अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 4
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
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सं॒जय॒न्पृत॑ना ऊ॒र्ध्वमा॑यु॒र्गृह्या॑ गृह्णा॒नो ब॑हु॒धा वि च॑क्ष्व। दैवीं॒ वाचं॑ दुन्दुभ॒ आ गु॑रस्व वे॒धाः शत्रू॑णा॒मुप॑ भरस्व॒ वेदः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस॒म्ऽजय॑न् । पृत॑ना: । ऊ॒र्ध्वऽमा॑यु: । गृह्या॑: । गृ॒ह्णा॒न: । ब॒हु॒धा । वि । च॒क्ष्व॒ । दैवी॑म् । वाच॑म् । दु॒न्दु॒भे॒ । आ । गु॒र॒स्व॒ । वे॒धा: । शत्रू॑णाम् । उप॑ । भ॒र॒स्व॒ । वेद॑: ॥२०.४॥
स्वर रहित मन्त्र
संजयन्पृतना ऊर्ध्वमायुर्गृह्या गृह्णानो बहुधा वि चक्ष्व। दैवीं वाचं दुन्दुभ आ गुरस्व वेधाः शत्रूणामुप भरस्व वेदः ॥
स्वर रहित पद पाठसम्ऽजयन् । पृतना: । ऊर्ध्वऽमायु: । गृह्या: । गृह्णान: । बहुधा । वि । चक्ष्व । दैवीम् । वाचम् । दुन्दुभे । आ । गुरस्व । वेधा: । शत्रूणाम् । उप । भरस्व । वेद: ॥२०.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
संग्राम में जय का उपदेश।
पदार्थ
(ऊर्ध्वमायुः) ऊँचा शब्द करता हुआ, (पृतनाः) संग्रामों को (संजयन्) जीतता हुआ, (गृह्याः) ग्रहण करने योग्य सेनाओं को (गृह्णानः) ग्रहण करता हुआ तू (बहुधा) बहुत प्रकार से (वि चक्ष्व) देखता रह। (दुन्दुभे) हे दुन्दुभि ! (दैवीम्) दिव्य गुणवाली (वाचम्) वाणी को (आगुरस्व) उच्चारण कर, (वेधाः) विधान करनेवाला तू (शत्रूणाम्) वैरियों का (वेदः) धन (उप भरस्व) लाकर भर दे ॥४॥
भावार्थ
जैसे पराक्रमी योधा दुन्दुभि बजाकर शत्रुओं को जीतकर कीर्ति पाते हैं, इसी प्रकार सब मनुष्य आत्मदोष मिटाकर यशस्वी होवें ॥४॥
टिप्पणी
३−(वृषा) बलीवर्दः (इव) यथा (यूथे) तिथपृष्ठगूथयूथप्रोथाः। उ० २।१२। इति यु मिश्रणामिश्रणयोः। थक्। सजातीयसमूहे (सहसा) बलेन (विदानः) विद ज्ञाने−शानच् क्तार्थे। विदितः (गव्यन्) सुप आत्मनः क्यच्। पा० ३।१।८। इति गो−क्यच्। गां भूमिमिच्छन् (अभि) (रुव) गर्ज (संधनाजित्) छान्दसो दीर्घः। सम्यग्धनानां जेता (शुचा) शोकेन (विध्य) छिन्धि (हृदयम्) अन्तःकरणम् (परेषाम्) शत्रूणाम् (हित्वा) ओहाक् त्यागे। (त्यक्त्वा (ग्रामान्) निवासदेशान् (प्रच्युताः) पराजिताः (यन्तु) गच्छन्तु (शत्रवः) वैरिणः ॥
विषय
ऊर्ध्वमायुः
पदार्थ
१.हे दुन्दुभे! तू (पृतनाः संजयन्) = शत्रुओं को पराजित करता हुआ (ऊर्ध्वमायुः) = ऊँचे शब्दवाला (गृह्या गृहाणन:) ग्रहण के योग्य सब पदार्थों का ग्रहण करनेवाला (बहुधा विचक्ष्व) = बहुत प्रकार से राष्ट्र को देखनेवाला हो-राष्ट्र का रक्षण करनेवाला हो। २. हे (दुन्दुभे) = युद्धवाद्य ! तू (दैवीम्) = [दिव् विजिगीषा] शत्रु-विजय की कामनावाली (वाचम्) = वाणी को (आ गुरस्व) = चारों ओर घोषित कर। (वेधा:) = राष्ट्र का निर्माण करनेवाला बनकर (शत्रूणां वेदः) = शत्रुओं के धन का (उपभरस्व) = हरण करनेवाला हो।
भावार्थ
यह युद्धवाध शत्रुसैन्यों का पराजय करे और शत्रुओं के धनों का अपहरण करके राष्ट्रकोश को भरनेवाला हो।
भाषार्थ
(ऊर्ध्वमायुः) ऊँची आवाजवाला तू (पृतना:) सेनाओं को (संजयन्) जीतता हुआ, (गृह्या ) पकड़ने योग्य सेनाओं को (गृह्णानः) पकड़ता हुआ, (बहुधा) बहुत प्रकार से (विचक्ष्व) [सेना का] निरीक्षण कर। (दुन्दुभे) हे दुन्दुभि ! (दैवीम् ) विजिगीषुओं की (वाचम्) वाणी को ( आ गुरस्व) सब ओर बोलने का उद्यम कर, (वेधाः) वींधनेवाला तू (शत्रूणाम् ) शत्रुओं के (वेदः) धन को (उप) अपने समीप ( भरस्व हरस्व ) ले- आ ।
टिप्पणी
[चक्ष्व° पश्यतिकर्मा (निघं० ३।११)। दैवीम्=दिवु क्रीडा विजिगीषा आदि (दिवादिः), युद्ध में 'दुन्दुभि' विजिगीषा की ध्वनिवाला होना चाहिए जिससे योद्धाओं में जोश का संचार हो। गुरस्व= गुरी उद्यमने (तुदादिः) वेदः धनम् (निघं० २। १०) मायुः=माङ् माने शब्दे च (जुहोत्यादिः)। वेधाः= व्यध ताडने (दिवादिः) ।]
विषय
दुन्दुभि या युद्धवीर राजा का वर्णन।
भावार्थ
हे (दुन्दुभे) नक्कारे ! उसके समान गर्जना करने वाले राजन् ! तू (दैवीं वाचं) देवों की वाणी को (आ गुरस्व) सब तरफ़ आघोषित कर और तू (वेधाः) सब कार्यों को स्वयं करने हारा होकर (शत्रूणाम्) शत्रुओं का (वेदः) धन (उप भरस्व) छीन ला। और तू (ऊर्ध्व-मायुः) उच्च नाद करता हुआ (पृतनाः संजयन्) शत्रु-सेनाओं का विजय करता हुआ (गृह्याः गृह्णानः) ग्रहण करने योग्य सब पदार्थों का ग्रहण करता हुआ (बहुधा वि-चक्ष्व) नाना प्रकार से सबका निरीक्षण कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। सपत्न सेनापराजयाय देवसेना विजयाय च दुन्दुभिस्तुतिः। १ जगती, २-१२ त्रिष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Clarion call for War and Victory
Meaning
O warrior, loud and roaring, winning your battles, collecting your prizes, go on, watch all round. Let the war drum proclaim the divine victory loud and bold, go forward and disarm the enemies of all their power and force.
Translation
Conquering the invading hordes, loud-roarer, capturing those who deserve to be captured, may you-look around in many ways. O war-drum, being pious, may you utter the divine speech. May you fetch the enemy's wealth to us.
Translation
Let this war-drum victorious in the battle, loudly roaring and becoming the means of seizing whatever may be seized, be seen by all. Let this war-drum utter wonderful voice and let the army-controlling man capture the posseions of enemies.
Translation
Victorious in the battle, loudly roaring, seizing what may be seized, keep watch allaround thee. Utter, O King, thy divine voice with triumph. Bring, as a master-mind, our enemies possessions.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(वृषा) बलीवर्दः (इव) यथा (यूथे) तिथपृष्ठगूथयूथप्रोथाः। उ० २।१२। इति यु मिश्रणामिश्रणयोः। थक्। सजातीयसमूहे (सहसा) बलेन (विदानः) विद ज्ञाने−शानच् क्तार्थे। विदितः (गव्यन्) सुप आत्मनः क्यच्। पा० ३।१।८। इति गो−क्यच्। गां भूमिमिच्छन् (अभि) (रुव) गर्ज (संधनाजित्) छान्दसो दीर्घः। सम्यग्धनानां जेता (शुचा) शोकेन (विध्य) छिन्धि (हृदयम्) अन्तःकरणम् (परेषाम्) शत्रूणाम् (हित्वा) ओहाक् त्यागे। (त्यक्त्वा (ग्रामान्) निवासदेशान् (प्रच्युताः) पराजिताः (यन्तु) गच्छन्तु (शत्रवः) वैरिणः ॥
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