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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 44/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भृगुः देवता - आञ्जनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - भैषज्य सूक्त
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    आञ्ज॑नं पृथि॒व्यां जा॒तं भ॒द्रं पु॑रुष॒जीव॑नम्। कृ॒णोत्वप्र॑मायुकं॒ रथ॑जूति॒मना॑गसम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒ऽअञ्ज॑नम्। पृ॒थि॒व्याम्। जा॒तम्। भ॒द्रम्। पु॒रु॒ष॒ऽजीव॑नम्। कृ॒णोतु॑। अप्र॑ऽमायुकम्। रथ॑ऽजूतिम्। अना॑गसम् ॥४४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आञ्जनं पृथिव्यां जातं भद्रं पुरुषजीवनम्। कृणोत्वप्रमायुकं रथजूतिमनागसम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽअञ्जनम्। पृथिव्याम्। जातम्। भद्रम्। पुरुषऽजीवनम्। कृणोतु। अप्रऽमायुकम्। रथऽजूतिम्। अनागसम् ॥४४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 44; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्म की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (पृथिव्याम्) पृथिवी पर (जातम्) प्रसिद्ध, (भद्रम्) कल्याणकारक, (पुरुषजीवनम्) पुरुषों का जीवन (आञ्जनम्) आञ्जन [संसार का प्रकट करनेवाला ब्रह्म, वा लेपविशेष] [मुझको] (अप्रमायुकम्) मृत्युरहित, (रथजूतिम्) रथ [शरीर] का वेग रखनेवाला, और (अनागसम्) निर्दोष (कृणोतु) करे ॥३॥

    भावार्थ

    जो परमात्मा पृथिवी आदि में प्रसिद्ध है, उसकी भक्ति से मनुष्य मोक्षसुख पाकर अपने शरीर और आत्मा को वेगवान् करके शुद्ध निष्पाप रहें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(आञ्जनम्) म०१। संसारस्य व्यक्तिकारकं ब्रह्म। प्रलेपविशेषः (पृथिव्याम्) भूमौ (जातम्) प्रसिद्धम् (भद्रम्) कल्याणकरम् (पुरुषजीवनम्) पुरुषाणां जीवयितृ (कृणोतु) करोतु-मामिति शेषः (अप्रमायुकम्) पचिनशोर्णुकन्कनुमौ च। उ०२।३०। मीञ् हिंसायां मरणे च-णुकन्। मृत्युरहितम् (रथजूतिम्) रथस्य शरीरस्य जूतिर्वेगो यस्मात्तम् (अनागसम्) निर्दोषम् ॥

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    भाषार्थ

    (आञ्जनम्) जगत् को अभिव्यक्त करनेवाला ब्रह्म, (पृथिव्याम्) पृथिवी में [निज कार्यों द्वारा] (जातम्) प्रसिद्ध है, (भद्रम्) वह सुखदाता तथा कल्याणकारी है, (पुरुषजीवनम्) शरीरपुरी में वसनेवालों का जीवनदाता है। वह (अप्रामयुकम्) हमें मृत्युरहित अर्थात् जन्ममरण की परम्परा से रहित (कृणोतु) करे। (रथजूतिम्) हमारे शरीर-रथों में वेग दे, और हमें (अनागसम्) पापों से रहित करे।

    टिप्पणी

    [तथा—पृथिवी में पैदा सुरमा सुख देता, मानुषजीवन को बढ़ाता, शीघ्र मृत्यु से बचाता, शरीर को सक्रिय करता, और रोगों का विनाशक है। [पुरुषजीवनम्, पुरुषः=परि वसतीति।]

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    विषय

    नीरोगता, स्फूर्ति व निष्यापता

    पदार्थ

    १. (आञ्जनम्) = शरीर को 'शक्ति, पवित्रता व दीप्ति' से अलंकृत करनेवाली यह वीर्यमणि (पृथिव्याम्) = इस शरीररूप पृथिवी में (जातम्) = उत्पन्न होती है। (भद्रम्) = यह हमारा कल्याण करनेवाली है। (पुरुषजीवनम्) = यह हमारे जीवन को पौरुषयुक्त करती है। २. यह हमारे लिए (अप्रमायुकं कृणोतु) = अमरणशीलता करे-हम सदा रोगी न बने रहें। यह (रथजूतिम्) [कृणोतु] = शरीररूप रथ के वेग को करे, अर्थात् हमारे शरीर-रथ को स्फूर्तिसम्पन्न बनाए, (अनागसम्) = निष्पापता को करे।

    भावार्थ

    सुरक्षित वीर्य 'नीरोगता-स्फूर्ति व निष्पापता' का साधक होता है। यह हमारे जीवन को पौरुष-सम्पन्न करता हुआ सुखमय बनाता है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Bhaishajyam

    Meaning

    Anjana, born on earth, auspicious, the very life of human beings, may protect us from sudden and untimely death, give us the speed and smartness of body and mind as that of the chariot, physical and mental, and render us free from sin and evil.

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    Translation

    May this ointment, born on earth, beneficial, and life-giver of men, make me unperishing, fast chariot-rider, and sinless.

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    Translation

    O man, let this ointment drive out from your frame that which is known as Jaundice, the feverish heat, the shooting pain that rends the limbs and all other diseases.

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    Translation

    Let the Anjana, born of the earth, make the life of man happy and comfortable, free from the fear of premature death, full of bodily activity and free from all troubles and defects.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(आञ्जनम्) म०१। संसारस्य व्यक्तिकारकं ब्रह्म। प्रलेपविशेषः (पृथिव्याम्) भूमौ (जातम्) प्रसिद्धम् (भद्रम्) कल्याणकरम् (पुरुषजीवनम्) पुरुषाणां जीवयितृ (कृणोतु) करोतु-मामिति शेषः (अप्रमायुकम्) पचिनशोर्णुकन्कनुमौ च। उ०२।३०। मीञ् हिंसायां मरणे च-णुकन्। मृत्युरहितम् (रथजूतिम्) रथस्य शरीरस्य जूतिर्वेगो यस्मात्तम् (अनागसम्) निर्दोषम् ॥

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