अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 8
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
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धी॒भिः कृ॒तः प्र व॑दाति॒ वाच॒मुद्ध॑र्षय॒ सत्व॑ना॒मायु॑धानि। इन्द्र॑मेदी॒ सत्व॑नो॒ नि ह्व॑यस्व मि॒त्रैर॒मित्राँ॒ अव॑ जङ्घनीहि ॥
स्वर सहित पद पाठधी॒भि: । कृ॒त: । प्र । व॒दा॒ति॒ । वाच॑म् । उत् । ह॒र्ष॒य॒ । सत्व॑नाम् । आयु॑धानि । इन्द्र॑ऽमेदी । सत्व॑न: । नि । ह्व॒य॒स्व॒ । मि॒त्रै: । अ॒मित्रा॑न् । अव॑ । ज॒ङ्घ॒नी॒हि॒ ॥२०.८॥
स्वर रहित मन्त्र
धीभिः कृतः प्र वदाति वाचमुद्धर्षय सत्वनामायुधानि। इन्द्रमेदी सत्वनो नि ह्वयस्व मित्रैरमित्राँ अव जङ्घनीहि ॥
स्वर रहित पद पाठधीभि: । कृत: । प्र । वदाति । वाचम् । उत् । हर्षय । सत्वनाम् । आयुधानि । इन्द्रऽमेदी । सत्वन: । नि । ह्वयस्व । मित्रै: । अमित्रान् । अव । जङ्घनीहि ॥२०.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
संग्राम में जय का उपदेश।
पदार्थ
(धीभिः) शिल्पकर्म से (कृतः) बनाया गया वह (वाचम्) शब्द (प्रवदाति) अच्छे प्रकार बोले। (सत्वनाम्) हमारे वीरों के (आयुधानि) शस्त्रों को (उत् हर्षय) ऊँचा उठा। (इन्द्रमेदी) ऐश्वर्यवान् सेनापति का मित्र तू (सत्वनः) हमारे वीरों को (नि) नियम से (ह्वयस्व) बुला। (मित्रैः) मित्रों के साथ (अमित्रान्) वैरियों को (अव जङ्घनीहि) गिरा कर मार डाल ॥८॥
भावार्थ
सेनादल दुन्दुभि का शब्द सुनकर अपने शस्त्र लेकर शत्रुओं पर धावा करके मारें ॥८॥
टिप्पणी
८−(धीभिः) शिल्पकर्मभिः। धीः कर्मनाम−निघ० २।१। (कृतः) निष्पादितः (प्र) प्रकर्षेण (वदाति) कथयतु (वाचम्) शब्दम् (उत् हर्षय) ऊर्ध्वानि कुरु (सत्वनाम्) अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते। पा० ३।२।७५। इति षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु−क्वनिप्, दस्य तः। गतिशीलानां वीराणाम् (आयुधानि) शस्त्राणि (इन्द्रमेदी) ऐश्वर्यवतः सेनापतेः स्नेही (सत्वनः) वीरान् (नि) नियमेन (ह्वयस्व) आह्वय (मित्रैः) सुहृद्भिः (अमित्रान्) शत्रून् (अव) अधः-पातेन (जङ्घनीहि) हन हिंसागत्योः−यङ्लुकि लोटि छान्दसं रूपम्। जङ्घनीहि भृशं मारय ॥
विषय
इन्द्रमेदी
पदार्थ
१, (धीभिः कृतः) = बुद्धिपूर्वक बनाया हुआ-बुद्धिमान् शिल्पियों द्वारा निर्मित यह युद्धवाध (वाचं प्रवदाति) = ऊँचा शब्द करता है। हे युद्धवाद्य! तू (सत्वनाम्) = वीरों के (आयुधानि) = आयुधों को (उद्धर्षय) = ऊँचा उठा। तेरे शब्द से उत्साहित होकर वे अपने-अपने शस्त्रों को उठाएँ। २. (इन्द्रमेदी) = वीरों के साथ स्नेह करनेवाला तू (सत्वनः नियस्व) = वीर सैनिकों को युद्ध के लिए पुकार । (मित्रैः अमित्रान् अवजंघनीहि) = मित्रों के द्वारा अमित्रों को तू सुदूर भगानेवाला व उन्हें नष्ट करनेवाला हो।
भावार्थ
कुशल शिल्पियों से बनाया हुआ यह युद्धवाद्य ऊँचा शब्द करता है। इसके शब्द को सुनकर वीर सैनिक अस्त्रों को उठाते हैं और शत्रुओं को दूर भगाने व नष्ट करनेवाले होते हैं।
भाषार्थ
(धीभिः) बुद्धिपूर्वक कर्मों द्वारा (कृतः) निर्मित [ दुन्दुभि] (वाचम् प्रवदाति) ऊँची आवाज करे [हे दुन्दुभि] (सत्वनाम् ) बलशाली सैनिकों के (आयुधानि) युद्ध करने के शस्त्रास्त्रों को (उद्धर्षय) चमका [युद्ध में प्रेरित कर]। (इन्द्रमेदी) सम्राट् का स्नेही मित्र तू (सत्वनः) बलशाली शत्रु सैनिकों का (नि ह्वयस्व) नितरां आह्वान कर, (मित्रैः ) मित्रराजाओं द्वारा (अमित्रान् ) शत्रुओं का (अव जङ्घनीहि) अवहनन कर ।
टिप्पणी
[धोभिः=धी प्रज्ञानाम (निघं० ३।९); तथा कर्मनाम (निघं० २।१)। इन्द्रमेदो= इन्द्रः सम्राट् (यजु:० ८।३७ )+ मिद स्नेहने । मित्रैः= मित्रराजभिः (मन्त्र ७)।]
विषय
दुन्दुभि या युद्धवीर राजा का वर्णन।
भावार्थ
(धीभिः) धारणामयी बुद्धियों या धारण-शक्तियों या कर्मों से (कृतः) सुसम्पादित होकर (वाचस् म वदाति) तू आवाज़ कर। तू (सत्वनाम्) सत्वशील, बलवान् सात्विक पुरुषों के (आयुधानि) हथियारों को (उद्-हर्षय) हर्षित कर, उनमें जान फूंक दें। और तू (इन्द्र मेदी) राजा का स्नेही होकर (सत्वनः) वीरों को (नि ह्वयस्व) युद्ध में आ जुटने के लिये निमन्त्रण दे, और (मित्रः) अपने मित्र राजाओं से (अमित्रान्) शत्रुओं को (अव जंघनी हि) विनाश कर डाल।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। सपत्न सेनापराजयाय देवसेना विजयाय च दुन्दुभिस्तुतिः। १ जगती, २-१२ त्रिष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Clarion call for War and Victory
Meaning
Speak the words of a language created and framed by careful thought, reflection and practical sagacity, raise, calibrate and energise the weapons of the brave. O friend and ally of Indra, mighty ruler, give the clarion call to the warriors, raise the forces of friends and destroy the enemies.
Translation
Made with skills, the drum utters clearly a speech. (O drum), raise up the weapons of powerful warriors, Gladdener of the army chief, call up the powerful warriors and with the help of the friends crush down the enemies.
Translation
Let it produced with skill, send for its voice, let it make the weapon of our warriors bristle, let this war-drum. which is the favorite of braves call out our heroes and let it kill our enemies through allies.
Translation
The drum fashioned by skilled artisans sends forth its voice. O drum, make thou the weapons of our warriors bristle. With the Commander-in-chief as thy ally, call out our heroes to the battlefield, and with thy friends scatter and chase the foemen!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(धीभिः) शिल्पकर्मभिः। धीः कर्मनाम−निघ० २।१। (कृतः) निष्पादितः (प्र) प्रकर्षेण (वदाति) कथयतु (वाचम्) शब्दम् (उत् हर्षय) ऊर्ध्वानि कुरु (सत्वनाम्) अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते। पा० ३।२।७५। इति षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु−क्वनिप्, दस्य तः। गतिशीलानां वीराणाम् (आयुधानि) शस्त्राणि (इन्द्रमेदी) ऐश्वर्यवतः सेनापतेः स्नेही (सत्वनः) वीरान् (नि) नियमेन (ह्वयस्व) आह्वय (मित्रैः) सुहृद्भिः (अमित्रान्) शत्रून् (अव) अधः-पातेन (जङ्घनीहि) हन हिंसागत्योः−यङ्लुकि लोटि छान्दसं रूपम्। जङ्घनीहि भृशं मारय ॥
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