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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 6/ मन्त्र 10
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आसुरी बृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    स बृ॑ह॒तींदिश॒मनु॒ व्यचलत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । बृ॒ह॒तीम् । दिश॑म् । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् ॥६.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स बृहतींदिशमनु व्यचलत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । बृहतीम् । दिशम् । अनु । वि । अचलत् ॥६.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 10

    पदार्थ -
    (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (बृहतीम्) बड़ी (दिशम् अनु) दिशा की ओर (वि अचलत्) विचरा ॥१०॥

    भावार्थ - जो मनुष्य परमात्मा केगुण कर्म स्वभाव के साथ उत्तम मनुष्यों के गुण कर्म स्वभाव का उपदेश करता है, वहइतिहास पुराण आदि द्वारा कीर्ति पाता है ॥१०, ११, १२॥मन्त्र १०-१२ महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका वेदसंज्ञाविचार पृष्ठ ८२ में उद्धृत हैं ॥

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