ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 187/ मन्त्र 9
यत्ते॑ सोम॒ गवा॑शिरो॒ यवा॑शिरो॒ भजा॑महे। वाता॑पे॒ पीव॒ इद्भ॑व ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ते॒ । सो॒म॒ । गोऽआ॑शिरः । यव॑ऽआशिरः । भजा॑महे । वाता॑पे । पीवः॑ । इत् । भ॒व॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्ते सोम गवाशिरो यवाशिरो भजामहे। वातापे पीव इद्भव ॥
स्वर रहित पद पाठयत्। ते। सोम। गोऽआशिरः। यवऽआशिरः। भजामहे। वातापे। पीवः। इत्। भव ॥ १.१८७.९
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 187; मन्त्र » 9
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे सोम गवाशिरो यवाशिरस्ते यत्सेव्यमंशं वयं भजामहे। तस्मात् हे वातापे पीव इद्भव ॥ ९ ॥
पदार्थः
(यत्) (ते) तस्य (सोम) यवाद्योषधिरसव्यापिन् ईश्वर (गवाशिरः) गोरससंस्कर्त्ता च (यवाशिरः) यवाद्योषधिसंयोगेन संस्कृतस्य (भजामहे) सेवामहे (वातापे) वातवत्सर्वव्यापिन् (पीवः) प्रवृद्धिकरः (इत्) एव (भव) ॥ ९ ॥
भावार्थः
यथा जना अन्नादिपदार्थेषु तत्तत्पाकक्रियानुकूलान् सर्वान् संस्कारान कुर्वन्ति तथा रसानपि रसोचितसंस्कारैः संपादयन्तु ॥ ९ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (सोम) यवादि ओषधि रसव्यापी ईश्वर ! (गवाशिरः) गौ के रस से बनाये वा (यवाशिरः) यवादि ओषधियों के संयोग से बनाये हुए (ते) उस अन्न के (यत्) जिस सेवनीय अंश को हम लोग (भजामहे) सेवते हैं उससे, हे (वातापे) पवन के समान सब पदार्थों में व्यापक परमेश्वर ! (पीवः) उत्तम वृद्धि करनेवाले (इत्) ही (भव) हूजिये ॥ ९ ॥
भावार्थ
जैसे मनुष्य अन्नादि पदार्थों में उन उन की पाकक्रिया के अनुकूल सब संस्कारों को करते हैं, वैसे रसों को भी रसोचित संस्कारों से सिद्ध करें ॥ ९ ॥
विषय
गवाशिर, यवाशिर
पदार्थ
१. भोजन दो भागों में बँटे हुए हैं- कुछ सौम्य भोजन हैं और कुछ आग्नेय । सौम्य भोजन ही दीर्घजीवन के लिए अधिक उपयुक्त हैं। आग्नेय पदार्थ सामान्यतः औषधरूपेण विनियुक्त होते हैं । हे (सोम) = सौम्य भोजन ! यत् जो (ते) = तेरा (गवाशिरः) = गोदुग्ध के साथ परिपक्व किये गये का अथवा (यवाशिरः) = जौ के साथ परिपक्व किये गये का (यजामहे) = हम सेवन करते हैं तो हे (वातापे) = वायु से आप्यायित होनेवाले शरीर ! (इत्)= निश्चय से (पीवः) = अङ्ग-प्रत्यङ्गों में आप्यायित (भव) हो। २. वनस्पतियों में भी आग्नेय भोजनों की अपेक्षा सौम्य भोजन ही ठीक हैं। सौम्य भोजन भी गोदुग्ध या जौ के साथ परिपक्व किये गये हों तभी ठीक हैं।
भावार्थ
भावार्थ – गवाशिर व यवाशिर सौम्य भोजन ही ठीक हैं ।
विषय
अन्नवत् पालक प्रभु की उपासना।
भावार्थ
हे ( सोम ) सोम ! ओषधे ! ( यत् ) जो ( ते ) तेरा ( गवाशिरः ) गौ के दूध से मिला और (यवाशिरः) जौ आदि से मिला रस है उसको हम ( भजामहे ) सेवन करें हे ( वातापे ) हे वायु अर्थात् प्राण से पुष्ट होने वाले देह ! तू ( पीवः इत् भव ) परिपुष्ट हो । अथवा हे ( सोम ) सर्वोत्पादक प्रभो ! तू ( पीवः इत्भव ) हमारा पोषक हो । (२) हे (सोम) राजन् ! (गवाशिरः, यवाशिरः) भूमि और अन्नादि के बल से शत्रुओं का नाश करने वाले सैन्य बल को हम विभक्त करते हैं अतः तू पुष्ट हो, राष्ट्र को पुष्टिकारक हो । अथवा गौ आज्ञा, वाणी, और यव अर्थात् छेदक भेदक अस्र इनके बल से शत्रु के हिंसक बल का सेवन करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्य ऋषिः॥ ओषधयो देवता॥ छन्दः- १ उष्णिक् । ६, ७ भुरिगुष्णिक् । २, ८ निचृद गायत्री । ४ विराट् गयात्री । ९, १० गायत्री च । ३, ५ निचृदनुष्टुप् । ११ स्वराडनुष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जशी माणसे अन्न इत्यादी पदार्थांवर पाकक्रिया करताना संस्कार करतात तसे रसांनाही रसोचित संस्काराने सिद्ध करावे. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Soma, lord and spirit of nourishment, health and peace, whatever we eat and drink of what is prepared with cow’s milk and barley, let us enjoy and, O universal lord pervasive in food and energy, let that be for our growth and advancement.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O God ! pervading like the air in the sap of different herbs plants and crops, like the barley, you give nutrients like milk etc. We enjoy the good meals properly cooked with the sap of barley etc. Grant strength to us. (Make us robust and healthy).
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
NA
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
In our meals to be taken, all ingredients should be suitable and easily digestible. They should use proper juices in their drinks.
Foot Notes
(सोम) यवाद्योषधिरसव्यापिन् ईश्वर ! = O God pervading in the sap of barley and other plants ! ( यवाशिरः ) यवाद्योषधिसंयोगेन संस्कृतस्य । = Prepared with the mixture of the juice of barley etc.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal