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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 53/ मन्त्र 4
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - पूषा छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    वि प॒थो वाज॑सातये चिनु॒हि वि मृधो॑ जहि। साध॑न्तामुग्र नो॒ धियः॑ ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि । प॒थः । वाज॑ऽसातये । चि॒नु॒हि । वि । मृधः॑ । ज॒हि॒ । साध॑न्ताम् । उ॒ग्र॒ । नः॒ । धियः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वि पथो वाजसातये चिनुहि वि मृधो जहि। साधन्तामुग्र नो धियः ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वि। पथः। वाजऽसातये। चिनुहि। वि। मृधः। जहि। साधन्ताम्। उग्र। नः। धियः ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 53; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

    अन्वयः

    हे उग्र सेनेश ! त्वं वाजसातये पथो वि चिनुहि मृधो वि जहि यतो नो धियः कार्याणि साधन्ताम् ॥४॥

    पदार्थः

    (वि) (पथः) मार्गात् (वाजसातये) विज्ञानस्य धनस्य वा प्राप्तयेऽथवा सङ्ग्रामाय (चिनुहि) सञ्चयं कुरु (वि) विशेषेण (मृधः) सङ्ग्रामेषु प्रवृत्तान् दुष्टान् (जहि) (साधन्ताम्) साध्नुवन्तु (उग्र) तेजस्विन् (नः) अस्माकम् (धियः) प्रज्ञाः ॥४॥

    भावार्थः

    हे राजँस्त्वमुत्तमान्निर्भयान् मार्गान् विधेहि तत्र परिपन्थिनो हिन्धि, येन सर्वेषां प्रज्ञा उत्तमकर्मोन्नतये प्रवर्त्तेरन् ॥४॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (उग्र) तेजस्वी सेनापति ! आप (वाजसातये) विज्ञान वा धन की प्राप्ति वा सङ्ग्राम के लिये (पथः) मार्ग से (वि, चिनुहि) सञ्चय करो तथा (मृधः) सङ्ग्रामों में प्रवृत दुष्टों को (वि, जहि) विशेषता से मारो जिससे (नः) हमारी (धियः) बुद्धियाँ कार्यों को (साधन्ताम्) सिद्ध करें ॥४॥

    भावार्थ

    हे राजन् ! आप उत्तम निर्भय मार्गों को बनाओ, उन में विपथगामियों को मारो, जिससे सब की बुद्धि उत्तम कर्मों की उन्नति करने के लिये प्रवृत्त हों ॥४॥

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    विषय

    दुष्टों का दमन ।

    भावार्थ

    हे विद्वन् ! तू ( वाज-सातये ) ज्ञान, ऐश्वर्य और बल को प्राप्त करने के लिये ( पथः ) उत्तम मार्गों को ( वि चिनुहि ) खोज । ( मृधः ) हिंसाकारियों को (वि जहि) विविध प्रकार से दण्डित कर । हे ( उग्र ) बलवन् ! ( नः ) हमारी ( धियः ) बुद्धियां और कर्म ( साधन्ताम् ) उत्तम कर्म और फलों को सिद्ध करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः १, ३, ४, ६, ७, १० गायत्री । २, ५, ९ निचृद्गायत्री । ८ निचृदनुष्टुप् ।। दशर्चं सूक्तम् ।।

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    विषय

    उत्तम मार्गों से धन प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] हे (उग्र) = उदूर्ण बल [पूषन्-] पोषक प्रभो! (पथ:) = मार्गों को (वाजसातये) = शक्ति व धनों की प्राप्ति के लिये (विचिनुहि) = शोधित करिये। जिन मार्गों से चलकर धनों को प्राप्त करें उन मार्गों को हमारे लिये पृथक् करिये, अलग विस्पष्टरूप में दिखाइये। (मृधः) = बाधक शत्रुओं को (विजहि =) विनष्ट करिये। [२] हे प्रभो ! (नः) = हमारे (धियः) = बुद्धिपूर्वक किये गये कर्म (साधन्ताम्) = सिद्धि को प्राप्त हों। इन ज्ञानपूर्वक किये गये कर्मों से हम उचित धनों का अर्जन करनेवाले हों।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु हमें शक्ति के देनेवाले मार्गों को दिखायें। बाधक शत्रुओं को दूर करें । प्रभु कृपा से हमारे बुद्धिपूर्वक किये गये कर्म सफल हों।

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    मन्त्रार्थ

    (इन्द्रावरुणा) हे सेनानायक और सेनाध्यक्ष! 'तुम (वधनाभिः) वधक क्रियाओं से (प्रति भेदं वन्वन्ता) शत्रुओं में प्रतिगत-अप्रत्यक्ष-अप्रकट भेद को प्रकाशित करते हुए या प्रति प्राप्त भेद को चाहते हुए "वनोति कान्तिकर्मा" (निघं० २।६) (सुदासं प्रावतम्) अच्छे सुखदाता राजा की रक्षा करो (हवीर्मानि तृस्सुनां सत्या ब्रह्माणि शृणुतम्) स्पर्धास्थल संग्राम में इन हमारे पक्षवाले शत्रुहिंसक सैनिकों के "तृदिर् हिंसायाम्" (स्वादि०) भावनारूप वचनों को सुनो “वाग् वै ब्रह्म" (ऐ० २।१५) (पुरोहितिः सत्या-अभवत्) तुम्हारी पुरोगामिता सत्य सफल हो ॥४॥

    विशेष

    ऋषि:- भरद्वाजः (अन्नादि का धारणकर्त्ता व्यापारी कृषक) देवता- पूषा (आधिदैविक क्षेत्र) में सूर्य- 'अथ यद् रश्मिपोषं पुष्यति तत् पूषा भवति' (निरु० १२।१६) आधिभौतिक क्षेत्र में पशुखाद्ययातायातमन्त्री "पूषा वै पशूनामीष्टे” (शत० १३|३|८|२), "पूषा वै पथीनामधिपतिः” (शत० १३।४।१।४४)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा ! तू उत्तम निर्भय मार्ग बनव. विपथगामी लोकांना दंड दे. ज्यामुळे सर्वांच्या बुद्धीत उत्तम कर्माची वाढ होण्याची प्रवृत्ती निर्माण व्हावी. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O resplendent leader and master of life force, select and secure for us the paths of advancement to energy and success, cast off the obstructions, and lead our plans and programmes of action to success.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should a man do-is again told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O commander of the army ! you are full of splendor, for the attainment knowledge, science, wealth or battle, construct good roads or highways. Kill the wicked persons bent upon fighting in the battles, so that our intellects may be engaged in the accomplishment of good work.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O king ! order to construct safe, (protected) and good roads and kill the wicked robbers and thieves etc., so that the intellects of all may be engaged in the advancement of good deeds.

    Foot Notes

    (वाजसातये) विज्ञानस्य धनस्य वा प्राप्तयेऽथवा सङ्ग्रामाय । वाज इति वज-धातोः वज-गतौ गते स्विष्यर्थेषु अत्र-ज्ञानार्थं ग्रहणम् सुखप्रापकं धनं वा प्राप्त्यर्थमादाय वाजसातौ इति सङ्ग्रामनाम (NG 2, 17 ) । = For attaining knowledge, wealth or battle. (मृधः) सङ्ग्रामेषु । प्रवृत्तान्दुष्टान् । मृध इति संग्रामनाम (NG 2, 17 )। = The wicked engaged in battles.

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