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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 6/ मन्त्र 1
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आसुरी पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    स ध्रु॒वांदिश॒मनु॒ व्यचलत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । ध्रु॒वाम् । दिश॑म् । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् ॥६.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स ध्रुवांदिशमनु व्यचलत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । ध्रुवाम् । दिशम् । अनु । वि । अचलत् ॥६.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (ध्रुवाम्) नीची (दिशम् अनु) दिशा की ओर (वि अचलत्) विचरा ॥१॥

    भावार्थ - जब विद्वान् पुरुषपरमात्मा को नीची आदि दिशाओं में सर्वव्यापक और सर्वनियन्ता जानकर उसके उत्पन्नकिये पृथिवी आदि पदार्थों का तत्त्वज्ञान प्राप्त करता है, तब वह उनसे यथावत्उपकार लेकर सुख पाता है ॥१-३॥

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