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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 6/ मन्त्र 11
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नी त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    तमि॑तिहा॒सश्च॑पुरा॒णं च॒ गाथा॑श्च नाराशं॒सीश्चा॑नु॒व्यचलन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । इ॒ति॒ह॒ऽआ॒स: । च॒ । पु॒रा॒णम् । च॒ । गाथा॑: । च॒ । ना॒रा॒शं॒सी: । च॒ । अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन् ॥६.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तमितिहासश्चपुराणं च गाथाश्च नाराशंसीश्चानुव्यचलन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । इतिहऽआस: । च । पुराणम् । च । गाथा: । च । नाराशंसी: । च । अनुऽव्यचलन् ॥६.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 11

    पदार्थ -
    (इतिहासः) इतिहास [बड़े लोगों का वृत्तान्त] (च च) और (पुराणम्) पुराण [पुराने लोगों कावृत्तान्त] (च) और (गाथाः) गाथाएँ [गाने योग्य वेदमन्त्र, शिक्षाप्रद श्लोकआदि] (च) और (नाराशंसीः) नाराशंसी [वीर नरों की गुणकथाएँ] (तम्) उस [व्रात्यपरमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे चलीं ॥११॥

    भावार्थ - जो मनुष्य परमात्मा केगुण कर्म स्वभाव के साथ उत्तम मनुष्यों के गुण कर्म स्वभाव का उपदेश करता है, वहइतिहास पुराण आदि द्वारा कीर्ति पाता है ॥१०, ११, १२॥मन्त्र १०-१२ महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका वेदसंज्ञाविचार पृष्ठ ८२ में उद्धृत हैं ॥

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