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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 6
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
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    पूर्वो॑ दुन्दुभे॒ प्र व॑दासि॒ वाचं॒ भूम्याः॑ पृ॒ष्ठे व॑द॒ रोच॑मानः। अ॑मित्रसे॒नाम॑भि॒जञ्ज॑भानो द्यु॒मद्व॑द दुन्दुभे सू॒नृता॑वत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पूर्व॑: । दु॒न्दु॒भे॒ ।प्र । व॒दा॒सि॒ । वाच॑म् । भूम्या॑: । पृ॒ष्ठे । व॒द॒ । रोच॑मान: । अ॒मि॒त्र॒ऽसे॒नाम् । अ॒भि॒ऽजञ्ज॑भान: । द्यु॒मत् । व॒द॒ । दु॒न्दु॒भे॒ । सू॒नृता॑ऽवत् ॥२०.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पूर्वो दुन्दुभे प्र वदासि वाचं भूम्याः पृष्ठे वद रोचमानः। अमित्रसेनामभिजञ्जभानो द्युमद्वद दुन्दुभे सूनृतावत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पूर्व: । दुन्दुभे ।प्र । वदासि । वाचम् । भूम्या: । पृष्ठे । वद । रोचमान: । अमित्रऽसेनाम् । अभिऽजञ्जभान: । द्युमत् । वद । दुन्दुभे । सूनृताऽवत् ॥२०.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 20; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    संग्राम में जय का उपदेश।

    पदार्थ

    (दुन्दुभे) हे ढोल ! (पूर्वः) सब से पहिले तू (वाचम्) ध्वनि (प्रवदासि) ऊँची कर, और (रोचमानः) रुचि करके (भूम्याः) भूमि की (पृष्ठे) पीठ पर (वद) शब्द कर। (दुन्दुभे) हे ढोल ! (अमित्रसेनाम्) वैरियों की सेना को (अभिजञ्जभानः) सर्वथा मेंट डालता हुआ तू (द्युमत्) स्पष्ट-स्पष्ट और (सूनृतावत्) सत्य प्रिय वाणी से (वद) बोल ॥६॥

    भावार्थ

    सेना के लोग प्रसन्न चित्त से सत्य प्रतिज्ञा करके ढोल आदि बाजे बजा कर शत्रुओं को जीतें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(पूर्वः) सर्वेषां प्रथमः सन् (दुन्दुभे) बृहड्ढक्के (प्र) प्रकर्षेण (वदासि) लेटि रूपम्। कथय (वाचम्) वाणीम् (भूम्याः) पृथिव्याः (पृष्ठे) तले (वद) कथय (रोचमानः) रुचियुक्तः (अमित्रसेनाम्) शत्रुसेनाम् (अभिजञ्जभानः) जभि नाशने−यङ्लुकि, शानच् अभितो भृशं नाशयन् (द्युमत्) अ० २।३५।४। यथा तथा स्पष्टरीत्या (वद) (दुन्दुभे) (सूनृतावत्) अ० ३।१२।२। सत्यप्रियवाग्योगेन ॥

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    विषय

    अमित्रसेनाम् अभिभञ्जमानः

    पदार्थ

    १.हे (दुन्दुभे) = युद्धवाद्य ! तू (पूर्व:) = सबसे प्रथम स्थान में होता हुआ (वाचं प्रवदासि) = युद्ध के लिए आह्वान की वाणी बोलता है। (भूम्याः पृष्ठे) = इस भू-पृष्ठ पर (रोचमान:) = दीस होता हुआ तू (वद) = बोल, शब्द कर। २. (अमित्रसेनाम्) = शत्रु सेना को (अभिजजभान:) = रण से भगाता हुआ तू (द्युमत् वद)-दीस होकर बोल। हे (दुन्दुभे) = युद्धवाद्य! तू (सूनुतावत्) = राष्ट्र में शुभ [सु], दु:खों का परिहाण करनेवाली [ऊन्], सत्य [ऋत] वाणीवाला हो। तेरे शब्द से राष्ट्र के सैनिकों व प्रजाओं में उत्साह का सञ्चार हो।

    भावार्थ

    युद्धवाद्य का शब्द भू-पृष्ठ पर दीसिवाला हो। यह अमित्र-सेना को रण से भगानेवाला हो।

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    भाषार्थ

    (दुन्दुभे) हे दुन्दुभि ! (पूर्वः) पहले तू (वाचम् ) [ सौम्य ] वाणी को (प्रवदासि) बोल, [तत्पश्चात्] (रोचमान:) रुचिकर होता हुआ (भूम्या: पृष्ठे) युद्धभूमि की पीठ पर (वद) युद्ध, सम्बन्धी आवाज कर, (अमित्रसेनाम्) शत्रु की सेना को (अभिजञ्जभानः) छिन्न भिन्न करता हुआ। [तत्पश्चात्] (दुन्दुभे) हे दुन्दुभि ! (द्युमत् ) मोद-प्रमोदवाली, (सूनृतावत्) सत्य और प्रिय (वद) वाणी बोल ।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में दुन्दुभि के बोलने के ३ प्रक्रम कहे हैं-(१) युद्धारम्भ से पूर्व दुन्दुभि की आवाज; यह शत्रु को चेताने के लिए है। ( २ ) युद्धभूमि में की गई आवाज, युद्ध के प्रारम्भ हो जाने पर निज सैनिकों को जोश दिलाने बाली आवाज। (३) विजय पाकर प्रसन्नता की आवाज जोकि प्रिय लगे, और विजय की सचाई को सूचित करे। द्युमत्= दिवु क्रीडा, विजिगीषा, व्यवहार, द्युति, स्तुति 'मोद' (दिवादिः)। मोद= प्रसन्नता।]

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    विषय

    दुन्दुभि या युद्धवीर राजा का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (दुन्दुभे) विजय के नारे ! (पूर्वः) तू युद्ध से पूर्व बजाया जाता है। हे राजन् ! (भूम्याः पृष्ठे) भूमि की पीठ पर तू (वाचं) वाणी (प्र वदासि) बोलता है, आज्ञाएं देता है। तू (रोचमानः) अति शोभायमान होकर (वद) आज्ञा दे। और हे दुन्दुभे ! या राजन् ! तू अपने विजय घोष से अमित्र - सेनाम्) शत्रु की सेना को (अभि-भञ्जमानः) तोड़ता फोड़ता हुआ, (द्युमत्) चमत्कारकारी, (सूनृता-वत्) मनोहर वाणियों से युक्त संदेश को (वद) बतला।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। सपत्न सेनापराजयाय देवसेना विजयाय च दुन्दुभिस्तुतिः। १ जगती, २-१२ त्रिष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Clarion call for War and Victory

    Meaning

    O war drum, you are the first to send out the proclamation of battle. O heroic warrior and commander, inspired and exhilarated, brave and brilliant, here on this battlefield on earth, give the word of command. O declarant and commander, breaking through the enemy lines, proclaim the word of truth and right.

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    Translation

    O war-drum, you utter your voice first. Speak on the surface of earth shining brightly. Crushing the enemy’s army on alL the sides, O war-drum, may you speak loudly and pleasantly.

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    Translation

    This war-drum is the first-which utters the voice in the battle, let it roar exultantly on the surface of the earth and let it declare the message of victory pleasantly and distinctly crushing the army of the enemy.

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    Translation

    O Drum, thou art sounded before the commencement of the battle. O king, thou proclaimest thy orders in the world, speak forth exultantly. Crunching with might the army of the foemen, declare thy message pleasantly and clearly.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(पूर्वः) सर्वेषां प्रथमः सन् (दुन्दुभे) बृहड्ढक्के (प्र) प्रकर्षेण (वदासि) लेटि रूपम्। कथय (वाचम्) वाणीम् (भूम्याः) पृथिव्याः (पृष्ठे) तले (वद) कथय (रोचमानः) रुचियुक्तः (अमित्रसेनाम्) शत्रुसेनाम् (अभिजञ्जभानः) जभि नाशने−यङ्लुकि, शानच् अभितो भृशं नाशयन् (द्युमत्) अ० २।३५।४। यथा तथा स्पष्टरीत्या (वद) (दुन्दुभे) (सूनृतावत्) अ० ३।१२।२। सत्यप्रियवाग्योगेन ॥

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