ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 53/ मन्त्र 7
आ रि॑ख किकि॒रा कृ॑णु पणी॒नां हृद॑या कवे। अथे॑म॒स्मभ्यं॑ रन्धय ॥७॥
स्वर सहित पद पाठआ । रि॒ख॒ । कि॒कि॒रा । कृ॒णु॒ । प॒णी॒नाम् । हृद॑या । क॒वे॒ । अथ॑ । ई॒म् । अ॒स्मभ्य॑म् । र॒न्ध॒य॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ रिख किकिरा कृणु पणीनां हृदया कवे। अथेमस्मभ्यं रन्धय ॥७॥
स्वर रहित पद पाठआ। रिख। किकिरा। कृणु। पणीनाम्। हृदया। कवे। अथ। ईम्। अस्मभ्यम्। रन्धय ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 53; मन्त्र » 7
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥
अन्वयः
हे कवे ! त्वं पणीनां किकिराऽऽरिख दुष्टानां हृदया रन्धयाऽथाऽस्मभ्यमीं कृणु ॥७॥
पदार्थः
(आ) समन्तात् (रिख) लिख (किकिरा) व्यवस्थापत्राणि (कृणु) (पणीनाम्) व्यवहर्तॄणाम् (हृदया) हृदयानि (कवे) विद्वन् (अथ) (ईम्) सुखम् (अस्मभ्यम्) (रन्धय) ताडय ॥७॥
भावार्थः
राजा वादिप्रतिवादिनां लेखपुरस्सरं न्यायं कुर्यात् ॥७॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (कवे) विद्वन् ! आप (पणीनाम्) व्यवहार करनेवालों के (किकिरा) व्यवस्थापत्रों को (आ, रिख) सब ओर से लिखो तथा दुष्टों के (हृदया) हृदयों को (रन्धय) अति पीड़ा देओ (अथ) इसके अनन्तर (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (ईम्) सुख (कृणु) करो ॥७॥
भावार्थ
राजा वादी और प्रतिवादी अर्थात् झगड़ालु प्रतिझगड़ालूओं का लिखापढ़ी पूर्वक न्याय करे ॥७॥
विषय
व्यवहार पत्र लेखनादि का उपदेश ।
भावार्थ
हे ( कवे ) विद्वन् ! तू ( पणीनां ) व्यवहारवान् प्रजा के लोगों के ( किकिरा ) व्यवस्था पत्रों की छोटी बातों को भी ( आ रिख ) अवश्य लिख । ( अथ ) और ( हृदया) उनके हृदयों को ( ईम् ) सब प्रकार से ( अस्मभ्यम् ) हमारे ही हितार्थ ( रन्धय ) वश कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः १, ३, ४, ६, ७, १० गायत्री । २, ५, ९ निचृद्गायत्री । ८ निचृदनुष्टुप् ।। दशर्चं सूक्तम् ।।
विषय
किकिरा कृणु
पदार्थ
[१] हे (कवे) = क्रान्तप्रज्ञ विद्वन्! तू इस प्रकार ज्ञानोपदेश कर कि (पणीनाम्) = इन धनलुब्ध वणिजों के (हृदया) = हृदयों को (आरिख) = अवदारित कर दे। (किकिरा कृणु) = [कीर्णानि प्रशिथिलानि] इनके हृदयों को अवकीर्ण, प्रशिथिल व मृदु कर दे। [२] (अथ) = अब (ईम्) = निश्चय से इनके हृदयों को (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (रन्धय) = वशीभूत करिये ।
भावार्थ
भावार्थ- कवि के ज्ञानोपदेश से इन कृपणों के हृदय भी एक बार दहल जाएँ और वे भी दानवृत्ति की ओर झुक जायें ।
मन्त्रार्थ
(इन्द्रावरुणा) हे सेनानायक और सेनाध्यक्ष । (अयज्यवः-दश राजानः समिताः) यजंन न करने वाले पापी दश राजा मित्र का भी या अन्यत्र प्रयुक्त दशों दिशाओं के भौतिक देव मिलकर भी (सुदासं न युयुधुः) सुदास-उत्तम सुखदाता सकते तुम्हारे रक्षण में राजा को के साथ युद्ध नहीं कर (सदां नृणाम्-उपस्तुतिः सत्या) अन्न सम्भाग करने वालों-सबको समानभाव से खिलाने वालों “अद्मसद् अन्नसानी (निरु० ४।१६) मनुष्यों की प्रसिद्धि सफल होती है (एषां देवहूतिषु देवा:-अभवन्) देव-चेतन अचेतन देव इन की देवों को वे पुकार स्थलियों में सहायक होते हैं ॥७॥
विशेष
ऋषि:- भरद्वाजः (अन्नादि का धारणकर्त्ता व्यापारी कृषक) देवता- पूषा (आधिदैविक क्षेत्र) में सूर्य- 'अथ यद् रश्मिपोषं पुष्यति तत् पूषा भवति' (निरु० १२।१६) आधिभौतिक क्षेत्र में पशुखाद्ययातायातमन्त्री "पूषा वै पशूनामीष्टे” (शत० १३|३|८|२), "पूषा वै पथीनामधिपतिः” (शत० १३।४।१।४४)
मराठी (1)
भावार्थ
राजाने वादी व प्रतिवादींचा लिखित स्वरूपात न्याय करावा. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O creative lord of vision and foresight, write out the balance sheet of life’s hagglers and bargainers, touch their hearts, let them mature all round and let us be happy.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should a king do-is further told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O highly learned person! write down the traders' documents. Give punishment to or pierce the hearts of the wicked persons (so as to create repentance in them) and bestow happiness upon us--the righteous men.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
A king should record and judge the case of the petitioners and respondents.
Translator's Notes
It shows clearly that the science of writing is mentioned in the Rigveda-admittedly the oldest book in the library of mankind.
Foot Notes
(किकिरा) व्यवस्थापत्त्राणि |= Documents, deeds. (पणीनाम्) व्यवहर्तुंणाम् । पण व्यवहारे स्तुतो च (भ्वा.) अत्र व्यवहारार्थः । = Of traders or business men. (ईम्) सुखम्। ईम् इति पदनाम (NG 4, 2) गातेस्त्रिष्वर्थेषु प्राप्त्यर्थ ग्रहणं कृत्वा 'सुख प्रापकम' इति ग्रह्णम्। = Happiness.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal