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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 6/ मन्त्र 20
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नी अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    तं दिति॒श्चादि॑ति॒श्चेडा॑ चेन्द्रा॒णी चा॑नु॒व्यचलन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । दिति॑: । च॒ । अदि॑ति: । च॒ । इडा॑ । च॒ । इ॒न्द्रा॒णी । च॒ । अ॒नु॒ऽव्य᳡चलनम् ॥६.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं दितिश्चादितिश्चेडा चेन्द्राणी चानुव्यचलन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । दिति: । च । अदिति: । च । इडा । च । इन्द्राणी । च । अनुऽव्यचलनम् ॥६.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 20

    पदार्थ -
    (दितिः) दिति [खण्डितविकृति अर्थात् कार्यरूप नाशवान् सृष्टि] (च च) और (अदितिः) अदिति [अखण्डितप्रकृति अर्थात् जगत् की अविनाशी परमाणुरूप सामग्री] (च) और (इडा) इड़ा [प्राप्तियोग्य वेदवाणी] (च) और (इन्द्राणी) इन्द्राणी [इन्द्र अर्थात् जीव कीशक्ति] (तम्) उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे विचरे ॥२०॥

    भावार्थ - परमात्मा की अपार, अनादि और अनन्त शक्ति है, मनुष्य जितना-जितना खोजता है, उतना-उतना ही जगदीश्वरकी सृष्टि और परमाणुरूप सामग्री को अनादि अनन्त ही पाता जाता है और वेद द्वाराअपनी शक्ति बढ़ाता हुआ आनन्द मनाता चला चलता है ॥१९, २०, २१॥

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