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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 187 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 187/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - ओषधयः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    उप॑ नः पित॒वा च॑र शि॒वः शि॒वाभि॑रू॒तिभि॑:। म॒यो॒भुर॑द्विषे॒ण्यः सखा॑ सु॒शेवो॒ अद्व॑याः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । नः॒ । पि॒तो॒ इति॑ । आ । च॒र॒ । शि॒वः । शि॒वाभिः॑ । ऊ॒तिऽभिः॑ । म॒यः॒ऽभुः । अ॒द्वि॒षे॒ण्यः । सखा॑ । सु॒ऽशेवः॑ । अद्व॑याः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उप नः पितवा चर शिवः शिवाभिरूतिभि:। मयोभुरद्विषेण्यः सखा सुशेवो अद्वयाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप। नः। पितो इति। आ। चर। शिवः। शिवाभिः। ऊतिऽभिः। मयःऽभुः। अद्विषेण्यः। सखा। सुऽशेवः। अद्वयाः ॥ १.१८७.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 187; मन्त्र » 3
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे पितो मयोभुरद्विषेण्यः सुशेवोऽद्वयाः सखा त्वं शिवाभिरूतिभिस्सह शिवो न उपाचर ॥ ३ ॥

    पदार्थः

    (उप) (नः) अस्मभ्यम् (पितो) अन्नव्यापिन् (आ) समन्तात् (चर) प्राप्नुहि (शिवः) सुखकारी (शिवाभिः) सुखकारिणीभिः (ऊतिभिः) रक्षणादिक्रियाभिः (मयोभुः) सुखं भावुकः (अद्विषेण्यः) अद्वेष्टा (सखा) मित्रम् (सुशेवः) सुष्ठुसुखः (अद्वयाः) अविद्यमानं द्वयं यस्मिन् सः ॥ ३ ॥

    भावार्थः

    अन्नादिपदार्थव्यापकः परमेश्वर आरोग्यप्रदाभी रक्षणरूपाभिः क्रियाभिः सर्वान् सुहृद्भावेन संपालयन् सर्वेषां मित्रभूतो वर्त्तत एव ॥ ३ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (पितो) अन्नव्यापी परमात्मन् ! (मयोभुः) सुख की भावना करानेवाले (अद्विषेण्यः) निर्वैर (सुशेवः) सुन्दर सुखयुक्त (अद्वयाः) जिसमें द्वन्द्वभाव नहीं (सखा) जो मित्र आप (शिवाभिः) सुखकारिणी (ऊतिभिः) रक्षा आदि क्रियाओं के साथ (नः) हम लोगों के लिये (शिवः) सुखकारी (उप, आ, चर) समीप अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये ॥ ३ ॥

    भावार्थ

    अन्नादि पदार्थव्यापी परमेश्वर आरोग्य देनेवाली रक्षारूप क्रियाओं से सब जीवों को मित्रभाव से अच्छे प्रकार पालता हुआ सबका मित्र हुआ ही वर्त्त रहा है ॥ ३ ॥

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    विषय

    नीरोगता, निर्देषता

    पदार्थ

    १. हे पितो = रक्षक अन्न तू (शिवः) = कल्याणकर होता हुआ (शिवाभिः ऊतिभिः) = कल्याणकर रक्षणों के साथ (नः) = हमें (उप आचर) = [आगच्छ – सा०] समीपता से प्राप्त हो। हमें अन्न वही प्राप्त हो जो कि कल्याण करनेवाला है । (मयोभूः) = जो शरीर में नीरोगता के द्वारा सुख उत्पन्न करनेवाला तथा (अद्विषेण्यः) = मन में द्वेषादि की राजस वृत्तियों को पैदा न होने देनेवाला है। अन्न वही ठीक है जो कि नीरोगता के द्वारा शरीर को स्वस्थ रखता है तथा द्वेषादि से रहित करके मन को शान्त करता है। २. ऐसा अन्न वस्तुतः (सखा) = मित्र होता है, मित्रवत् हितकारी होता है, (सुशेवः) = उत्तम सुख देनेवाला होता है, (अद्वयाः) = यह अन्न हमें आधि और व्याधि दोनों से ऊपर उठानेवाला होता है [न द्वयं यस्मात्] ।

    भावार्थ

    भावार्थ – अन्न वही ठीक है जोकि शरीर को नीरोग व मन को निर्मल बनाए । राजस अन्न शरीर में रोग पैदा करता है और मन में द्वेषादि वृत्तियों को । सात्त्विक अन्न हमें नीरोग व निर्देष बनाता है।

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    विषय

    अन्नवत् पालक प्रभु की उपासना।

    भावार्थ

    हे (पितो) पालक ! तु (शिवः) अति कल्याणकारी होने से ‘शिव’ है, तू ( शिवाभिः ) सुखदायी ( ऊतिभिः ) रक्षा, तृप्ति, प्रीति, कान्ति, दीप्ति, वृद्धि, श्रुति, आदि उपायों से (नः आचर) हमें प्राप्त होता। कैसा है ? तू (मयोभुः) सुख आनन्द का एक मात्र उत्पत्तिस्थान,आनन्द की जननी है । तू (अद्विषेण्यः) कभी द्वेष न करने हारा और द्वेष न करने योग्य, सबका प्यारा (सखा) मित्र (सुशेवः) उत्तम सुखस्वरूप (अद्वयाः) दो के भेद से रहित अर्थात् अनन्य, अद्वितीय है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्य ऋषिः॥ ओषधयो देवता॥ छन्दः- १ उष्णिक् । ६, ७ भुरिगुष्णिक् । २, ८ निचृद गायत्री । ४ विराट् गयात्री । ९, १० गायत्री च । ३, ५ निचृदनुष्टुप् । ११ स्वराडनुष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    अन्न इत्यादी पदार्थात व्यापक असलेला परमेश्वर आरोग्य देणाऱ्या रक्षणरूपी क्रियांनी सर्व जीवांचे मित्रभावाने चांगल्या प्रकारे पालन करीत सर्वांचा मित्र बनून विद्यमान आहे. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Lord pervasive of food and nourishment, come and bless us. Kind and gracious as you are, bless us with the protections of your benign favours. Giver of peace and comfort, free from hate and anger, friendly, lover of lovers and devotees, free from duality, conflict or contradiction, come and be with us, forsake us not.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    God is friendly to human beings by giving good meals.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Come to us, O God! you are master and skilled in giving and preparing meals. It gives happiness and is the source of delight, loving, and well-wishers. Well respected and matchless, you provide it auspicious power of protection.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    NA

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    God is existent in all materials of meals as well as in everything else in the world. It provides support that makes us healthy and thus is always our true friend.

    Foot Notes

    (पिती) अन्नव्यापिन् परमात्मान् = O God pervading in the meals.

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