ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 53/ मन्त्र 2
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - पूषा
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒भि नो॒ नर्यं॒ वसु॑ वी॒रं प्रय॑तदक्षिणम्। वा॒मं गृ॒हप॑तिं नय ॥२॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । नः॒ । नर्य॑म् । वसु॑ । वी॒रम् । प्रय॑तऽदक्षिणम् । वा॒मम् । गृ॒हऽप॑तिम् । न॒य॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि नो नर्यं वसु वीरं प्रयतदक्षिणम्। वामं गृहपतिं नय ॥२॥
स्वर रहित पद पाठअभि। नः। नर्यम्। वसु। वीरम्। प्रयतऽदक्षिणम्। वामम्। गृहऽपतिम्। नय ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 53; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ स्त्रीपुरुषैः किमेष्टव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे पूषंस्त्वं नः प्रयतदक्षिणं नर्यं वसु वामं वीरं गृहपतिं चाभि नय ॥२॥
पदार्थः
(अभि) आभिमुख्ये (नः) अस्मान् (नर्यम्) नृषु साधु (वसु) धनम् (वीरम्) शुभलक्षणान्वितं पुरुषम् (प्रयतदक्षिणम्) प्रयताः प्रयत्नेन दत्ता दक्षिणा यस्मात्तत् (वामम्) प्रशस्तम् (गृहपतिम्) गृहस्वामिनम् (नय) प्रापय ॥२॥
भावार्थः
हे विद्वन् विदुषी वा ! त्वमस्मदर्थमुत्तमं पतिमुत्तमां भार्यां प्रशस्तं धनं प्रापय्य सुशिक्षया धर्म्माचारं प्रापय ॥२॥
हिन्दी (4)
विषय
अब स्त्रीपुरुषों को क्या चाहने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे पुष्टि करनेवाले ! आप (नः) हम लोगों को (प्रयतदक्षिणम्) जिससे प्रयत्नपूर्वक दक्षिणा दी गई उस (नर्यम्) मनुष्यों में उत्तम (वसु) धन और (वामम्) प्रशंसित (वीरम्) शुभलक्षणयुक्त पुरुष को (गृहपतिम्) गृहस्वामी को भी (अभि, नय) सब ओर से पहुँचाओ ॥२॥
भावार्थ
हे विद्वन् वा विदुषी ! आप हम लोगों के लिये उत्तम पति, उत्तम भार्या, प्रशंसित धन की प्राप्ति करा के उत्तम शिक्षा से धर्म्म आचरण की प्राप्ति कराइये ॥२॥
विषय
विद्वान् राजा ।
भावार्थ
हे विद्वन् ! राजन् ! तू ( नः ) हमें ( नर्यं ) मनुष्यों का हितकारी, (वीरं) वीर (प्रयत-दक्षिणम्) उत्तमसंपत्-बलवीर्य से युक्त, (वामं) सेवा करने योग्य ( गृहपतिं) गृह स्वामी और (नर्यं) मनुष्यों के हित, ( वीरं ) विविध कष्टों को दूर करने वाले, ( प्रयत-दक्षिणं ) खूब दान दक्षिणा देने योग्य, (वामं) सुन्दर, सुखकर, ( गृहपतिम् ) गृह के पालक ( वसु ) धन को भी ( नः ) हमें ( अभि नय ) प्राप्त करा ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः १, ३, ४, ६, ७, १० गायत्री । २, ५, ९ निचृद्गायत्री । ८ निचृदनुष्टुप् ।। दशर्चं सूक्तम् ।।
विषय
'नर्यं' वसु [कौन धन ?]
पदार्थ
[१] हे प्रभो ! (नः) = हमारे लिये (वसु अभिनय) = निवास के लिये आवश्यक उस धन को प्राप्त कराइये जो (नर्यम्) = नरहितकारी हो, (वीरम्) [वि ईर] = शत्रुओं को कम्पित करके दूर भगानेवाला हो, (प्रयतदक्षिणम्) = पवित्र दानवाला हो। [२] उस धन को प्राप्त कराइये जो (वामम्) = सुन्दर हो, सुन्दर गुणों को जन्म देनेवाला हो अथवा सुन्दर साधनों से कमाया गया हो। तथा (गृहपतिम्) = सब आवश्यकताओं को पूर्ण करके घर का रक्षण करनेवाला हो ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमें वह धन प्राप्त करायें जो नरहितकारी शत्रु- कम्पक पवित्र दानवाला सुन्दर व गृहरक्षक हो ।
मन्त्रार्थ
(यत्र-आजा) जिस संग्राम में'आजा-आजौ-सप्तम्यामाकारादेशश्छान्दसः' “आजौ संग्रामनाम" (निघं० २।१७) (कृतध्वज:नरः-समयन्ते) 'कृतध्वजः-अधिकृतध्वजः' ध्वज पताकाएँ अपने हाथों में दृढ पकडे हुए भिन्न भिन्न दलनायक जन सम्यक् चलते. हैं 'मार्च करते हैं' (यस्मिन् किंचन प्रियं भवति) जिस संग्राम में कुछ भी प्रिय- अनुकूल लक्ष्य होता है-संग्राम अन्यथा नहीं किया जाता है अन्यथा नहीं लडना चाहिए अपितु अपना विरोधी होने अपने को हानि पहुँचाने या उसकी प्रजा दुःखी होने उसके घोर पापी अत्याचार होने पर संग्राम करना होता है (यत्र भुवना स्वर्दश:-भयन्ते) जहाँ प्राणी साधारणजन एवं मोक्षदर्शी ऋषि भी डरते हैं ऐसे पर राष्ट्र में अपने राष्ट्र में भी (तत्र इन्द्रावरुणा नः - अधिवोचतम्) उस संग्राम के निमित्त सेनानायक और सभाध्यक्ष हम से संग्राम करने का आदेश दें ॥२॥
विशेष
ऋषि:- भरद्वाजः (अन्नादि का धारणकर्त्ता व्यापारी कृषक) देवता- पूषा (आधिदैविक क्षेत्र) में सूर्य- 'अथ यद् रश्मिपोषं पुष्यति तत् पूषा भवति' (निरु० १२।१६) आधिभौतिक क्षेत्र में पशुखाद्ययातायातमन्त्री "पूषा वै पशूनामीष्टे” (शत० १३|३|८|२), "पूषा वै पथीनामधिपतिः” (शत० १३।४।१।४४)
मराठी (1)
भावार्थ
हे विद्वान किंवा विदुषींनो ! तुम्ही आम्हाला उत्तम पती व उत्तम भार्या, प्रशंसित धन यांची प्राप्ती करवून द्या व सुशिक्षणाने धर्माचरणी बनवा. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Take us to a plentiful home and gracious master, a brave leader of men and generous giver of the gifts of life’s wealth.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should men and women desire-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O nourisher ! lead us to that wealth from all sides which contains guerdon, which is beneficial to all men and to an admirable master of the house, who is a heroic and virtuous man.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O highly learned man/woman! help us to get a good wife/husband, good wealth and righteous conduct by giving us good education.
Foot Notes
(वामम्) प्रशस्तम् । वाम इति प्रशस्यनाम (NG 3, 8) अर्तिस्तु सुहसृधृक्षिक्षुभायावा पदियक्षिनीभ्यो मन् (उष्णादि कोषे 1, 140 ) इति वा-गति गन्धनयो: धातोः मन् प्रत्ययः । = Admirable, very good.
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