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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 2
    ऋषिः - दुःस्वप्ननासन देवता - त्रिपदा निचृत गायत्री छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
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    तस्मा॑द॒मुंनिर्भ॑जामो॒ऽमुमा॑मुष्याय॒णम॒मुष्याः॑ पु॒त्रम॒सौ यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्मा॑त् । अ॒मुम् । नि: । भ॒जा॒म॒: । अ॒मुम् । आ॒मु॒ष्या॒य॒णम् । अ॒मुष्या॑: । पु॒त्रम् । अ॒सौ । य: ॥८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्मादमुंनिर्भजामोऽमुमामुष्यायणममुष्याः पुत्रमसौ यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्मात् । अमुम् । नि: । भजाम: । अमुम् । आमुष्यायणम् । अमुष्या: । पुत्रम् । असौ । य: ॥८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रु के नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (तस्मात्) उस [पद] से (अमुम्) अमुक, (अमुम्) अमुक पुरुष, (आमुष्यायणम्) अमुक पुरुष के सन्तान, (अमुष्याः) अमुक स्त्री के (पुत्रम्) पुत्र को (निः भजामः) हम भागरहित करते हैं, (असौ यः) वह जो [कुमार्गी] है ॥२॥

    भावार्थ

    विद्वान् धर्मवीर राजासुवर्ण आदि धन और सब सम्पत्ति का सुन्दर प्रयोग करे और अपने प्रजागण और वीरों कोसदा प्रसन्न रख कर कुमार्गियों को कष्ट देकर नाश करे ॥१-४॥

    टिप्पणी

    २−(तस्मात्)प्रसिद्धात्, पदात् (अमुम्) अमुकपुरुषम् (अमुम्) अमुकपुरुषम् (निर्भजामः)भागरहितं कुर्मः (आमुष्यायणम्) अमुकपुरुषस्य सन्तानम् (अमुष्याः) अमुकस्त्रियाः (पुत्रम्) सुतम् (असौ) (यः) कुमार्गी पुरुषः ॥

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    विषय

    जितम् उद्भिन्नम् मृतम्

    पदार्थ

    १. [क] (अस्माकं जितम्) = हमारी विजय हो-हम अन्त: व बाह्य शत्रुओं को जीतनेवाले बनें। इन शत्रुओं को जीतकर (उद्भिन्नम् अस्माकम्) = हमारा उत्थान हो। जिस प्रकार पृथिवी को विदीर्ण करके अंकुर ऊपर आ जाता है, उसी प्रकार हम शत्रुओं को विदीर्ण करके ऊपर उठनेवाले हों। (ऋतम् अस्माकम्) = शत्रुओं को पराजित करके हम ऋत को प्राप्त करें। हम अपनी सब भौतिक क्रियाओं में सूर्य-चन्द्र की भाँति ऋत का पालन करें। असमय में भोजनादि करने से रोगों के कारण हम मृत्यु का शिकार न हो जाएँ। [ख] (तेजः अस्माकम्, ब्रह्म अस्माकम्) = शत्रु-विजय के परिणामस्वरूप ही हमारा तेज हो और हमारा ज्ञान हो। यह शत्रु-विजय हमें शरीर में तेजस्वी बनाए और मस्तिष्क में ज्ञानदीप्त। [ग] तेजस्वी व ज्ञानदीप्त बनने पर (स्वः अस्माकम, यज्ञः अस्माकम्) = हमारे हृदय में आत्मप्रकाश हो तथा हमारे हाथों में यज्ञ हों। जहाँ हृदय में हम आत्मप्रकाश को देखें, वहाँ हाथों से सदा यज्ञों में प्रवृत्त रहें। [घ] अब इन यज्ञों के होने पर (अस्माकं पशवः, अस्माकं प्रजाः, अस्माकं वीरा:) = हमारे पास उत्तम पशु हों, हमारी सन्ताने उत्तम हों और हमारे सब पुरुष वीर हों। २. (तस्मात्) = अपनी प्रजाओं व वीरों को उत्तम बनाने के द्वारा (अमुम् निर्भजामः) = हम उस शत्रु को दूर भगा देते हैं, (आमुष्यायणम्) = जो अमुक गोत्र का है, (अमुष्या पुत्रम्) = अमुक का पुत्र है, (असौ य:) = जो वह है। ३. (स:) = वह हमारा शत्रु (ग्राह्या: पाशात्) = जकड़ लेनेवाले रोग के पाश से (मा मोचि) = मत छूटे। यह शत्रुता का भाव ही उसके इन रोगों का कारण बने। ४. (तस्य) = उसके (इदम्) = इस (वर्चः तेजः प्राणं आयु:) = वीर्य, बल, प्राणशक्ति व आयु को (निवेष्टयामि) = मैं वेष्टित किये लेता हूँ-घेर लेता हूँ और (इदम्) = [इदानीम्] अब (एनम्) = इसको (अधराञ्चं पादयामि) = नीचे गिरा देता हूँ-पाँव तले रौंद डालता हूँ। शत्रुओं को जीतकर ही सब प्रकार की उन्नति सम्भव है।

    भावार्थ

    इस जीवन में विजय व उन्नति को प्राप्त होते हुए हम ऋत का पालन करें। शरीर में तेजस्वी हों, मस्तिष्क में ज्ञानपूर्ण, हृदय में आत्मप्रकाशवाले व हार्थों में यज्ञोंवाले बनें। हमारे पशु, प्राण व वीर सब उत्तम हों। शत्रुओं को हम पराजित कर दूर भगा दें। वे शत्रु शत्रुता के कारण ही रोगों का शिकार हो जाएँ। उनके वीर्य, बल, प्राण व आयु को हम नष्ट कर सकें। उन्हें पराजित करके उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ें।

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    भाषार्थ

    (तस्मात्) उस विजित राष्ट्र१ से या उस की उस सम्पत्ति से, (अमुम्, अमुम्) उस उस व्यक्ति को अर्थात् (आमुष्यायणम्) उस-उस कुल या गोत्र के (अमुष्याः) तथा उस-उस माता के (पुत्रम्) पुत्र को (निर्भजामः) हम भाग रहित कर देते हैं, (असौ यः) वह जो हैः-

    टिप्पणी

    [१. Expatriation, देश निकाला। उसे उस के निज देश से निकाल देना, पृथक् कर देना।]

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    विषय

    विजयोत्तर शत्रुदमन।

    भावार्थ

    (अस्माकम् जितम्) हमारा विजय है। (अस्माकम् उद्भिन्नम्) हमारा ही यह फल उत्पन्न हुआ है। (ऋतम् अस्माकम्) यह अन्न और राष्ट्र हमारा है। (तेजः अस्माकम्) यह तेज, क्षात्रबल हमारा है। (ब्रह्म अस्माकम्) यह समस्त वेद और वेद के विद्वान् ब्राह्मण हमारे हैं (स्वः अस्माकम्) यह समस्त सुखकारक पदार्थ और आकाश भाग भी हमारा है (यज्ञः अस्माकम्) यह यज्ञ, परस्पर सत्संग और दान और राष्ट्र आदि के समस्त कार्य हमारे अधीन हैं। (पशवः अस्माकम्) ये समस्त पशु हमारे हैं। (प्रजाः अस्माकम्) ये समस्त प्रजाएं हमारी हैं और (वीराः अस्माकम्) ये सब वीर सैनिक भी हमारे हैं। (तस्मात् अमुम् निर्भजामः) इसलिये उस शत्रु को हम इस राष्ट्र से निकालते हैं (अमुष्यायणम् अमुष्याः पुत्रम् यः असौ) अमुक वंश के, अमुक स्त्री के पुत्र और वह जो हमारा शत्रु है उसको हम राष्ट्र से निकालते, बेदखल करते हैं। (सः) वह (ग्राह्याः) अपराधी लोगों को पकड़ लेने वाली शक्ति के (पाशात्) पाश, दण्ड धारा से (मा माचि) न छुटने पावे। (तस्य) उसका (इदं-वर्चः) यह बल (तेजः) वीर्य (प्राणम् आयुः) प्राण आयु सब को (नि वेष्टयामि) वांध लेता हूं, काबू कर लेता हूं। (इदम्) यह अब मैं (एनम्) उसको (अधराञ्चं पादयामि) नीचे गिराता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-२७ (प्र०) एकपदा यजुर्बाह्मनुष्टुभः, १-२७ (द्वि०) निचृद् गायत्र्यः, १ तृ० प्राजापत्या गायत्री, १-२७ (च०) त्रिपदाः प्राजापत्या स्त्रिष्टुभः, १-४, ९, १७, १९, २४ आसुरीजगत्य:, ५, ७, ८, १०, ११, १३, १८ (तृ०) आसुरीत्रिष्टुभः, ६, १२, १४, १६, २०, २३, २६ आसुरीपंक्तयः, २४, २६ (तृ०) आसुरीबृहत्यौ, त्रयस्त्रिशदृचमष्टमं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    For this reason now, from all that was ours, which we have won back, we alienate that evil dreamer, who is son of such and such father and of such and such mother.

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    Translation

    From sharing that we exclude so and so, the descendant of so and so, the son of so and so mother, that yonder one.

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    Translation

    Therefore, I drive away that who is such-a-one, descendent of such-a-one and the son of such-a-woman.

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    Translation

    We Banish him from the country for his aggression, who belongs to such a family, is the son of such a woman, and is the enemy of the country.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(तस्मात्)प्रसिद्धात्, पदात् (अमुम्) अमुकपुरुषम् (अमुम्) अमुकपुरुषम् (निर्भजामः)भागरहितं कुर्मः (आमुष्यायणम्) अमुकपुरुषस्य सन्तानम् (अमुष्याः) अमुकस्त्रियाः (पुत्रम्) सुतम् (असौ) (यः) कुमार्गी पुरुषः ॥

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