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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 187 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 187/ मन्त्र 7
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - ओषधयः छन्दः - भुरिगुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    यद॒दो पि॑तो॒ अज॑गन्वि॒वस्व॒ पर्व॑तानाम्। अत्रा॑ चिन्नो मधो पि॒तोऽरं॑ भ॒क्षाय॑ गम्याः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अ॒दः । पि॒तो॒ इति॑ । अज॑गन् । वि॒वस्व॑ । पर्व॑तानाम् । अत्र॑ । चि॒त् । नः॒ । म॒धो॒ इति॑ । पि॒तो॒ इति॑ । अर॑म् । भ॒क्षाय॑ । ग॒म्याः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यददो पितो अजगन्विवस्व पर्वतानाम्। अत्रा चिन्नो मधो पितोऽरं भक्षाय गम्याः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। अदः। पितो इति। अजगन्। विवस्व। पर्वतानाम्। अत्र। चित्। नः। मधो इति। पितो इति। अरम्। भक्षाय। गम्याः ॥ १.१८७.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 187; मन्त्र » 7
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे पितो यददो पितोऽन्नं विद्वांसोऽजगन् तत्र विवस्व। हे मधो पितो अत्र चित् पर्वतानां मध्ये नो भक्षायाऽन्नमरं गम्याः ॥ ७ ॥

    पदार्थः

    (यत्) (अदः) तत्। अत्र वाच्छन्दसीत्यप्राप्तमप्युत्वम्। (पितो) (अजगन्) गच्छन्ति (विवस्व) विशेषेण वस। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (पर्वतानाम्) मेघानाम् (अत्र) अस्मिन्। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (चित्) अपि (नः) अस्माकम् (मधो) मधुर (पिता) पालकान्नदातः (अरम्) अलम् (भक्षाय) भोजनाय (गम्याः) प्रापयेः ॥ ७ ॥

    भावार्थः

    सर्वेषु पदार्थेषु व्याप्तं परमेश्वरं भक्षणादिसमये संस्मरेद्यस्य परमात्मनो हि कृपयान्नानि विविधानि सर्वत्र दिग्देशकालानुकूलानि वर्त्तन्ते तं परमात्मानमेव संस्मृत्य सर्वे पदार्था ग्रहीतव्या इति ॥ ७ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (पितो) अन्नव्यापिन् पालकेश्वर ! (यत्) जिस (अदः) प्रत्यक्ष अन्न को विद्वान् जन (अजगन्) प्राप्त होते हैं उसमें (विवस्व) व्याप्तिमान् हूजिये। हे (मधो) मधुर (पितो) पालकान्नदाता ईश्वर ! (अत्र, चित्) इन (पर्वतानाम्) मेघों के बीच भी जो कि अन्न के निमित्त कहे हैं (नः) हमारे (भक्षाय) भक्षण करने के लिये अन्न को (अरम्) परिपूर्ण (गम्याः) प्राप्त कराइये ॥ ७ ॥

    भावार्थ

    सब पदार्थों में व्याप्त परमेश्वर को भक्षण आदि समय में स्मरण करे, जिस कारण जिस परमात्मा की कृपा से अन्नादि पदार्थ विविध प्रकार के पूर्वादि दिशा, देश और काल के अनुकूल वर्त्तमान हैं, उस परमात्मा ही का संस्मरण कर सब पदार्थ ग्रहण करने चाहियें ॥ ७ ॥

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    विषय

    मेघ-जल से उत्पन्न अन्न

    पदार्थ

    १. हे (पितो) = अन्न ! (यत्) = जब तू (विवस्व) = [विवासनवतां विद्युद्रूपप्रकाशनवताम्- सा०] विद्युद्रूप प्रकाशवाले (पर्वतानाम्) = मेघों के (अदः) = उस प्रसिद्ध अमृतजल को (अजगन्) = प्राप्त होता है तो (अत्र) = यहाँ, इस जीवन में (चित्) = निश्चय से (न:) = हमें (भक्षाय) = खाने के लिए (अरम्) = पर्याप्त (मधो पितो) = हे सारभूत अन्न ! तू (गम्याः) = प्राप्त हो । २. मेघ-जल से उत्पन्न अन्न अधिक गुणकारी हैं। मेघजल 'अमृत' है। उससे उत्पन्न अन्न भी अमृत है। मात्रा में यह अन्न सम्भवतः कम होगा, पर गुणों में यह अन्न अत्यन्त उत्कृष्ट है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम मेघजल से उत्पन्न अन्नों का सेवन करनेवाले बनें ।

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    विषय

    अन्नवत् पालक प्रभु की उपासना।

    भावार्थ

    हे (पितो) पालक प्रभो ! तू (पर्वतानां) पालन करने वाले मेघ, विद्युत्, पर्वत, अन्न, आदि सभी पदार्थों में (वि वस्व) अन्न के समान विविध रूपों में विद्यमान है। इसी लिये हे प्रभो ! (अदः) उस अदृश्य, सर्वव्यापक तुझको (अजगन्) उन पदार्थों में तुझे ही भी प्राप्त करते हैं । हे (मधो) आनन्दमय ! हे प्रकृति मधुर ! हे (पितो) पालक अन्न के समान हृदय के तृप्तिकारक ! तू (अत्र चित्) यहां इस लोक में, इस जन्म में, इस हृदय में भी (नः) हमारे (भक्षाय) खाने वा तृप्ति के लिये (अरं गम्याः) खूब पदार्थ प्राप्त करा। अथवा तू स्वयं (भक्षाय) उपभोग या सेवन के लिये खूब हमें प्राप्त हो । हम तेरा नित्य सेवन और भजन करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्य ऋषिः॥ ओषधयो देवता॥ छन्दः- १ उष्णिक् । ६, ७ भुरिगुष्णिक् । २, ८ निचृद गायत्री । ४ विराट् गयात्री । ९, १० गायत्री च । ३, ५ निचृदनुष्टुप् । ११ स्वराडनुष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सर्व पदार्थात व्याप्त असलेल्या परमेश्वराचे भोजन इत्यादी करताना स्मरण करावे. परमेश्वराच्या कृपेने अन्न इत्यादी पदार्थ, विविध प्रकारच्या पूर्व इत्यादी दिशा, देश, काळ विद्यमान आहेत. त्या परमेश्वराचे संस्मरण करून सर्व पदार्थांचे ग्रहण करावे. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O spirit pervasive and food of energy in the process of nature’s metabolism, when the clouds move, be there in them, enrich and energise them and, then, O honey sweet food of life, come here down from the clouds and be with us for us to our heart’s desire.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Remember God when take your meals.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Omnipresent God! you give us the food. Be established in the hearts of those wisemen, who know the qualities of proper food, such people dwell happily on earth. O Sweet Protector and Giver of food! grant us sufficient food for our maintenance through the clouds (rains) which produce vast crops.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    NA

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    One should always remember Omnipresent God at the time of taking meals, by whose grace, all crops and food grains become worth of eating. One should begin to take suitable good food only after remembering and thanking God.

    Foot Notes

    (पर्वतानाम्) मेघानाम् । पर्वत इति मेघानाम् (N.G. 1-10)= Of the clouds. (पितो ) पालकान्नदातः । पितुरित्यन्ननाम (N.G. 2-7) = O protector, Giver of food.

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