपमान-प्रदर्शन करना है तथा जिनका दायाद (१८।१४) सोमयज्ञ है, जिनका धन प्रजा के उपकार के लिए है, उनपर 'कर' लगाना - ये दोनों अपराधरूप हैं। प्रजा इसे सहन न कर अधिकारियों के विरोध में विप्लव पर उतारू होकर, पारस्परिक युद्ध में रुधिर प्रवाहित करती और क्लेश भोगती रहती है। ईषिरे=इषु इच्छायाम् (तुदादिः)।]

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    विषय

    ब्रह्मगवी का वर्णन।

    भावार्थ

    (ये) जो पुरुष (ब्राह्मणम्) ब्राह्मण की ओर (प्रति अष्ठीवन्) घृणा से थूकते और उसका अपमान करते हैं और (ये वा) जो लोग (अस्मिन्) इस वेदवित् ब्राह्मण पर (शुल्कम् ईषिरे) किसी प्रकार का कर बैठाते हैं (ते) वे गर्वी और लोभी पुरुष (अस्नः) रुधिर की (कुल्यायाः) धारा के (मध्ये) बीच में (केशान् खादन्तः) क्लेशों को भोगते (आसते) रहते हैं। अर्थात् ब्राह्मण का अपमान कर के वे परस्पर की लड़ाइयों से एक दूसरों का गला काटते रहते हैं और नाना क्लेश भोगते है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मयाभूर्ऋषिः। ब्रह्मगवी देवता। २ विराट् पुरस्ताद् बृहती। ७ उपरिष्टाद् बृहती। १-३-६, ७-१५ अनुष्टुभः। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahma Gavi

    Meaning

    Those who hate and desecrate the Brahmana and oppress him with exorbitant taxes or deprive him of his righful share tear their hair in pain of guilt in the midst of a stream of blood.

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    Translation

    Whosoever spit on (insult) an intellectual, or who seek to impose taxes on him, they sit in the middle of a stream of blood chewing hair.

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    Translation

    Those men who in abomination, spit on the Brahmana, the learned, those who realize undue taxes from him, sit in the stream blood consuming the dire consequences of their such deeds.

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    Translation

    They, who dishonor a Brahmin, or snatch his money, ever fall a prey to afflictions, in the middle of a stream running with blood.

    Footnote

    Persons who show disrespect to a Brahmin or rob him of his money, suffer calamity through bloodshed.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(ये) दुष्टाः (ब्राह्मणम्) ब्रह्मवेत्तारम् (प्रत्यष्ठीवन्) ष्ठिवु निरसने−लङ्। प्रत्यक्षं निरस्तवन्तः बहिष्कृतवन्तः (ये) (वा) अथवा (अस्मिन्) ब्राह्मणे (शुल्कम्) शुल्क अतिस्पर्शने, सर्जने−घञ्। करम् (ईषिरे) ईष उञ्छे लिट्, आत्मनेपदं छान्दसम्। एकत्र कृतम् (अस्नः) अ० ५।५।८। असृज, असन् आदेशः। रुधिरस्य (ते) ब्राह्मणनिन्दकाः (मध्ये) घोरसंग्राममध्ये (कुल्यायाः) कुल संस्त्याने−क्यप्। टाप्। नद्याः−निघ०। १।१३। (केशान्) क्लिशेरन् लो लोपश्च। उ० ५।३३। इति क्लिश उपतापे−अन्, लस्य लोपः। क्लिष्टान् पदार्थान् (खादन्तः) भक्षयन्तः (आसते) तिष्ठन्ति ॥

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