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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 9
    ऋषिः - दुःस्वप्ननासन देवता - आसुरी पङ्क्ति,त्रिपदा प्राजापत्या त्रिष्टुप्,यजुर्ब्राह्मी एकपदा अनुष्टुप्,त्रिपदा निचृत गायत्री छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
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    जि॒तम॒स्माक॒मुद्भि॑न्नम॒स्माक॑मृ॒तम॒स्माकं॒ तेजो॒ऽस्माकं॒ ब्रह्मा॒स्माकं॒स्वर॒स्माकं॑य॒ज्ञो॒ऽस्माकं॑ प॒शवो॒ऽस्माकं॑ प्र॒जा अ॒स्माकं॑ वी॒राअ॒स्माक॑म् । तस्मा॑द॒मुं निर्भ॑जामो॒ऽमुमा॑मुष्याय॒णम॒मुष्याः॑ पु॒त्रम॒सौ यः। स दे॑वजामी॒नां पाशा॒न्मा मो॑चि । तस्येदं वर्च॒स्तेजः॑ प्रा॒णमायु॒र्निवे॑ष्टयामी॒दमे॑नमध॒राञ्चं॑ पादयामि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जि॒तम् । अ॒स्माक॑म् । उ॒त्ऽभि॑न्नम् । अ॒स्माक॑म् । ऋ॒तम् । अ॒स्माक॑म् । तेज॑: । अ॒स्माक॑म् । ब्रह्म॑ । अ॒स्माक॑म् । स्व᳡: । अ॒स्माक॑म् । य॒ज्ञ: । अ॒स्माक॑म् । प॒शव॑: । अ॒स्माक॑म् । प्र॒ऽजा: । अ॒स्माक॑म् । वी॒रा: । अ॒स्माक॑म् । तस्मा॑त् । अ॒मुम् । नि: । भ॒जा॒म॒: । अ॒मुम् । आ॒मु॒ष्या॒य॒णम् । अ॒मुष्या॑: । पु॒त्रम् । अ॒सौ । य: । स: । दे॒व॒ऽजा॒मी॒नाम् । पाशा॑त् । मा । मो॒चि॒॥८.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जितमस्माकमुद्भिन्नमस्माकमृतमस्माकं तेजोऽस्माकं ब्रह्मास्माकंस्वरस्माकंयज्ञोऽस्माकं पशवोऽस्माकं प्रजा अस्माकं वीराअस्माकम् । तस्मादमुं निर्भजामोऽमुमामुष्यायणममुष्याः पुत्रमसौ यः। स देवजामीनां पाशान्मा मोचि । तस्येदं वर्चस्तेजः प्राणमायुर्निवेष्टयामीदमेनमधराञ्चं पादयामि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जितम् । अस्माकम् । उत्ऽभिन्नम् । अस्माकम् । ऋतम् । अस्माकम् । तेज: । अस्माकम् । ब्रह्म । अस्माकम् । स्व: । अस्माकम् । यज्ञ: । अस्माकम् । पशव: । अस्माकम् । प्रऽजा: । अस्माकम् । वीरा: । अस्माकम् । तस्मात् । अमुम् । नि: । भजाम: । अमुम् । आमुष्यायणम् । अमुष्या: । पुत्रम् । असौ । य: । स: । देवऽजामीनाम् । पाशात् । मा । मोचि॥८.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 8; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रु के नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (जितम्) जय कियाहुआ.... [म० १, २]। (सः) वह [कुमार्गी] (देवजामीनाम्) उन्मत्तों की गतियों के (पाशात्) बन्धन से (मा मोचि) न छूटे।.... [म० ४] ॥९॥

    भावार्थ

    विद्वान् धर्मवीर राजासुवर्ण आदि धन और सब सम्पत्ति का सुन्दर प्रयोग करे और अपने प्रजागण और वीरों कोसदा प्रसन्न रख कर कुमार्गियों को कष्ट देकर नाश करे॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(देवजामीनाम्) सू०५। म० ८। उन्मत्तपुरुषाणां गतीनाम्। अन्यत्पूर्ववत् ॥

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    विषय

    शत्रुता का दुष्परिणाम

    पदार्थ

    १. हम विजय व उन्नति आदि दशों रत्नों को प्राप्त करें। इसी उद्देश्य से शत्र को परास्त करें। स:-वह शन्नु शत्रुता के कारण ही '(निर्ऋत्या:) = दुर्गति, (अभूत्याः) = शान्ति का अभाव, (पराभूत्या:) = पराजय व (देवजामीनां) = इन्द्रियों की विषयासक्ति' के (पाशात्) = पाशों से (मा मोचि) = मत मुक्त हो। हम उसके वीर्य, बल, प्राण व आयु को घेरकर उसे परास्त करने में समर्थ हों।

    भावार्थ

    हमारा शत्रु, इस शत्रुता के कारण ही, 'दुर्गति, शक्ति-अभाव, अनैश्वर्य, पराजय व विषयासक्ति' के पाशों में जकड़ा जाकर नष्ट हो जाए। हम उसे पराजित कर पाएँ।

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    भाषार्थ

    (जितमस्माकमुद्भिन्नमस्माकमृतमस्माकं तेजोऽस्माकं ब्रह्मास्माकंस्वरस्माकंयज्ञोऽस्माकं पशवोऽस्माकं प्रजा अस्माकं वीराअस्माकम्) अर्थ पूर्ववत् (मन्त्र १)(तस्मादमुं निर्भजामोऽमुमामुष्यायणममुष्याः पुत्रमसौ यः) अर्थ पूर्ववत् (मन्त्र २)(सः) वह (देवजानीनाम्) दिव्यगुणी-विद्वानों की पत्नियों या दिव्यगुणी विदुषी महिलाओं द्वारा निर्णीत (पाशात्) फंदे से (मोचि, मा) मुक्त न हो। (तस्येदं वर्चस्तेजः प्राणमायुर्निवेष्टयामीदमेनमधराञ्चं पादयामि) अर्थ पूर्ववत् (मन्त्र ४)

    टिप्पणी

    [महर्षि दयानन्द के अनुसार महिलाओं की सेनाओं का निर्माण वेद सम्मत है। युद्ध में यदि निज महिला सैनिक पर-शत्रु सैनिक ने अनाचार का व्यवहार किया है, तो उसे उस दण्ड में दण्डित करना चाहिये जिसे कि विजयी राष्ट्र की विदुषी महिलाओं का न्यायालय निश्चित करे]

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    विषय

    विजयोत्तर शत्रुदमन।

    भावार्थ

    (जितम्० इत्यादि) सर्वत्र पूर्ववत् ! (सः निर्ऋत्याः पाशात्) वह शत्रु निर्ऋति, कठोर दण्ड व्यवस्था के पाश से (मा मोचि) न छूट पावे। (सः) वह (अभूत्याः) ऐश्वर्य के अभाव, (निर्भूत्याः) सम्पत्ति के छिनने, (पराभूत्याः) एैश्वर्य के हाथ से निकल जाने या तिरस्कार के (पाशात् मा मोचि) पाश से न छूट जाय॥ ५-८॥ (सः) वह (दैव जामीनाम्) देव विद्वानों की सहज शक्तियों, (बृहस्पतेः) बृहस्पति, (प्रजापतेः) प्रजापति, (ऋषीणाम्) ऋषियों, (आर्षेयाणाम्) ऋषि सन्तानों (अंगिरसाम्) विशेष आंगिरस वेद के विद्वानों और (आंगिरसानां) उनके शिष्यों, (अथर्वणाम्) अथर्व वेद के ज्ञाताओं और (आथर्वणानाम्) अथर्वाओं के शिष्यों के (पाशात् मा मोचि) पाश से न छूट पावें॥९

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-२७ (प्र०) एकपदा यजुर्बाह्मनुष्टुभः, १-२७ (द्वि०) निचृद् गायत्र्यः, १ तृ० प्राजापत्या गायत्री, १-२७ (च०) त्रिपदाः प्राजापत्या स्त्रिष्टुभः, १-४, ९, १७, १९, २४ आसुरीजगत्य:, ५, ७, ८, १०, ११, १३, १८ (तृ०) आसुरीत्रिष्टुभः, ६, १२, १४, १६, २०, २३, २६ आसुरीपंक्तयः, २४, २६ (तृ०) आसुरीबृहत्यौ, त्रयस्त्रिशदृचमष्टमं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    What we have won is ours, what we have recovered is ours. Law and truth is ours, splendour is ours, Vedic knowledge is ours, peace and joy is ours, yajna is ours, wealth and cattle is ours, the people are ours, the brave heroes are ours. For this reason now, from all that, we alienate that evil dreamer who is son of such and such father and such and such mother. Let him never be free from the fetters of his mind and senses. And here now I arrest and freeze his honour, lustre, pranic energy, and his life and age, and thus I place him down at the lowest.

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    Translation

    Ours be the conquest ours the rise up; ours the righteousness; ours: the brilliance; ours the knowledge; ours the bliss; ours the sacrifice; ours the cattle; ours the progeny; ours be the heroic sons. From sharing that we exclude so and so, the descendant of so and so, the son of so and so mother that yonder one. May he not be released from the noose of the perverted sense-organs (devajami). Now I wrap up his lustre, brilliance, vital breath and life-span. Here I make him fall down below.

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    Translation

    May......... noose of the evils of organic systems beneath me.

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    Translation

    Let us be victorious. Let us be prosperous. Let us be truthful. Let us be energetic. Let us be learned. Let our soul advance. Let our sacrifice be fruitful. Let us own cattle. Let our progeny progress. Let us have brave soldiers. We banish him from the country, for his aggression, who belongs to such a family, is the son of such a woman, and is the enemy of the country. Let him not be freed from the noose of physical disorders. I bind up his splendour, his energy, his vital breath, his life, and cast him down beneath me.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(देवजामीनाम्) सू०५। म० ८। उन्मत्तपुरुषाणां गतीनाम्। अन्यत्पूर्ववत् ॥

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