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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 44/ मन्त्र 8
    ऋषिः - भृगुः देवता - वरुणः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - भैषज्य सूक्त
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    ब॒ह्वि॒दं रा॑जन्वरु॒णानृ॑तमाह॒ पूरु॑षः। तस्मा॑त्सहस्रवीर्य मु॒ञ्च नः॒ पर्यंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ


    स्वर रहित मन्त्र

    बह्विदं राजन्वरुणानृतमाह पूरुषः। तस्मात्सहस्रवीर्य मुञ्च नः पर्यंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 44; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्म की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (राजन्) हे राजन् (वरुण) वरुण ! [सर्वश्रेष्ठ परमात्मन्] (पुरुषः) पुरुष (इदम्) अब (बहु) बहुत (अनृतम्) असत्य (आह) बोलता है। (सहस्रवीर्य) हे सहस्र प्रकार के पराक्रमवाले ! [तस्मात्] उस (अंहसः) पाप से (नः) हमें (परि) सर्वथा (मुञ्च) छुड़ा ॥८॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमात्मा को साक्षी करके असत्य कभी न बोले ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(बहु) (इदम्) इदानीम् (राजन्) हे सर्वशासक (वरुण) हे सर्वश्रेष्ठ परमात्मन् (अनृतम्) असत्यम् (आह) ब्रूते (पुरुषः) मनुष्यः (तस्मात्) निर्दिष्टात् (सहस्रवीर्य) हे अपरिमितपराक्रमवन् (मुञ्च) मोचय (नः) अस्मान् (परि) सर्वथा (अंहसः) पापात् ॥

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    भाषार्थ

    (राजन्) हे ब्रह्माण्ड के राजा, (वरुण) पापनिवारक वरणीय परमेश्वर! (पूरुषः) शरीरपुरी में बसनेवाला जीवात्मा (इदं बहु अनृतम्) इस प्रकार के बहुत से असत्य (आह) कथन करता है। (सहस्रवीर्य) हे हजारों सामर्थ्योंवाले परमेश्वर! (तस्मात् अंहसः) उस अनृतकथनरूपी पाप से आप (नः) हमें (परि मुञ्च) सर्वथा छुड़ाइये।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में प्रार्थी पापों को छुड़ाने की सहायता परमेश्वर से चाहता है। पूरुषः=पुर्+वस् (सम्प्रसारण द्वारा) उस्=उष्।]

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    विषय

    अनृत-परिमुक्ति

    पदार्थ

    १. हे (राजन्) = जीवन को दीस करनेवाले तथा (वरुण) = आधि-व्याधियों का निवारण करनेवाले आञ्जन [वीर्यमणे]! (पूरुषः) = मनुष्य (इदं बहु अनतम् आह) = प्रात: से सायं तक बहुत ही झठों को बोल जाता है। मनुष्य का जीवन विषय-प्रलोभनों से अनृतमय हो जाता है। २. हे (सहस्त्रवीर्य) = अनन्त पराक्रमयुक्त आजनमणे! शरीर में सुरक्षित हुई-हुई तू (न:) = हमें (तस्मात् अंहसः) = उस सब पाप से (परिमुञ्च) = सर्वथा मुक्त कर।

    भावार्थ

    सुरक्षित वीर्य जीवन को दीत करता है। वासनाओं का निवारण करता है। यह हमें पापों से मुक्त करे।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Bhaishajyam

    Meaning

    Self-refulgent ruler of the universe, Varuna, lord of judgement, all protective umbrella of life, while in the house of clay, therein man speaks a lot of this untruth. O lord of infinite power and potential, save us from that sin and evil.

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    Subject

    Varuna

    Translation

    O sovereign venerable Lord, man tells here many a lie, from that guilt, may you of thousand-fold strength, free us completely.

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    Translation

    This ointment is the remover of all eye-infections, destroyer of eye-diseases and it enters in to the heart of disease. It ruining all the troubles drives away the pains encompassing patient from here.

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    Translation

    O God, the Brilliant, the Adorable of all, this man on earth speaks all sorts of lies. O Possesser of thousands of powers, ietest Thou free us completely from this sin of lying.

    Footnote

    (8-9) These verses have ‘Varuna’ as Devata.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(बहु) (इदम्) इदानीम् (राजन्) हे सर्वशासक (वरुण) हे सर्वश्रेष्ठ परमात्मन् (अनृतम्) असत्यम् (आह) ब्रूते (पुरुषः) मनुष्यः (तस्मात्) निर्दिष्टात् (सहस्रवीर्य) हे अपरिमितपराक्रमवन् (मुञ्च) मोचय (नः) अस्मान् (परि) सर्वथा (अंहसः) पापात् ॥

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