Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 6/ मन्त्र 21
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आर्ची बृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    दिते॑श्च॒ वै सोऽदि॑ते॒श्चेडा॒याश्चे॑न्द्रा॒ण्याश्च॑ प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दिते॑: । च॒ । वै । स: । अदि॑ते: । च॒ । इडा॑या: । च॒ । इ॒न्द्रा॒ण्या: । च॒ । प्रि॒यम् । धाम॑ । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥६.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दितेश्च वै सोऽदितेश्चेडायाश्चेन्द्राण्याश्च प्रियं धाम भवति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दिते: । च । वै । स: । अदिते: । च । इडाया: । च । इन्द्राण्या: । च । प्रियम् । धाम । भवति । य: । एवम् । वेद ॥६.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 21

    पदार्थ -
    (सः) वह [विद्वान्]पुरुष (वै) निश्चय करके (दितेः) दिति [नाशवान् सृष्टि] का (च च) और (अदितेः) [अदिति अविनाशी परमाणुरूप सामग्री] का (च) और (इडायाः) इड़ा [वेदवाणी] का (च)और (इन्द्राण्याः) इन्द्राणी [जीव की शक्ति] का (प्रियम्) प्रिय (धाम) धाम [घर] (भवति) होता है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥२१॥

    भावार्थ - परमात्मा की अपार, अनादि और अनन्त शक्ति है, मनुष्य जितना-जितना खोजता है, उतना-उतना ही जगदीश्वरकी सृष्टि और परमाणुरूप सामग्री को अनादि अनन्त ही पाता जाता है और वेद द्वाराअपनी शक्ति बढ़ाता हुआ आनन्द मनाता चला चलता है ॥१९, २०, २१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top