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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 9
    ऋषिः - मयोभूः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
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    तं वृ॒क्षा अप॑ सेधन्ति च्छा॒यां नो॒ मोप॑गा॒ इति॑। यो ब्रा॑ह्म॒णस्य॒ सद्धन॑म॒भि ना॑रद॒ मन्य॑ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । वृ॒क्षा: । अप॑ । से॒ध॒न्ति॒ । छा॒याम् । न॒: । मा । उप॑ । गा॒: । इति॑ ।य: । ब्रा॒ह्म॒णस्य॑ । सत् । धन॑म् । अ॒भि । ना॒र॒द॒ । मन्य॑ते ॥१९.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं वृक्षा अप सेधन्ति च्छायां नो मोपगा इति। यो ब्राह्मणस्य सद्धनमभि नारद मन्यते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । वृक्षा: । अप । सेधन्ति । छायाम् । न: । मा । उप । गा: । इति ।य: । ब्राह्मणस्य । सत् । धनम् । अभि । नारद । मन्यते ॥१९.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 19; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    नास्तिक के तिरस्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (तम्) उसको (वृक्षाः) वृक्ष (अप सेधन्ति) हटा देते हैं, “(नः) हमारी (छायाम्) छाया में (मा उप गाः) मत आ,” (इति) ऐसा कह कर। (यः) जो पुरुष, (नारद) हे नर [सर्वनायक, परमात्मा] के ज्ञान देनेवाले मनुष्य ! (ब्राह्मणस्य) ब्राह्मण के (सत्) श्रेष्ठ (धनम्) धनको [अभि=अभिभूय] दबा कर (मन्यते) अपना मानता है ॥९॥

    भावार्थ

    ब्राह्मण पर अत्याचार के कारण कुप्रबन्ध होने से वन उपवन वाटिका आदि नष्ट हो जाते हैं ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(तम्) अत्याचारिणम् (वृक्षाः) अ० ३।६।८। स्वीकरणीयास्तरवः (अप सेधन्ति) अपसेधयन्ति निवारयन्ति (छायाम्) (नः) अस्माकम् (मा उप गाः) इणो गा लुङि। पा० २।४।४५। इति इण् गतौ लुङि गादेशः। अडभावो माङि। न प्राप्नुहि (इति) वाक्यसमाप्तौ (यः) दुष्टः (ब्राह्मणस्य) ब्रह्मवेत्तुः (सत्) श्रेष्ठम् (धनम्) वित्तम् (अभि) अभिभूय (नारद) नरति नयतीति नरः। नृ नये−अच्। नरस्येदम्, अण्। नारं परमात्मज्ञानं ददातीति, दा−क। हे सर्वनायकपरमेश्वरस्य ज्ञानप्रद (मन्यते) स्वकीयं जानाति ॥

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    विषय

    वृक्ष-छाया का अभाव

    पदार्थ

    १. हे (नारद) = [नरसमूह द्यति] अभिमानवश नर-समूह को खण्डित व पीड़ित करनेवाले राजन् ! (यः) = जो भी (ब्राह्मणस्य) = ज्ञानी ब्रह्मवेत्ता के (सत् धनम्) उत्कृष्ट [सत्य]ज्ञानरूपी धन को (अभिमन्यते) = [अभिमन्-Injure, threaten] हानि पहुचाना चाहता है, अथवा उसे भयभीत करना चाहता है, अर्थात् जो राजा ज्ञान-प्रसार के कार्य पर प्रतिबन्ध लगाना चाहता है, (तम्) = उसे (वृक्षा: अपसेधन्ति) = वृक्ष अपने से दूर करते हैं और मानो कहते हैं कि (नः छायां मा उपगाः इति) = हमारी छाया में मत आओ, अर्थात् इस अत्याचारी राजा को वृक्ष-छाया का सुख भी प्राप्त नहीं होता।

    भावार्थ

    ब्राह्मण के ज्ञान-धन पर प्रतिबन्ध लगानेवाले अत्याचारी राजा के राज्य में वृष्टि न होने से छायावाले वृक्षों का भी अभाव हो जाता है।

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    भाषार्थ

    (नारद) हे 'आपः' के सदृश शान्तिदायक परमेश्वर ! (यः) जो (ब्राह्मणस्य) ब्रह्मज्ञ और वेदज्ञ के (सद्धनम् ) सच्चे धन को (अभिमन्यते) अभिलक्ष्य कर उसे स्तम्भित कर देता है, ( तम् ) उसे (वृक्षाः) वृक्ष ( अप सेधन्ति) परे हटा देते हैं (इति) यह कहकर कि (न: छायाम् ) हमारी छाया के (उप) समीप (मा गाः) तू गमन न कर।

    टिप्पणी

    [नारद= नार + द; नारा:=आपः (मनु० १।१०), यथा "आपो नारा इति प्रोक्ता आपो वै नरसूनवः।" सद्धनम्= सत्परामर्शवाणी। मन्यते =मन स्तम्भे (चुरादिः)। स्तम्भः = रोक देना, कार्यकारी न होने देना। वर्णन कविता की भाषा में है, वृक्ष बोल नहीं सकते ।]

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    विषय

    ब्रह्मगवी का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (नारद) मनुष्यों को आश्रय देने हारे पालक ! राजन् ! (यः) जो (ब्राह्मणस्य) विद्वान् ब्राह्मण के (सत् धनम्) सत् धन, विद्या और तप को (अभि मन्यते) हथियाना चाहता है (वृक्षाः) वृक्ष तुल्य आश्रयदाता क्षत्रियगण भी (तम् अप सेधन्ति) उसको दुरदुरा देते हैं कि (नः) हमारी (छायां) छाया, शरण में भी (मा उप गाः इति) तू मत आ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मयाभूर्ऋषिः। ब्रह्मगवी देवता। २ विराट् पुरस्ताद् बृहती। ७ उपरिष्टाद् बृहती। १-३-६, ७-१५ अनुष्टुभः। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahma Gavi

    Meaning

    Even trees repel him from their shade saying, “Do not come into the shade”. O Narada, enlightened giver of shelter and knowledge to men, whoever appropriates the holy wealth of the Brahmana taking it as his own, is so contemptible.

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    Translation

    Even the trees repel him saying, "do not come to our shade" O Narada, who appropriates arrogantly the good wealth of an intellectual.

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    Translation

    Even trees as it appears, repel and drive from their sheltering shade. O, enlightened one! the man who forcibly possesses the wealth of the Brahmana.

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    Translation

    The very trees repel the man, and drive him from their sheltering shade, whoever claims. O King, the treasure that a learned person owns.

    Footnote

    Narada is mentioned by Griffith as a saint of the celestial class who often comesdown to earth to report what is going on in heaven and return with his account of whatis being done on earth. This explanation is unacceptable, as it savors of history in the Vedas. The word means a king, the leader of men.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(तम्) अत्याचारिणम् (वृक्षाः) अ० ३।६।८। स्वीकरणीयास्तरवः (अप सेधन्ति) अपसेधयन्ति निवारयन्ति (छायाम्) (नः) अस्माकम् (मा उप गाः) इणो गा लुङि। पा० २।४।४५। इति इण् गतौ लुङि गादेशः। अडभावो माङि। न प्राप्नुहि (इति) वाक्यसमाप्तौ (यः) दुष्टः (ब्राह्मणस्य) ब्रह्मवेत्तुः (सत्) श्रेष्ठम् (धनम्) वित्तम् (अभि) अभिभूय (नारद) नरति नयतीति नरः। नृ नये−अच्। नरस्येदम्, अण्। नारं परमात्मज्ञानं ददातीति, दा−क। हे सर्वनायकपरमेश्वरस्य ज्ञानप्रद (मन्यते) स्वकीयं जानाति ॥

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